मध्यप्रदेश लोक सहभागी साझा मंच

इंदौर -अब खुली आंखः बताओ कहां गए 7 हजार बच्चे


इंदौर . एक ओर सरकार शिक्षा पर करोड़ों रुपए खर्च कर बच्चों को शिक्षित बनाने और स्कूलों में उपस्थिति बढ़ाने का प्रयास कर रही है, वहीं जिले के 15 हजार बच्चे सरकारी स्कूलों से गायब हैं।


इनमें से 8 हजार निजी स्कूलों में पहुंचे हैं, वहीं शेष 7 हजार का कोई पता नहीं है। विभाग ने इसकी रिपोर्ट 24 मार्च तक मांगी है। हालांकि सूत्रों के अनुसार इसके पीछे फर्जी नामांकन का मामला बताया जा रहा है।


15 हजार बच्चों के कम होने का आंकड़ा हालही में राज्य शिक्षा केंद्र द्वारा प्रदेश स्तर पर जिलेवार किए गए अध्ययन में सामने आया है। इसमें पिछले साल की अपेक्षा जिले के 1738 सरकारी स्कूलों में पहली से आठवीं तक के 15 हजार बच्चे कम हो गए हैं।


इन बच्चों को खोजने के लिए राज्य शिक्षा केंद्र आयुक्त अशोक बर्णवाल ने अधिकारियों को आदेश दिए हैं। अधिकारियों के अनुसार बीते वर्ष करीब 1.69 लाख बच्चों का नामांकन हुआ था, जो इस साल घटकर 1.54 लाख हो चुका है।


15 हजार के इस अंतर में से 8 हजार बच्चों का नामांकन निजी स्कूलों में बढ़ा है। लेकिन शेष 7 हजार बच्चे कहां गए इसकी जानकारी किसी के पास नहीं है। इन बच्चों का पता लगाने के लिए अधिकारियों ने अलग-अलग दल बनाते हुए जहां नामांकन में ज्यादा अंतर है ऐसे स्कूलों की सूची बनाई है। इनमें जिला परियोजना समन्वयक, सहायक समन्वयक, बीआरसी और एपीसी जाकर निरीक्षण कर रहे हैं।


फर्जी नामांकन कारण!


जो अंतर सामने आ रहा है उसका प्रमुख कारण पिछले साल हुए फर्जी नामांकन है। सूत्रों के अनुसार पिछले साल स्कूलों में बच्चों के गणवेश के लिए पालक शिक्षक संघ के खातों में राशि भेजी जाती थी, जिसे कई स्कूलों में फर्जी छात्रों का नामांकन दर्शाते हुए निकाल लिया जाता था। इस वर्ष से बच्चों को मिलने वाली यह राशि सीधे बच्चों के खातों में डाली जाना है, इसलिए बच्चों के फर्जी खाते लाना संभव नहीं है, जिसके चलते फर्जी नामांकन नहीं हुए हैं। वहीं दूसरे कारणों में बच्चों का निजी स्कूलों में चले जाना और पलायन करना भी शामिल है।


कर रहे हैं निरीक्षण


राज्य शिक्षा केंद्र आयुक्त की ओर से 15 हजार बच्चों की जानकारी 24 मार्च तक मांगी गई है। 8 हजार बच्चे निजी स्कूलों में बढ़े हैं, शेष के लिए दल बनाकर स्कूलों में निरीक्षण किया जा रहा है। कारणों की अभी हम जांच कर रहे हैं, फर्जी नामांकन भी इसका कारण हो सकता है।


- मदनकुमार त्रिपाठी, जिला परियोजना समन्वयक


Source: www.bhaskar.com (17/03/12)

Post a Comment

0 Comments