अमिताभ पाण्डेय
Hindustan Times Bhopal- 20 July 2013 |
केन्द्र सरकार द्वारा देश के 12.6 लाख से
ज्यादा स्कूलों में 12 करोड से अधिक बच्चों को खाना खिलाये
जाने की मध्यान्ह भोजन योजना मध्यप्रदेश में चितांजनक स्थिती से गुजर रही है।
केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्रालय की ओर से वर्ष 2012-13 के
सितम्बर माह तक की अवधि में इस योजना का जो सर्वेक्षण करवाया गया वह बताता है कि
देश के 144 से ज्यादा राज्यों में निर्धारित मानक के अनुसार
काम नहीं हो रहा है। विभीन्न राज्यों में हुए सर्वेक्षण के दौरान जिन जिलों में
मध्यान्ह भोजन योजना नियमानुसार संचालित नहीं हो रही उनमें मध्यप्रदेश के 17
जिले भी शामिल है। यदि निष्पक्षता और गहराई से मध्यप्रदेश के सभी 50जिलों में मध्यान्ह भोजन योजना के क्रियान्वयन को जॉचा परखा जाये तो लगभग
हर जिले में हो रही गडबडी सामने आ जायेगी।
मध्यप्रदेश के 17 जिलों में
मध्यान्ह भोजन योजना के प्रति केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्रालय ने तो अब असंतोंष
जाहिर किया है जबकि यहॉ लगभग हर महीने किसी न किसी जिले मे अनियमितताओं के मामले
सामने आते रहते हैं। प्रदेश की राजधानी भोपाल से लेकर दूर सदूर गॉव के सरकारी
स्कूलों में मध्यान्ह भोजन अनेक स्कूली बच्चों के लिए कई बार बीमारी की वजह बना
है। कुछ माह पहले विदिशा जिले के सिरोंज विकासखण्ड अन्तर्गत सोनागॉव स्थित
प्राथमिक और माधयमिक स्कूल में दूषित खाना खाने से 20 से
ज्यादा बच्चे ऐसे बीमार हुए कि उनकों उपचार के लिए भोपाल के हमीदिया चिकित्सालय
में भर्ती करना पडा। सिवनी जिले के एक स्कूल मे मघ्यान्ह भोजन खा रहे बच्चे दाल मे
पडी छिपकली को देखते ही भाग खडे हुए। हाल ही में खंडवा जिला मुख्यालय की शासकीय उर्दू कन्या प्राथमिक में छात्राओं को परोसे गये खाने में चावल के
बीच मरी इल्लियॉ देखी गई। इस चावल को खाने से कुछ छात्राएं बीमार हो गई। दूषित
मध्यान्ह भोजन की जॉच करने मौके पर पहॅुचे नगर निगम के स्वास्थ्य अधिकारी हेमन्त
दुबे ने खाने में इल्लियॉ होने की पुष्टि की ।
उधार इन्दौर में पत्रकारों की टीम
ने 17 जुलाई को शहर एंव आसपास के गॉव में स्कूली बच्चों को
दिये जाने वाले मध्यान्ह भोजन को देखा तो वह भी गुणवत्ता युक्त नहीं मिला। खाना
बनाने वाली जगह पर साफ सफाई भी नहीं थी। भोपाल में तो स्कूली बच्चों को दिये जाने
वाले बेकार खाने की शिकायत राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग तक को कर दी गई । आयोग
के समक्ष मध्यान्ह भोजन योजना से जुडे जिम्मेदार लोगों ने माना कि सडे गेहॅू और घुन लगे दलिया
से तैयार भोजन स्कूली बच्चों को कराया गया है। इसके बावजूद दूषित भोजन खिलाने वाली
संस्था ,इसकी निगरानी के लिए जिम्मेदार अधिकारियों,कर्मचारियों पर कोई कठोर कार्यवाही सुनिश्चित नहीं हो सकी। भोपाल में
मध्यान्ह भोजन बनाने,खिलाने वाले ठेकेदार नंदी फाउन्डेशन को
किचन शेड में गन्दगी,खराब भोजन के लिए दोषी मानते हुए अब तक
कुल 24 बार नोटिस दिये जा चुके हैं। आज तक कार्यवाही नोटिस
से आगे नहीं बढ पाई। हाल यह हो गया है कि मध्यप्रदेश के जिस गॉव शहर के स्कूल में
मध्यान्ह भोजन सेवन से बच्चों के बीमार होने के समाचार आते है उस स्कूल को नोटिस
भेजने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।
मानव अधिकार आयोग,बाल
अधिकार संरक्षण आयोग,शिक्षा विभाग के अधिकारी नोटिस देने का
काम तत्तपरतापूर्वक करते हैं। नोटिस के बाद क्या हुआ ? क्या
प्रभावी कार्यवाही हुई ? दूषित भोजन के लिए जिम्मेदार कौन था
? किस पर क्या कार्यवाही की गई? इन
सवालों के जवाब अकसर मिलते नहीं हैं। नतीजा यह है कि बच्चे मध्यान्ह भोजन खाकर
बीमार पडते और कई बार मरते भी देखे गये लेकिन सरकारी कार्यवाही नोटिस,समझाईश के आगे नहीं बढ पाई। मध्यान्ह भोजन योजना को लेकर नगर,महानगर से गॉव,कस्बों तक कहीं गंभीरतापूर्ण
