एल.एस.
हरदेनिया
HT 28 September 2014 |
जिस दिन पूरा देश पर्यटन दिवस मना रहा था, उस दिन भोपाल में एक विशेष रिपोर्ट
जारी की गई। रिपोर्ट का शीर्षक था ‘‘पर्यटन में बच्चों का शोषण’’। यह रिपोर्ट मध्यप्रदेश के दो प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में किये गये
सर्वेक्षण पर आधारित है। पहला खजुराहो, जो
हमारे देश का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है और जहां शायद ताजमहल के बाद सबसे बड़ी
संख्या में विदेशी पर्यटक आते हैं। दूसरा
है उज्जैन, जो देश के महान तीर्थस्थलों में से एक
है। उज्जैन एक ऐसा स्थान है जहां पर आम हिंदुओं के साथ-साथ अनेक प्रमुख हस्तियां
जिनमें राजनेता, न्यायाधीश, वकील, अभिनेता और अभिनेत्रियां शामिल हैं, आते हैं। इनमें से अनेक प्रातः 3
बजे मंदिर में जाकर पूजा अर्चना करते हैं और अपने लिए विशेष आर्शीवाद का अनुरोध
करते हैं। उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर मंदिर, देश
में भगवान शंकर के 12 ज्योर्तिलिंगों में से एक माना जाता
है। साथ ही यह देश के उन प्रमुख तीर्थों में से एक है जहां हर 12 वर्ष में कुंभ मेले का आयोजन किया
जाता है, जिसमें लाखों हिंदू तीर्थयात्री आते
हैं।
इन दोनों पर्यटन स्थलों में सबसे ज्यादा शोषण बच्चों का होता है।
जब बच्चे शब्द का उल्लेख किया जा रहा है तो उसमें बच्चियां भी शामिल हैं।
सर्वेक्षण में बताया गया है कि इन बच्चों का शोषण मंदिरों में, होटलों में और अन्य स्थलों पर होता है।
शोध रिपोर्ट में बताया गया है कि यहां पर बड़ी संख्या में बच्चों से भीख मंगवाई
जाती है और अनेक मामलो में यह इन बच्चों के अभिभावकों की सहमति से भी होता है।
शोधकर्ताओं को 8 बच्चों के एक समूह ने बताया कि वे
बहुत ही गरीब परिवारों से हैं और उन्हें भीख से हर रोज 100 से 200 रूपये प्राप्त हो जाते हैं। इन पैसों का उपयोग बच्चों और उनके
अभिभावकों द्वारा रोज नशा करने के लिए किया जाता है। तीन या चार साल की आयु से
इनसे भीख मंगवाने का काम करवाना प्रारंभ हो जाता है। सबसे दुःखद पहलू यह है कि भीख
मांगने और होटल में काम करने वाला लगभग हर बच्चा किसी न किसी प्रकार के नशे का आदि
हो जाता है। नशा करने के लिए व्हाइटनर या नेल पालिश रिमूवर का उपयोग किया जाता है।
ये बच्चे सारा दिन काम करते हैं और रात को व्हाईटनर खरीदकर उसका नशा करने के लिए
इस्तेमाल करते हैं।
हालांकि जिला प्रशासन ने व्हाईटनर की बिक्री पर प्रतिबंध लगा
दिया है लेकिन फिर भी यह आसानी से उपलब्ध हो जाता है। भीख मांगने के अलावा ये
बच्चे उज्जैन के छोटे होटलों में भी काम करते हैं। इनके काम के घंटे बंधे हुए नहीं
हैं और कभी कभार तो बच्चों को बिना आराम के दिन-रात लगातार काम करना पड़ता है।
त्यौहार के समय ये बच्चे दिन में भीख मांगते हैं और रात से अगली सुबह तक होटल में
काम करते हैं क्योंकि इस दौरान लोग लगातार आते-जाते रहते हैं। उज्जैन में अनेक
बच्चे-बच्चियाँ यौनकर्म के जाल में भी फंसे हुए हैं। यौनकर्म के लिए दलाल, स्थानीय लड़कियों के साथ-साथ प्रदेश के
अलग-अलग हिस्सों से भी लड़कियां लाते हैं। पूर्व में उज्जैन में यौनकर्म के लिए एक
खास इलाका (पिंजारवाड़ी) तय था लेकिन अब यह छुपे तौर पर शहर के अलग-अलग हिस्सों
