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प्राइमरी कक्षाओं में बच्चों का दाखिला घटा

अनिवार्य शिक्षा कानून से भी नहीं बदली स्थिति 


मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा कानून का मकसद प्राइमरी स्कूलों में अधिक से अधिक बच्चों का दाखिला कराकर उन्हें शिक्षित बनाना था लेकिन इस कानून के लागू होने के तीन साल के भीतर इन बच्चों की संख्या बढऩे की बजाय उल्टे घट गई है तथा दलितों और आदिवासी बच्चों के दाखिले में कोई वृद्धि नहीं हुई है। मुस्लिम छात्रों में मात्र एक प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। 

इन कानून के क्रियान्वन के बारे में मानव संसाधन विकास मंत्रालय की पिछले दिनों आई रिपोर्ट के अनुसार, 2009-10 में देशभर में जब यह कानून लागू हुआ तो प्राइमरी क्लासों में कुल 13 करोड़ 34 लाख 5 हजार 581 बच्चे थे जो 2013-14 में घटकर तेरह करोड़ 24 लाख 28 हजार 440  बच्चे रह गए।
इस तरह इन तीन सालों में करीब दस लाख बच्चे कम ही हो गए।  रिपोर्ट के अनुसार, इन चार सालों में ऊपर प्राइमरी में बच्चों की संख्या में करीब एक करोड़ 20 लाख बढ़ी है। यानी 2009-10 में ऊपर प्राइमरी में 5 करोड़ 44 लाख 67 हजार 415 बच्चे थे जो बढ़कर 6 करोड़ 64 लाख 71 हजार 219 हो गई। रिपोर्ट के अनुसार, 2009-10 में स्कूलों में 20 प्रतिशत बच्चे दलित थे जो 2013-14 में भी 20 प्रतिशत ही रहे।

इसी तरह 2009-10 में आदिवासी बच्चों की संख्या 11 प्रतिशत थी जो 2013-14 में भी उतनी ही रही। इसका अर्थ 2009-10 के बाद दलित और आदिवासी बच्चों के दाखिले में कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई। 

मुस्लिम छात्रों में केवल एक प्रतिशत ही वृद्धि हुई है। 2009-10 में 13 प्रतिशत मुस्लिम बच्चे स्कूलों में थे जो 2013-14 में बढ़कर 14 प्रतिशत हो गए। रिपोर्ट के अनुसार, इन तीन सालों में शिक्षकों की संख्या में मात्र 55 हजार की ही वृद्धि हुई है।

रिपोर्ट के अनुसार, 2009-10 में सरकारी तथा सहायता प्राप्त स्कूलों में 44 77 429 शिक्षक थे जो 2013-14 में बढ़कर 45 32 803 हो गए। रिपोर्ट के अनुसार, जिन राज्यों में प्राइमरी स्कूल में बच्चों के दाखिले में गिरावट आई है, उनमें पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, राजस्था, त्रिपुरा, कर्नाटक, सिक्किम, बिहार, उड़ीसा, महाराष्ट्र प्रमुख हैं। 



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