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सरकारी स्कूल में बेटी के साथ खाना खाते कलेक्टर की तस्वीरें एक मिसाल हैं



2015 में इलाहाबाद हाईकोर्ट का एक तड़कता-भड़कता निर्देश आया. यूपी के पूरे सरकारी महकमे में हड़कंप मच गया. निर्देश था ही खतरनाक. कहा गया था कि सभी सरकारी कर्मचारी और अधिकारी अपने बच्चों का एडमिशन सरकारी स्कूलों में करवाएं. आम आदमी के लिए तो ये खबर जैसे राम राज्य का आगमन था. मगर सरकारी अधिकारी जिनके बच्चे एकदम भौकाली अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ रहे थे, वो टेंशन में आ गए. हाईकोर्ट की मंशा ये थी कि अधिकारियों के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ेंगे तो वहां के हालात खुद ही सुधर जाएंगे. मगर न कोई अधिकारी ही इस निर्देश पर सामने आया और न ही कोई ऐसा एडमिशन हुआ. ये तो बात हो गई उत्तर प्रदेश की और वहां के अधिकारियों की.


जुलाई में अवनीश ने अपनी बेटी का एडमिशन प्राइमरी स्कूल में करवाया था.

अब बात छत्तीसगढ़ की. जुलाई 2017 की बात है. जगह बलरामपुर. यहां के कलेक्टर अवनीश कुमार शरण ने वो कर दिखाया जो यूपी के अधिकारी निर्देश के बावजूद नहीं कर पाए थे. उन्होंने अपनी बच्ची का एडमिशन बलरामपुर के ही सरकारी स्कूल में करवाया. अवनीश की इस पहल की हर तरफ तारीफ हुई. अब एक बार अवनीश फिर चर्चा में हैं. उनकी एक फोटो वायरल हो रही है. इसमें वो अपनी बेटी के साथ सरकारी स्कूल में बैठकर ही मिड डे मील खा रहे हैं और बच्ची को भी खिला रहे हैं.
अवनीश ने अपनी इस पहल पर कहा था कि ये बात मीडिया के लिए एक खबर हो सकती है, लेकिन मेरे लिए तो सिर्फ एक कर्तव्य है. इस पहल से हो सकता है लोग सरकारी स्कूलों की शिक्षा से जुड़ें. अवनीश ने इससे पहले अपनी बच्ची को एक साल तक आंगनबाड़ी में भी पढ़ने के लिए भेजा था. भरोसा करना मुश्किल होता है, पर अवनीश ने ऐसा ही किया है.

कलेक्टर अवनीश को एक साफ छवि का अधिकारी माना जाता है.

सच कहें तो ये पहल इतनी अच्छी है कि जितनी तारीफ की जाए कम है. सरकारी स्कूलों की खराब हालत के पीछे साफ तौर पर सरकारी अमला ही जिम्मेदार होता है. अगर हर जिले के बड़े अधिकारी मसलन डीएम, एसपी, डीआईओएस वगैरह अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़वाएं तो नीचे बैठे अधिकारियों पर खुद दबाव बनेगा कि वो स्कूलों पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान दें. कोई बड़ा मंत्री या अधिकारी किसी जगह दौरे पर जाता है तो वहां सारी चीजें एकदम टनाटन हो जाती हैं. सड़कें बन जाती हैं. रजिस्टर मेनटेन हो जाते हैं. वगैरह-वगैरह. यही स्कूलों में भी हो सकता है. बशर्ते हर जिले के बड़े अधिकारी और नेता मुहिम छेड़ें. ऐसा करने में मुश्किल लग रही हो तो अवनीश को देख लें.

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