में हो रहा है। पिंजारवाड़ी की अनेक महिलाएं व लड़कियां अब दूसरे इलाकों में भी
स्थानांतरित कर दी गई हैं। बताया गया है कि शहर में अनेक ऐसे घर हैं जहां खुलेआम
यौनकर्म होता है। इनमें लड़कियां (विशेष रूप से अल्पवयस्क बच्चियां), घरेलू पर्यटकों और स्थानीय लोगों के
लिए गाती हैं व नृत्य प्रस्तुत करती हैं। यह नृत्य तब तक चलता रहता है जब तक
ग्राहक पैसे देते रहते हैं। जब नृत्य पूरा हो जाता है तब बोली लगाई जाती है और
सबसे ज्यादा बोली लगाने वाले को उस लड़की के साथ सैक्स करने का मौका मिलता है। ऑटो
चालक ऐसे पर्यटकों को ऐसी जगह में ले जाते हैं और बदले में उन्हें कमीशन मिलता है।
बताया तो यहां तक जाता है कि इस पापकर्म में उज्जैन में आए ऐसे लोग भी शामिल होते
हैं जो महाकालेश्वर के दर्शन कर अपने जीवन को धन्य बनाना चाहते हैं।
सबसे मजेदार बात यह है कि यह सब कुछ पुलिस व प्रशासन को ज्ञात
रहता है परंतु इन गतिविधियों को प्रतिबंधित करने में प्रशासन की भूमिका न के बराबर
रहती है। उज्जैन में चाईल्डलाईन पिछले 7
सालों से काम कर रही है। इसके सामने जो प्रमुख मसले आते रहते हैं वे हैं-मंदिरों
के आसपास भीख मांगना, घरों या पड़ौस में बच्चों के साथ
दुव्र्यवहार, बालमजदूरी, बच्चों की तस्करी, गुमशुदा बच्चे और नशा-तस्करी। यौनकर्म
में फंसे बच्चे-बच्चियों को उस नर्क से निकालने में चाईल्ड लाईन की भूमिका लगभग न
के बराबर रही है।
खजुराहो में तो स्थिति और भी भयावह है। सर्वेक्षण में पाया
गया कि खजुराहो और उसके आसपास, बाल
यौन शोषण और बाल मजदूरी बहुत व्यापक है। यह पता लगा कि बाल यौन शोषण सभी तरह के
होटलों में होता है। कुछ बड़े होटलों में भी ऐसा धड़ल्ले से हो रहा है। यहां पर
यौनकर्म में शामिल होने वाले लड़कों को ‘लपका’ कहा जाता है। बड़े पैमाने पर बच्चियों
के अलावा बच्चों का भी यौन शोषण किया जाता है। यौनकर्म के घृणित कार्य में देशी
पर्यटकों के अलावा विदेशी पर्यटक भी शामिल हैं। अनेक विदेशी पर्यटक बच्चों के
परिवार में ही रूकते हैं और बच्चों को सैक्स के लिए बाहर ले जाते हैं। लड़के इन
पर्यटकों को मोटर साइकिल पर घुमाने ले जाते हैं। वे हमें सबकुछ देते हैं और बदले
में हम उन्हें सैक्स देते हैं, कुछ
बच्चों ने बताया। कुछ बच्चे तो इसे शोषण नहीं व्यापार मानते हैं और उनके परिवार के
लोग भी उन्हें ऐसा ही समझाते हैं। कई मामलो में पाया गया कि कुछ विदेशी पर्यटक
बार-बार खजुराहो आते हैं और फिर उन्हीं परिवारों से संपर्क करते हैं जिनके पास वे
पहले ठहर चुके हैं। पर्यटन व्यवसाय में लगे लोग दूसरे राज्यों की लड़कियों को भी
खजुराहो लाते हैं। खजुराहो में यौनकर्म एक बड़ा व्यवसाय है जिसका लाभ हजारों लोगों
को मिलता है। खजुराहों में रहने वाले लड़कों के एक बड़े हिस्से का संबंध विदेशी
महिला पर्यटकों से भी हो जाता है।
सर्वेक्षण के दौरान यह बताया गया कि विदेशी पर्यटकों के खिलाफ यहां पर
बाल यौन शोषण का कोई भी प्रकरण दर्ज नहीं है जबकि घरेलू पर्यटकों के मामले में कुछ
प्रकरण दर्ज हैं। खजुराहों में पंजीकृत गाइड लेने के लिए कोई भी अधिकृत कार्यालय
नहीं हैं। अनाधिकृत गाइड भी इस घृणित व्यवसाय में शामिल रहते हैं। खजुराहो और
आसपास का इलाका अनेक बार सूखे से प्रभावित हो जाता है। सूखे के प्रभाव से इन
