फ़रीद ख़ाँ
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भूख बनाती है मूल्य।
इस पार या उस पार होने को उकसाती है।
नियति भूख के पीछे चलती है। ढा देती है मीनार।
सभी ईश्वर, देवी-देवता, और पेड़ पौधे, स्तब्ध रह जाते हैं।
भूख रचती है इतिहास...
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