मध्यप्रदेश लोक सहभागी साझा मंच

बेड़िया समुदाय पर कोविड 19 का प्रभाव


मृणालिनी और  हर्षिता


बेड़िया समुदाय एक ऐसा समुदाय है जहां महिलाओं को पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाली जातिगत वेश्यावृत्ति की प्रथा में धकेला जाता है. जहां बेड़िया समुदाय की लड़कियों के समक्ष दो ही विकल्प होते हैंशादी या वेश्यावृत्ति, वहीँ समुदाय के पुरुष अपनी आवश्यकताओं की पूर्ती हेतु परिवार की उन महिलाओं पर निर्भर होते हैं जो देह व्यापार कर के परिवार का भरण-पोषण करती हैं. संवेदना मध्यप्रदेश के 5 जिलों भोपाल, राजगढ़, गुना, रायसेन विदिशा के 20 गाँव में 1200 से अधिक बेड़िया बच्चों 500 से अधिक परिवारों के साथ, बच्चों की शिक्षा समुदाय की पितृसत्तात्मक सोच बदलने हेतु कार्य करती है. संवेदना संस्था का दृष्टिकोण केवल पीड़ितों के साथ उनके पुनर्वास के लिए काम करना है बल्कि वकालत के माध्यम से समुदाय के कमज़ोर सदस्यों के लये रोकथाम को प्राथमिकता देना भी है.

जैसा कि हम सब जानते हैं कि कोरोना जैसी वैश्विक महामारी ने एक ऐसी स्थिति उत्पन्न कर दी है जिससे समाज के सभी वर्ग प्रभावित हुए हैं परंतु कठिनाइयों का सबसे अधिक सामना उन निम्न वर्गों के लोगों को करना पड़ रहा है जो बेरोज़गारी की समस्या से जूझ रहे हैं. बेरोज़गारी ने इस समय में इन वर्गों के लोगों के बीच भुखमरी के हालात उत्पन्न कर दिये हैं.बेड़िया समुदाय भी इन्हीं समस्याओं से ग्रसित है.

बेड़िया समुदाय जहां अपने रोजाना के खर्चों और ऋणपूर्ती हेतु वेश्यावृत्ति से कमाई गयी आमदनी पर निर्भर होते हैं, वहीँ इस महामारी में हुए लॉकडाउन ने इस आमदनी में रोक लगा दी है. ग्राहकों का आवागमन प्रतिबंधित हो गया है जिससे ऐसे परिवार अत्यधिक प्रभावित हुए जो इनसे आई हुई आमदनी पर निर्भर थे. जहां तक रही वित्तीय प्रबंधन की बात, इस समुदाय का प्रबंधन से दूर-दूर तक का कोई नाता नहीं होता है. अधूरे निर्माणित घर और अत्यधिक ऋण का भार इस बात का प्रमाण हैं कि समुदाय में वित्तीय प्रबंधन की कमी हमेशा से व्याप्त है. ये समुदाय आज की विलासिता को पूर्ण करने हेतु कल की योजना पर ध्यान नहीं देती है. इस लॉकडाउन से जहां बच्चों, गर्भवती-धात्री के स्वास्थ्य सुविधाओं   और पढ़ाई में खासा प्रभाव पड़ रहा है, वहीँ कई ऐसे परिवार हैं जो इस आर्थिक मंदी में ऋण के भागीदारी हो रहे हैं और इस दौर से उभरने हेतु कहीं कहीं अपनी लड़कियों को वेश्यावृत्ति में डालने के लिए तैयार बैठे हैं क्योंकि हर आर्थिक स्थिति का निवारण बेड़िया समुदाय के लिए अंत में वेश्यावृत्ति ही होता है.

(लेखिकाएं संवेदना,भोपाल से जुड़ कर काम करती हैं )

 

  (यह लेख साझी बात (अंक 30) में  प्रकाशित हुआ है, पूरे अंक को इस लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं )


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