मध्यप्रदेश लोक सहभागी साझा मंच

प्रेस विज्ञप्ति- शिक्षा के अधिकार पर राज्य स्तरीय सम्मलेन संपन्न

-यदि सभी बच्चे स्कूल में दाखिल हुए तो समझिये यही है सच्चा लोकतंत्र : शांता सिन्हा-


शिक्षा के अधिकार कानून के लागू होने के तीन साल बाद भी देश में इसके क्रियान्वयन की स्थिति संतोषजनक नहीं है, यहाँ तक कि बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे देश भी इस मामले में हमसे बहुत आगे हैं | यदि देश में गैर बराबरी की खाई को पाटना है तो यह जरुरी है कि प्रत्येक बच्चे को शिक्षा से जोड़ना होगा | यदि यह हुआ, बच्चों को उनके अधिकार मिले, आजादी मिली तो समझिये कि देश को दूसरी आजादी मिल जायेगी | मध्यप्रदेश को इस दिशा में अभी लंबा सफ़र तय करना है | यह बात शिक्षाविद एवं राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की पूर्व अध्यक्ष सुश्री शांता सिन्हा ने टीटीटीआई सभागार में  मध्यप्रदेश लोक संघर्ष साझा मंच  व बीजीव्हीएस के मुख्य आयोजन व अन्य सहयोगी संस्थाओं के संयुक्त तत्वाधान में शिक्षा के अधिकार कानून के सम्बन्ध में आयोजित राज्य स्तरीय सम्मलेन में कही | 

इसके पूर्व मशहूर शिक्षाविद व सदस्य, केंदीय शिक्षा सलाहकार परिषद, दिल्ली के विनोद रैना ने कहा कि
कानून के क्रियान्वयन में आ रही कमियों के पीछे केंद्र व राज्य सरकारों की मानसिकता है | तीन साल पूरे हो जाने के बाद कानून के लगातार उल्लंघन के साथ आज भी सरकारें इस महत्वपूर्ण कानून को अधिकार के रूप में नहीं बल्कि एक सेवा के रूप में देखती हैं | केंद्र और राज्य के बीच में एक बड़ा विवाद बजट आवंटन का भी है | केंद्र सरकार से वर्ष 2010 के बाद से अपने हिस्से का 34,000 करोड़ रुपया नहीं दिया है | उन्होंने पंचायत से लेकर ब्लाक, जिला व राज्य स्तरीय मासिक संवाद पर जोर दिया |

राज्य सरकार की तरफ से आये शिक्षा का अधिकार कानून के राज्य प्रभारी रमाकांत तिवारी ने कहा कि प्रदेश में तकरीबन 80,000 शिक्षकों की कमी है, 90,000 स्कूलों में अभी भी बाउंड्री वाल नहीं है, 10,000 स्कूलों में पेयजल की सुविधा आज तक भी उपलब्ध नहीं है पर सरकार द्वारा इस दिशा में प्रयास किये जा रहे हैं | तिवारी ने यह भी कहा कि सरकार ने नामांकन का लक्ष्य 99 प्रतिशत तक हासिल कर लिया है लेकिन इसे लेकर लोगों ने सवाल खड़े किये | रीवा जिले के जवा विकास खंड के घूमन गाँव का सवाल आया कि वहां पर स्कूल नहीं है और वहां के सारे बच्चे स्कूल से बाहर हैं तो यह कैसे सत्य है |

सम्मलेन में सात अलग-अलग संस्थाओं एमपीएलएलएसएम, बीजीव्हीएस, बचपन, विकास संवाद, अरण्य, मुस्कान, चाइल्ड राइट्स ओब्जर्वेटरी, क्राई ने अपने अध्ययनों के निष्कर्ष रखे गये, जिससे यह सामने आया कि भी नामांकन में बहुत अंतर है, 61 प्रतिशत शालाओं में दाखिले के लिए दस्तावेजों की मांग की जा रही है, मध्यान्ह भोजन में जाति आधारित भेदभाव, अधोसंरचना की खराब स्थिति, स्कूलों में शौचालय न होना, शिक्षकों की अनुपलब्धता, बच्चों को दंड दिए जा रहे हैं |

सम्मलेन में प्लेटफार्म पर रहने वाले बच्चे, घरों में काम करने वाली बालिकाएं, पन्नी बीनने वाले बच्चों तथा घुमंतू जातियों जैसे पारधी के बच्चों को शिक्षा सबसे बड़ी चुनौती के रूप में सामने आया है | यह भी सामने आया कि पूरे प्रदेश में भेदभाव के बहुत से प्रकरण सामने आ रहे हैं | सतना के स्कूल में मध्यान्ह भोजन दूर से फेंक कर दिया जाता है | भोपाल से यह सामने आया कि शाला प्रबंधन समिति के चुनाव में शिक्षक द्वारा जातिसूचक शब्दों द्वारा अपमानित कर उन्हें शाला प्रबंधन समिति में शामिल नहीं होने दिया | पारधी बच्चों को चोर कह कर संबोधित किया जाता है और उन्हें सरकारी स्कूलों में उन्हें दाखिला नहीं दिया जाता है | डिंडौरी से सामने आया कि शौचालय न होने की स्थिति में बच्चों को किचन शेड में ही पेशाब करना पड़ रहा है|

इसके पूर्व सरकार को आड़े हाथों लेते हेतु राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य वंदना प्रसाद ने
कहा कि यदि तीन साल बाद भी आज यह स्थिति है तो यह शर्मनाक है | सरकार को चाहिए कि वह इस कानून की निगरानी को लेकर गंभीरता दिखाए | उन्होंने आश्वासन दिया  कि यदि आप कोई भी प्रकरण आयोग तक भिजायेंगे तो वह उस पर त्वरित कार्यवाही करेंगी |

इस सम्मेलन में प्रदेश भर के संस्था/संगठन के प्रतिनिधि समेत 250 लोगों के साथ सुश्री नीतू सारंग, एनसीपीसीआर, सुश्री किरण भट्टी, सेंटर फार पोलिसी रिसर्च, सुश्री अरुणा गुप्ता, डिप्टी कमिश्नर, राज्य शिक्षा केंद्र ने भागीदारी की और अपने मूल्यवान सुझाव दिए |

सम्मलेन में संस्थाओं व् संगठनों द्वारा किये गये अध्ययनों के निष्कर्षों के आधार पर कानून के बेहतर क्रियान्वयन के लिए संयुक्त मांगपत्र प्रस्तुत किया जाएगा | इसे तैयार कर आगामी दिनों में राज्य सरकार के जवाबदेह विभागों को सौंपा जाएगा |



राज एक्सप्रेस भोपाल 11 July 2013 


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