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माताओं के लिए खुशहाल जगह नहीं भारत


भारत मध्यम आय वाले उन देशों में शामिल है जहां माताओं की स्वास्थ्य संबंधी देखभाल और बेहतरी की ओर समुचित ध्यान नहीं दिया जाता।

बाल अधिकार संगठन 'सेव द चिल्ड्रन' की एक रिपोर्ट के अनुसार, 'मां बनने के लिए सर्वोत्तम स्थान' की सूची में शामिल 77 देशों में भारत का स्थान 73 वां है। 'स्टेट ऑफ द व‌र्ल्ड्स मदर्स 2010' नामक रिपोर्ट में सर्वाधिक चौंकाने वाली बात यह है कि भारत का स्थान हिंसाग्रस्त अफ्रीकी देशों केन्या और कांगो से भी नीचे है।
मदर्स इंडेक्स के मामले में क्यूबा सर्वोपरि है। इसके बाद इस्त्राइल, अर्जेंटाइना, बारबाडोस, दक्षिण कोरिया, साइप्रस, उरूग्वे, कजाखस्तान, बहामास और मंगोलिया हैं।

रिपोर्ट में भारत के पड़ोसी देशों में चीन 18 वें स्थान पर, श्रीलंका 40 वें स्थान पर है जबकि पाकिस्तान भारत के बाद 75 वें स्थान पर है। अल्प विकसित देशों की सूची में 40 वां स्थान पाने वाला बांग्लादेश 'स्टेट ऑफ द व‌र्ल्ड्स मदर्स 2010' की सूची में 14 वें स्थान पर है।

रिपोर्ट में कुल 166 देशों का विश्लेषण किया गया। इनमें स्वीडन शीर्ष पर और अफगानिस्तान बिल्कुल नीचे है। रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मियों की कमी, खास कर अ‌र्द्ध शहरी और ग्रामीण गांवों में प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मियों की कमी की वजह से देश में स्वास्थ्य प्रणाली की हालत कमजोर है। भारत में अ‌र्द्ध शहरी और गांवों की बहुलता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 74,000 मान्यताप्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं [एक्रिडिटेड सोशल हेल्थ एक्टिविस्ट] [आशा] की और 21,066 ऑग्जिलरी नर्स मिडवाइफ्स [एएनएम] की कमी है।

सरकारी मानदंडों के अनुसार, मैदानी इलाकों में 1000 की आबादी पर एक आशा कार्यकर्ता और 5000 की आबादी पर एक एएनएम होना चाहिए। ग्रामीण इलाकों में 3000 की आबादी पर एक एएनएम होना चाहिए।
'सेव द चिल्ड्रन' की 'डायरेक्टर ऑफ एड्वोकेसी' शिरीन वकील मिलर ने कहा कि भारत के प्रमुख कार्यक्रम 'नेशनल रुरल हेल्थ मिशन' [एनएचआरएम] में महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को प्राथमिकता दी गई है लेकिन अब भी उनकी बहुत कमी है और इसे दूर करने के लिए प्रशिक्षण जरूरी है।

उन्होंने कहा कि हमें स्वास्थ्य कर्मियों की कमी दूर करनी होगी और महिलाओं को ही महिलाओं तथा बच्चों को बचाने के लिए आगे आना होगा। मिलर ने कहा कि महिलाओं के स्वास्थ्य का सीधा संबंधी उनकी शैक्षिक स्थिति और सामाजिक-आर्थिक स्थिति से है। भारत में मातृ मृत्युदर कम हो रही है इसके बाद भी हर साल हजारों महिलाएं केवल इसलिए मौत के मुंह में जाती हैं क्योंकि उनकी पहुंच मूलभूत स्वास्थ्य सुविधाओं तक नहीं हो पाती और अगर उनकी पहुंच होती भी है तो स्वास्थ्य सुविधाएं का स्तर अत्यंत कमजोर होता है।

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