अंशु
मालवीय
कालीन कारख़ाने में बच्चे,
खाँस्ते हैं
फेफड़े को चीरते हुए
उनके नन्हें गुलाबी फेफड़े
गैस के गुब्बारों से थे,
उन्हें खुले आकाश में
उड़ा देने को बेचैन –
मौत की चिड़िया
कारख़ानों में उड़ते रेशों से
उनके उन्हीं फेफड़ों में घोंसला बना रही है ।
ज़रा सोचो
जो तुम्हारे खलनायकीय तलुओं के नीचे
अपना पूरा बचपन बिछा सकते हैं,
वक्त आने पर
तुम्हारे पैरों तले की ज़मीन
उड़स भी सकते हैं ।
खाँस्ते हैं
फेफड़े को चीरते हुए
उनके नन्हें गुलाबी फेफड़े
गैस के गुब्बारों से थे,
उन्हें खुले आकाश में
उड़ा देने को बेचैन –
मौत की चिड़िया
कारख़ानों में उड़ते रेशों से
उनके उन्हीं फेफड़ों में घोंसला बना रही है ।
ज़रा सोचो
जो तुम्हारे खलनायकीय तलुओं के नीचे
अपना पूरा बचपन बिछा सकते हैं,
वक्त आने पर
तुम्हारे पैरों तले की ज़मीन
उड़स भी सकते हैं ।
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