मध्यप्रदेश लोक सहभागी साझा मंच

बाल उत्सव 2014:- बच्चों ने कहा .‘‘”सुरक्षा हमारा हक”


भोपाल, दिनांक  23 जून, 2014 - बच्चों के अधिकारों के लिए कार्यरत संस्था (क्राई) चाइल्ड राइट्स एंड यू  और मध्य प्रदेश लोक संघर्ष साझा मंच द्वारा मध्य प्रदेश में बाल सुरक्षा की राह में सामने आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालने और उनके बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए थिएटर फेस्टिवल का आयोजन किया गया।

सुरक्षा हमारा हक, बाल उत्सव के दौरान मध्य प्रदेश के विभिन्न जिलों से आए 6-14 वर्ष की उम्र के 50 बच्चों ने सुरक्षा के अधिकार पर अपनी आवाज को थियेटर के माध्यम से बुलंद किया। कार्यक्रम में बच्चों ने अपने उन अनुभवों और उम्मीदों को पेश किया, जो उन्हें “चिल्ड्रेंस कलेक्टिव के दौरान प्राप्त हुई है। बच्चों द्वारा निम्नलिखित विषयों पर प्रस्तुति दी गई।

बाल विवाह
बाल मजदूरी
गुमशुदा बच्चे

बच्चों द्वारा पेश  किए गए तीन नाटकों गुमशुदा बचपन,काम नहीं किताब,आज है मेरी शादी, में दिखाया गया कि किस तरह से बचपन इन समस्याओं से जूझ रहा है।

थिएटर फेस्टिवल से पूर्व तीन दिवसीय थियेटर कार्यशाला का आयोजन किया गया था जिसमें इन बच्चों को वाल्टर पीटर (पूर्व सदस्य थियेटर इन एजुकेशन एन.एस.डी. द्वारा प्रशिक्षण दिया गया।

बच्चों द्वारा तीनों  नाटकों की प्रस्तुति के बाद उभर के आये मुद्दों पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया जिसके पैनल सदस्यों में संबंधित विभागों एवं आयोगों के प्रतिनिधियों ने अपने विचार रखे। इस चर्चा का उद्देष्य था कि, प्रदेश  में बाल सुरक्षा को लेकर आ रही रूकावटों पर समझ बनाते हुए कैसे बाल सुरक्षा के तंत्र एवं प्रक्रियाओं को मजबूत बनाया जाए।

चर्चा के दौरान क्राई के जनरल मैनेजर सुभेन्दु भट्टाचार्जी ने कहा कि,”बाल सुरक्षा, बाल अधिकारों के अन्य आयामों के साथ गहनता से जुड़ी हुई है। सुरक्षा के अधिकारों के हनन के दुष्परिणाम स्वरूप बच्चों में सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक,असुरक्षा की भावना पैदा होती है, इससे अंततः उनका बचपन छिन जाता है। मध्य प्रदेश  में बच्चों के लिए ऐसा सुरक्षित वातावरण तैयार करने की सख्त जरूरत है जहां सभी बच्चे सुरक्षा व गरिमा के साथ रह सकें।“

मध्य प्रदेश  लोक संघर्ष साझा मंच के संयोजक गोविंद यादव ने कहा कि, “मध्य प्रदेश में बच्चों के साथ भेदभाव एक कड़वी सच्चाई है। भेदभाव के कारण बच्चों की देखभाल और सेवाओं तक पहुँच  प्रभावित होती है। चाहे वह शालाओं में उनका बहिष्करण हो या जरूरी स्वास्थ्य सेवाओं तक उनकी पहुंच न हो पाना। भेदभाव के कारण हिंसा और शोषण को भी बढ़ावा मिलता है इसके सबसे ज्यादा शिकार  वंचित समुदाय के बच्चे होते हैं। 

