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शिक्षा में विकलांगों को आरक्षण का संशोधन बिल रास में पारित


नई दिल्ली (एसएनबी)। नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा के तहत शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर बच्चों को आरक्षण के दायरे में लाने संबधी संशोधन विधेयक 2010 को राज्यसभा ने ध्वनिमत से पारित कर दिया। इस विधेयक में प्रावधान किया गया है कि अल्पसंख्यक संस्थानों में प्रबंधन समितियों की भूमिका केवल सलाहकार की होगी। इस विधेयक के पारित होने के बाद विद्यालयों में गरीब बच्चों के लिए आरक्षण के दायरे में मानसिक एवं शारीरिक रूप से अक्षम बच्चे भी आएंगे।

 विधेयक पर चर्चा के बाद जवाब देते हुए केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा कि इस विधेयक से अल्पसंख्यक संस्थाओं के प्रबंधन के अधिकार कम नहीं होंगें। बच्चों को नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अधिकार संबंधी कानून को उच्चतम न्यायालय ने वैध ठहराया है तथा कानून की दृष्टि से यह अंतिम राय है। सिब्बल ने केंद्रीय शिक्षण संस्थाओं में आरक्षण कानून 2006 में संशोधन के लिए भी एक विधेयक पेश किया। इसमें ऐसी संस्थाओं में प्रवेश में आने वाली कुछ विसंगतियों को दूर किया गया है तथा आरक्षण के प्रावधान लागू करने की समयावधि वर्ष 2007 के बाद तीन वर्ष से बढ़ाकर छह वर्ष कर दी गई है। इससे पूर्व इस विधेयक को सदन में पेश करते हुए सिब्बल ने कहा कि अप्रैल 2010 में लागू इस विधेयक को स्थाई समिति के पास भेजा गया था और समिति की अधिकतर सिफारिशों को समाहित करते हुए यह संशोधन विधेयक लाया गया है। इसमें कमजोर वर्ग के बच्चे की परिभाषा स्पष्ट की गई है और मदरसों एवं वैदिक स्कूलों को कानून के दायरे से बाहर रखा गया है। विधेयक में संशोधनों को लेकर विपक्ष ने भी समर्थन किया। चर्चा में भाग लेते हुए भाजापा के कप्तान सिंह सोलंकी ने आशंका जाहिर की कि निजी स्कूल कमजोर वर्ग के बच्चों को किसी न किसी तरह हतोत्साहित कर स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर कर सकते हैं।

 कांग्रेस के भाल चंद्र मुंगेकर ने कहा कि वि के सभी औद्योगिक देशों में समान स्कूल शिक्षा पण्राली लागू है। हमें भी इसे लागू करना चाहिए। माकपा के पी राजीव ने कहा कि इस विधेयक में विकलांगता की परिभाषा स्पष्ट नहीं है। उन बच्चों को भी इस परिभाषा में शामिल किया जाना चाहिए जो स्कूली किताबें पढ़ नहीं पाते और मंदबुद्धि के कारण चीजों को धीरे-धीरे सीख पाते हैं। जद (यू) के शिवानंद तिवारी ने कहा कि देश के 42 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। कुपोषण के कारण विकलांगता होती है तो ऐसे बच्चों को भी विकलांग बच्चों की श्रेणी में शामिल किया जाना चाहिए।

 विकलांग बच्चों के लिए स्कूलों तथा विशेष शिक्षकों की व्यवस्था होनी चाहिए तथा स्कूलों में उनके पठन-पाठन की सुविधा की व्यवस्था की जानी चाहिए। तृणमूल कांग्रेस के डी बंदोपाध्याय ने कहा कि अगर पेट भूखा है तो ज्ञान की भूख दूर नहीं की जा सकती। सपा के नरेश अग्रवाल ने भी कहा कि पहले सरकार को सबके लिए खाद्यान्न विधेयक लाना चाहिए तभी सबके लिए शिक्षा संभव है। उन्होंने विकलांग बच्चों के लिए रोजगार तथा मदरसे से पढ़े लिखे लोगों को मान्यता देने की भी मांग की। तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन एवं निर्दलीय सांसद मुहम्मद अदीवने अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थाओं के प्रबंधन अधिकार को लेकर कई आशंकाएं व्यक्त की। उन्होंने कहा कि कानून में जिन सलाहकार समितियों के गठन का प्रावधान है, वह टकराव का कारण बन सकता है।

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