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दुनिया में सबसे 'घटिया' शिक्षा वाली इन सूचियों में भारत कहीं दूसरे नंबर पर तो कहीं अव्वल है



विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में भारत उन 12 देशों की लिस्ट में दूसरे नंबर पर है जहां दूसरी कक्षा का कोई छात्र एक छोटे से वाक्य का एक शब्द भी नहीं पढ़ पाता


विश्व बैंक की एक नई रिपोर्ट भारत में शिक्षा के स्तर पर गंभीर सवाल उठाती है. मंगलवार को जारी हुई संस्था की ‘वर्ल्ड डिवेलपमेंट रिपोर्ट 2018’ में भारत उन 12 देशों की लिस्ट में दूसरे नंबर पर है जहां दूसरी कक्षा का कोई स्टूडेंट एक छोटे से वाक्य का एक शब्द भी नहीं पढ़ पाता. इस श्रेणी में भारत से ऊपर केवल मलावी है. इसके अलावा भारत उन सात देशों की लिस्ट में पहले स्थान पर है जहां दूसरी कक्षा के छात्र दहाई के अंकों का घटा भी नहीं जानते.
रिपोर्ट में विश्व बैंक ने कहा है, ‘ग्रामीण भारत में तीसरी कक्षा के तीन-चौथाई छात्र दहाई के अंकों का घटा (जैसे 46 में से 17 घटाना) नहीं कर पाते, और कक्षा पांच के आधे स्टूडेंट ऐसा नहीं कर पाते.’ रिपोर्ट के मुताबिक़ 2010 में आंध्र प्रदेश के एक स्कूल में पांचवीं कक्षा के छात्र पहली कक्षा के एक सवाल का सही जवाब नहीं दे पाए. रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि स्कूल में सालों बिताने के बाद भी लाखों बच्चों को पढ़ना-लिखना नहीं आता और वे मूल गणित तक नहीं जानते. इसमें लिखा है, ‘सीखने का संकट सामाजिक खाइयों को कम करने के बजाय उन्हें बढ़ा रहा है.’
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 2016 में ग्रामीण भारत में पांचवीं कक्षा के बच्चे अपनी स्थानीय भाषा की दूसरी कक्षा के पाठों के वाक्य भी बिना रुके नहीं पढ़ सकते. विश्व बैंक का कहना है कि बिना कुछ सीखे स्कूली शिक्षा न सिर्फ़ व्यर्थ है, बल्कि यह दुनियाभर के बच्चों के साथ अन्याय भी है. रिपोर्ट में उसने कहा है कि इन देशों में लाखों छात्र मौक़े तलाशते रहते हैं और बाद में कम आय में जीवन बिताते हैं. ऐसा इसलिए कि प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा उन्हें जीवन में सफल होने की शिक्षा देने में असफल हो रही है. रिपोर्ट जारी करने के मौके पर विश्व बैंक के अध्यक्ष जिम योंग किम ने कहा कि इन बच्चों को सही शिक्षा देने में वे समाज असफल हुए हैं जिन्हें अच्छी शिक्षा देने की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है.
किम ने कहा कि सीखने का यह संकट ही ‘नैतिक और आर्थिक संकट है.’ उन्होंने कहा, ‘अच्छी तरह से मिली शिक्षा युवाओं को रोज़गार, बेहतर आय, अच्छा स्वास्थ्य और बिना ग़रीबी का जीवन देती है.’ रिपोर्ट में लिखा है कि ग़रीबी, संघर्ष, लिंग या अक्षमता की वजह से पहले वंचित स्टूडेंट सबसे ज़रूरी मूल योग्यताओं के बिना ही युवा हो जाते हैं. बैंक ने इन विकासशील देशों के इस संकट को दूर करने के लिए एक मज़बूत नीति बनाए जाने की सिफ़ारिश की गई है.
सत्याग्रह से  साभार 

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