मध्यप्रदेश  में बाल सुरक्षा की जमीनी स्थिति

सरकार द्वारा विधानसभा में दी गई लिखित जानकारी के अनुसार म.प्र में  जनवरी 2008 से मार्च 2013 के बीच कुल 29.828 नाबालिग लड़कियां  गायब हुई हैं जिनमें 4990 लडकियां  अभी तक नही मिली है।

मध्यप्रदेश  बाल मजदूरी के मामले में देश  में 5वें स्थान पर है, यहाँ  8.41 प्रतिषत बाल श्रमिक है । 5 से 14 साल आयु समूह के बच्चों में ‘‘बाल मजदूरी सहभागिता दर 6.71 प्रतिशत है।

म.प्र में पिछले तीन वित्तीय वर्षो (2010-11, से 2013-14, के दौरान कुल बजट आबंटन में बच्चों के लिए हिस्सेदारी लगातार 15 से 17 फीसदी ही रही है। वित्तीय वर्ष 2013-14 में बच्चों के लिए आबंटित कुल बजट में से बाल विकास के लिए 16 प्रतिशत, बाल षिक्षा के लिए 33 प्रतिषत तथा बाल सुरक्षा के लिए 1 प्रतिशत और बाल स्वास्थ के लिए कोई राशि  आवंटित नही की गई है। 

कार्यक्रम के अंत में संस्थाओं द्वारा मांगपत्र प्रस्तुत किया गया जिसकी प्रमुख मांगे निम्नलिखित है -

     
प्रदेश  में बच्चों के लिए सुरक्षित वातावरण तैयार किया जाए ताकि यहाँ  बच्चे शोषण, हिंसा से महफूज रह सकें। इसके लिए प्राथमिकता से बाल संरक्षण के लिए गांव से लेकर प्रदेश स्तर तक बनाए गए ढांचों को मजबूत किया जाये। साथ ही साथ बच्चों की शोषण, हिंसा और दुव्र्यवहार से रक्षा करने वाले सभी कानूनों को कठोरता से लागू किया जाए, जैसे कि बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006  बाल मजदूरी निवारण एवं उन्मूलन अधिनियम 1986 प्रीवेन्षन ऑफ़  चाइल्ड सेक्सुअल ओफेन्स 2013 (POCSO) आदि।

प्रदेश  के प्रत्येक गांव एवं ब्लाक  स्तर पर ग्राम बाल संरक्षण समिति एवं ब्लाक  बाल संरक्षण समिति का गठन किया जाए। 

गुमशुदा बच्चों पर प्रभावी रोक थाम के लिए मानव तस्करी विरोधी सेल (एंटी ह्यूमैन ट्रेफिंकिग सेल) को प्रभावी रुप से क्रियाषील बनाया जाये और जिन जिलों में सेल नहीं है वहां गठित किया जाए।

यह सुनिष्चत किया जाए कि सभी पुलिस थानों में गुमशुदा बच्चों की रिपोर्ट अनिवार्य रूप से दर्ज हो एवं सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन के अनुसार प्रत्येक गुमषुदा बच्चे की रिपोर्ट को ही प्रथम सूचना रिपोर्ट माना जाएगा।

प्रदेश  में एसओपी (स्टेंडर्ड आॅपरेटिंग प्रोसीजर) के मानकों को लागू किया जाए।

प्रदेश  के प्रत्येक जिले में सी.डब्ल्यू.सी. की बैठकों के समय एवं दिन में एकरुपता हो।

बाल विवाह को रोकने के लिए स्थानीय निकायों एवं समाज की भूमिका भी सुनिष्चित किया जाए।

प्रदेश  के बाल श्रम सघन क्षेत्रों में बाल मजूदरी में लगे बच्चों को शिक्षा  से जोड़ने के लिए शासकीय शालाओं एवं सरकारी सहायता से चल रहे अन्य संस्थाओं में रोजगारोन्मुखी प्रषिक्षण की वैकल्पिक व्यवस्था की जाये। इससे इन बच्चों को शिक्षा  से जुड़ने में मदद मिलेगी