क्षेत्रों में भुखमरी फैल जाती है। ऐसी स्थिति में यहां के आसपास के गरीब परिवार
के लोग अपने बच्चे-बच्चियों को यौनकर्म में धकेलकर अपनी रोजी-रोटी चलाते हैं।
शोधकर्ताओं ने खजुराहो के पुलिस
अधिकारियों से
भी बातचीत की। पुलिस अधिकारियों के अनुसार उनका मुख्य उत्तरदायित्व पर्यटकों को
सुरक्षा प्रदान करना है। वैसे पर्यटन स्थलों की देखभाल के लिए विशेष रूप से पर्यटन
पुलिस विभाग बनाया गया है परंतु वे अपना उत्तरदायित्व मात्र पर्यटकों की सुरक्षा
तक ही सीमित रखते हैं। पुलिस का तो कहना है कि खजुराहो में पर्यटकों द्वारा बच्चों
का शोषण होता ही नहीं है।
कुल मिलाकर, ये पर्यटन स्थल भले ही हमारे खजाने में बढ़ोत्तरी करते हों
परंतु ये जघन्य पापों के केन्द्र भी हैं। शोधकर्ताओं ने बताया कि खजुराहो में 45 होटल हैं जिनमें 41 सस्ते होटल हैं और शेष स्टार श्रेणी
के हैं। पंचायत के पास गैर-कानूनी गेस्ट हाउसों और अपंजीकृत होटलों की कोई जानकारी
नहीं है। कई छोटे होटल बिना किसी लाइसेंस के चल रहे हैं। जो अनाधिकृत होटल हैं, उन्हीं में ही बच्चे-बच्चियों का यौन शोषण बड़े पैमाने पर होता है। खजुराहो, छतरपुर जिले में स्थित है। छतरपुर जिले
की बालकल्याण समिति का गठन 2007
में ही हो गया था लेकिन वह आज भी काम नहीं कर रही है। प्रशासन की टेलीफोन
डायरेक्टरी के अनुसार इसमें चार सदस्य हैं। उनके नाम भी शोधकर्ताओं को बताए गए। जब
इनमें से दो को फोन किया गया तो उन्होंने जवाब दिया कि वे अब समिति के सदस्य नहीं
हैं और उन्हें नहीं मालूम की उनके नाम अभी भी डायरेक्टरी में क्यों शामिल हैं।
बाकी दो सदस्य किसी राजनैतिक दल के कामों में व्यस्त थे और उनके पास इसके लिए समय
नहीं था। यथार्थ तो यह है कि खजुराहो और उसके आसपास रहने वाले लोगों को वहां चल
रहे पापकर्म के बारे में किसी प्रकार की चिंता नहीं है। राजनीतिक दलों की नीति तो
पूरी तौर से उपेक्षापूर्ण है।
यह सर्वेक्षण जिन संस्थानों द्वारा
किया गया वे
हैं-इक्वेशंस, जो बाल श्रम, यौन शोषण और ट्राफिकिंग से जुड़ी
समस्याओं के बारे में खोजबीन करती रहती है। दूसरी संस्था है विकास संवाद, जो अनेक सामाजिक समस्याओं का विश्लेषण
करती है और उन्हें हल करने के सुझाव देती है। इन दोनों संस्थाओं में यह सर्वेक्षण
चाईल्ड राइट्स एण्ड यू (क्राय) के सहयोग से किया है।
इस 60-पृष्ठीय रिपोर्ट में बच्चों से जुड़े अनेक महत्वपूर्ण
आंकड़े भी शामिल किए गए हैं। इसमें सरकारी विभागों के द्वारा की जाने वाली
गतिविधियों का भी उल्लेख है। बच्चों की सुरक्षा के लिए जो कानून बनाये गये हैं, वे भी रिपोर्ट में शामिल किये गये हैं।
रिपोर्ट को पढ़ने से यह तथ्य उभरकर आता हैं कि गरीबी ही इन सारी समस्यायों की जड़
है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान को प्रदेश के बच्चे मामा कहते हैं। क्या उनका
ध्यान अपने इन भांजे-भांजियों के प्रति गया है या नहीं? यह कहना कठिन है।
रिपोर्ट के अंतिम कव्हर पृष्ठ पर एक
कविता की कुछ पंक्तियां दी गई हैं जो निम्न प्रकार हैं:
गीली
रेत पर
ज्यादा
देर तक नहीं रहते हैं, कदमों के निशान
लहर
गुजरी, तो फिर धुल जाते हैं
पर
बालमन
की रेत पर
रह
जाते हैं निशान
देर
तक, गहरे तक
नहीं
मिटते हैं आसानी से।
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