मध्यप्रदेश लोक सहभागी साझा मंच

स्कूल

-हमारे स्कूल बच्चों को सिखाते हैं हैं कि संदेह , उलझन और सवाल करना गलत बात होती है .


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स्कूल हमारे बच्चों को बताते हैं कि अनभिज्ञ होना अपराध है .


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स्कूल बच्चे को सिखाते हैं कि किसी बात को रट कर ज्यों का त्यों लिख देना ही ज्ञान है .
किसी बात को रट न पाने वाले के साथ हिंसा करना ही एक मात्र रास्ता है .


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स्कूल बच्चे को सिखाते हैं कि जो व्यक्ति हमारे जैसी योग्यता वाला नहीं है उसे पीटा जाना चाहिए या उसे सबके सामने ज़लील किया जाना चाहिए . क्योंकि शिक्षक उनके सामने यही करते हैं . जिस बच्चे को याद नहीं होता उसे मारा जाता है या ज़लील किया जाता है .

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स्कूलों में बच्चे के आत्मविश्वास को बुरी तरह कुचल दिया जाता है . उसे बताया जाता है कि तुम जो जानते हो वो सब गलत और बकवास है . सही वही है जो शक्तिशाली बताता है . और कक्षा में सबसे शक्तिशाली शिक्षक है 

स्कूल सिखाते हैं कि तुम्हे शक्तिशाली को प्रसन्न रखना है . यानी अपने शिक्षक को खुश रखना है . इस तरह हम बचपन से ही लोकतंत्र की पहली धारणा को कुचल देते हैं . जबकि लोकतंत्र का पहला सूत्र है कि कि सभी बराबर होते हैं .

स्कूल में बच्चे को अपने आस पास के लोगों के साथ बात करने की मनाही होती है . बच्चे को बताया जाता है कि तुम्हारी शिक्षा का एक मात्र उद्देश्य अपने आसपास के विद्यार्थियों को हराना है . इस तरह बच्चा अपने समाज को अपना शत्रु मानने लगता है .

बच्चे को आस पास देखने के लिए भी सज़ा दी जाती है, मेरी बेटी के प्रिंसिपल ने मुझसे शिकायत करी कि आपकी बेटी स्कूल में खिड़की के बहार देखती रहती है . मैंने अपनी बेटी को उस स्कूल से निकाल लिया था . स्कूल हमारे बच्चे को सिखाते हैं कि आपको अपने आस पास से बिलकुल अपना स्विच आफ कर लेना है . अब बच्चा जीवन भर अपने आस पास से कट जाता है . अब बच्चे को दादा दादी , चिड़िया फूल , मौसम में कोई आनंद नहीं आता , अब बच्चा एक ऊबा हुआ प्राणी बन जाता है जिसे ऊब मिटाने के लिए मोबाइल , वीडियो गेम , कारें और अंत में नशा चाहिए . 


-इस तरह स्कूल हमारे बच्चे को एक हिंसक ऊबा हुआ असामाजिक प्राणी बना देते हैं .


-ऐसे बच्चों से जो समाज बनता है वह हिंसक और मतलबी समाज बनता है . 

उड़ान से साभार 


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