क्रियान्वयन नजर नहीं आता। बस जैसे तैसे खानापूर्ति की प्रक्रिया चलती रहती है।
शासन ने मध्यान्ह भोजन का जो मैन्यू बनाया है, उसके मुताबिक
तो बच्चों को खाना 15 अगस्त और 26 जनवरी
जैसे राष्ट्रीय पर्व पर भी नहीं मिल पाता है। इस सच्चाई का परीक्षण पाठक खुद भी
अपने अपने इलाके के सरकारी स्कूल में पहॅुचकर कर सकते है।
मध्यप्रदेश के कुछ जिलों में तो मध्यान्ह भोजन योजना में हो रही
गडबडियों की हद यह है कि रीवा और इन्दौर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों के अनेक
स्कूलों में 8-8 दिन तक बच्चे मध्यान्ह भोजन से वंचित हैं। हाल ही में इन्दोर जिले
के उपमाखेडी गांव का मामला सामने आया जहॉ पिछले पॉच दिनों से शासकीय और माध्यमिक
स्कूलों में पढने वाले 360 बच्चों को मध्यान्ह भोजन नहीं
मिला है। बच्चे यह आलेख लिखे जाने वाले दिन तक भूखे ही स्कूलों से घर लौट रहे हैं।
उपमाखेडी में स्कूल के प्राचार्य प्रदीप अभ्यकंर ने जनशिक्षक को मध्यान्ह भोजन
नहीं मिलने की लिखित सूचना देकर अपनी जिम्मेदारी को पूरा मान लिया है। इस क्षेत्र
के लिए मध्यान्ह भोजन योजना के प्रभारी मुकेश वर्मा कहते है कि उनके पास अब तक इस बारे
में शिकायत नहीं आई। वे कहते हैं कि यदि बच्चों को भोजन नहीं मिल रहा हेै तो इसका
निरीक्षण करके कार्यवाही की जायेगी ।
सवाल यह है कि जिस अधिकारी पर इस योजना क बेहतर क्रियान्वयन की
जिम्मेदारी है वह खुद इससे अनजान क्यों बने हुए हैं? जिस जिम्मेदारी के बदले प्रतिमाह
वेतन ले रहे हैं,यदि उसकी उन्हें जानकारी नहीं तो वे शासकीय
सेवा में क्या और केैसे कर रहे हैं? इसकी जॉच कौन करेगा?
प्रसंगवश उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश में पिछले एक वर्ष के दौरान
दूषित भोजन से बीमार हुए बच्चों की संख्या 200से भी अधिक
होगी लेकिन इसके लिए एक भी अधिकारी कर्मचारी को दंण्डित किया गया हो,खाना बनाने वाली संस्था को हटाया गया हो इसकी जानकारी मिलना मुश्किल हैं।
शायद यही कारण है कि मध्यान्ह भोजन के साथ बच्चों को बीमारी परोसने का सिलसिला रूक
नहीं पा रहा है।
जब मध्यान्ह भोजन में गडबडी के मामले समाचार पत्रों से लेकर
मध्यप्रदेश विधानसभा तक में चर्चा का विषय बनते है तो बात आरोप प्रत्यारोप से आगे
नहीं बढ पाती । सरकार दोषी अफसरों,कर्मचारियों को तत्काल दणिडत करने की बजाय ऐसे मामलों
में पल्ला झाडते नजर आती है। कई बार तो ऐसा लगता है कि सरकार में बैठे मंत्री,
मुख्यमंत्री खुद ही दोषी अफसरों, कर्मचारियों
को बचाना चाहते हैं। पिछले दिनों मध्यप्रदेश में प्रमुख विपक्षी दल के नेताओं ने
मध्यान्ह भोजन में गडबडी के एक दर्जन से अधिक मामले विधानसभा में प्रश्नोत्तर,धयान आकर्षण,शून्यकाल के माधयम से उठाये लेकिन सरकार
की तरफ से ज्यादातर मामलों में रटा रटाया और परम्परागत जवाब आया। वह जवाब जिसकी
शुरूवात ही यह कहना सही नहीं हैष् से होती है। ऐसे जवाब के कारण सरकारी अमले में
बेफिक्री,लापरवाही का माहौल बरकरार रहता है और मध्यान्ह भोजन
में गडबडी के शिकार बच्चे बीमार होते ,मरते रहते हैं।
यहॉ यह जिक्र करना जरूरी होगा
कि मध्यप्रदेश में बच्चों की शिक्षा और बाल अधिकारों के लिए काम करने वाले
स्वंयसेवी संगठनों के समूह लोक संघर्ष साझा मंच ने पिछले दिनों एक अधययन रिपोर्ट
जारी की। इस रिपोर्ट में 10 जिलों के 121 में मध्यान्ह
भोजन की स्थिती का आकलन भी किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक भोपाल, दमोह, धार, डिंडोरी, ग्वालियर, इन्दौर, रीवा,
सतना, मण्डला, श्योपुर
जिलों के 121 स्कूलों में 67 स्कूलों के बच्चों को
गुणवत्तायुक्त मध्यान्ह भोजन नहीं मिल पा रहा है । मध्यप्रदेश लोक संघर्ष
साझा मंच के साथ काम कर रहे राजेश भदौरिया,जावेद अनीस,,उपासना बेहार का मानना है कि इस योजना में सुधार के लिए नियमित निगरानी के साथ ही
प्रशासन में समुदाय की भागीदारी बढाना होगा।
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