वर्तमान में बच्चों के लिए बाल सुरक्षा का बजट बहुत कम है इसे बढ़ाया जाये और व्यय भी किया जाये।




‘Suraksha Humara Haq’- Voices of children through theatre on the issue of protection



Bhopal, 23rd June, 2014- A one day children’s festival on the issue of child protection was organised by CRY- Child Rights and You and its state alliance MPLSSM- Madhya Pradesh Lok Sangharsh Sajha Manch. In its third year, the theatre festival was focused to highlight the gaps and create awareness on the issue of child protection.

‘Suraksha Humara Haq’ voiced the opinion of almost 50 children in the age group of 6-14 years from different districts of Madhya Pradesh. The children presented their stories of hope and despair which they face in their day to day life, through the process of ‘children’s collective’ which emphasizes on issues pertaining to children. In this one day festival, children presented three short plays on the following themes:

·       Child Marriage
·       Child Labour
·       Missing Children

The three plays were named ‘Gumshuda Bachpan’, ‘Kaam Nahin Kitab’ and ‘Aaj Hai Meri Shaadi’ respectively and they put forth the need for strong child protection mechanism in the state of Madhya Pradesh.

A three days theatre workshop facilitated by Mr. Walter Peter (Ex Member, TIE, National School of Drama) culminated in sharing their experiences of bringing about lasting change in their own lives & in the communities they live in.

After the presentation of plays, a panel discussion also formed a part of children’s festival. The objective of the discussion was to understand the gaps and way forward to strengthen child protection mechanism in the state.

Subhendu Bhattacharjee, General Manager, Development Support, CRY- Child Rights and You, said “Child protection is integrally linked to every other right of the child. The failure to ensure children’s right to protection adversely affects their development and also puts them into social, psychological, emotional insecurity and distress which results in loss of childhood. There is an urgent need to create a protective environment in Madhya Pradesh in which a child is assured of living in safety and dignity.”  

  
Govind Yadav, Convener, MPLSSM- Madhya Pradesh Lok Sangharsh Sajha Manch, said “Discrimination is a daily reality for thousands of children in Madhya Pradesh. When children are discriminated against, they can be denied access to essential care and services. They can also be excluded from school or unable to get essential medical treatment.  Discrimination often results in violence and exploitation and minority or excluded groups are the worst affected.”

Status of Child Protection in MP

According to data given in MP assembly, the number of missing girls between Jan, 2008 to Mar, 2013 was 29,828 and in these 4990 girls are still missing

Madhya Pradesh is at 5th place in terms of child labour, there are 8.41% child labours in the state. Child labour participation ratio is 5%

Last four financial state budgets for children were between 15 to 17% of total budget. In the last financial year, 16% of allotted budget for children was for development, Education constituted for 33%, protection was 1% and health was nil


Some of the specific demands that were presented to the panelists were:

·       Create a protective environment for Children for protecting children from abuse, violence & exploitation.

·       Strengthening of Child Protection structures at all levels –the village, block & district child protection units including capacity building programmes under ICPS, for functionaries at different levels.

·       Ensure formulation of Standard Operating Procedures for Missing Children in the State.

·       Activation of Anti-human trafficking cell across all districts in the State.

·       Make it mandatory for police stations across the state to compulsorily register missing complaints of any children and appoint a special police officer to handle complaints of juveniles, as per the guidelines of the Hon. Supreme Court. Each missing child report must be converted into FIRs.

·       To identify vulnerable families through district-level assessment under ICPS and strengthening of non-institutional care, including sponsorship & foster care.


·       Enforcement of all legislations for protection of children from abuse, violence and exploitation; for example, effective implementation of Prohibition of the Child Marriage Act, 2006; Child labour prohibition & regulation Act, 1986; the POCSO Act, 2012 etc.


HT Bhopal, 25 June,2014



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