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विस्थापन, पुर्नवास में गुम शिक्षा का अधिकार


अमिताभ पाण्डेय
केन्द्र और राज्य सरकार शिक्षा का अधिकार अधिनियम का पालन करते हुए हर बच्चे को निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने के लिए संकल्पित है। हमारे देश का प्रत्येक बच्चा स्कूल जाये, शिक्षा ग्रहण करे इसके लिये भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में संशोधन करते हुए  21 क में शिक्षा का अधिकार भी मौलिक अधिकार में जोडा गया। शिक्षा का अधिकार समाज के गरीब कमजोर वर्ग के बच्चों को दूर सूदूर, दुंर्गम इलाकों, गॉवों, मजरों, टोलो, फलियों रहने वाले बच्चों को भी मिले यह जिम्मेदारी अब सरकार की, सरकार के प्रतिनिधियों की है। 1 अप्रैल 2010 से देश प्रदेश में लागू हुए इस कानून को दो वर्ष हो चुके है। इन दो वर्षो में निशुल्क एंव अनिवार्य शिक्षा का अधिकार कानून का पालन ग्रामीण इलाकों में किस प्रकार हो रहा है? डूब क्षेत्र से विस्थापित होकर जो वनवासी आदिवासी परिवार पुर्नवास स्थलों में रह रहे हैं, उनके बच्चों को शिक्षा का अधिकार मिल पा रहा है अथवा नहीं? गरीब, कमजोर, वंचित वर्ग के बच्चे शिक्षा का अधिकार अधिनियम से किस प्रकार लाभान्वित हो रहे है। क्या अब भी कुछ ऐसे बच्चे है जो स्कूल नहीं जा पा रहे है? क्या ऐसे बच्चे भी हैं जिनका स्कूल जाना किसी कारणवश बन्द हो गया है?
हमने इन सवालों का जवाब मध्यप्रदेश के हरदा जिले में बनाये गये गुआडी नामक पुर्नवास स्थल पर तलाशने का प्रयास किया है। गुआडी में पहुंचा तो पाया कि शिक्षा का अधिकार तो दूर वहॉ तो बच्चों के, बडों के, महिलाओं के जीने का अधिकार ही मुश्किल में है।
गुआडी वह जगह है जहॉ हरदा जिलें के प्रशासन ने इंदिरा सागर बॉध के बैक वाटर में डूबे 29 से ज्यादा गॉवों के 127 परिवारों को बसाया है। इस पुर्नवास स्थल पर 40 टीन के शेड में दो दो परिवारों को रहने को कहा गया है। यहॉ न जमीन समतल है, न टीन के शेड बेहतर है। बिजली विहीन, आंगनवाडी, स्कूल विहीन, शौचालय विहीन यह पुर्नवास स्थल विषैले जीव जन्तुओं के बीच विस्थापित परिवारों को रहने पर मजबूर कर रहा है। इस स्थल पर लगभग 40 बच्चे ऐसे है जिनकी उम्र पढने योग्य है लेकिन यह बच्चे स्कूल नहीं जा रहे है। राहुल, रमा, टीना, अशोक, भूरी, जैसे अनेक बच्चों का दिन पुर्नवास स्थल पर दिन भर इधर उधर घूमते हुए बीतता है। वे पढना चाहते है लेकिन विस्थापन से पुर्नवास तक की उथल पुथल भरी प्रक्रिया में स्कूल, कापी, किताबें सब कही छूट गई है।
यह स्थिती केवल गुआडी नामक पुर्नवास स्थल की नहीं है। हरदा जिले के डूब प्रभावित गॉव करनपुरा, सेनगुढ, कालीसराय, महनगॉव, गोपालपुरा, मनावा, बिछौला, उवॉ, खरदना, बैसवाडा, जोगा खुर्द, झांझरी, साकटिया, बरमलाय, सुकलीतलाई, देवपुर, डोंगरी, जामदा, सिरालिया, सहित कुछ अन्य गॉवों के बच्चों की पढाई नहीं हो पा रही है। इन बच्चों का स्कूल जाने का, शिक्षा पाने का अधिकार विस्थापन से पुर्नवास के बीच कहीं गुम हो गया है। विस्थापित परिवारों में से एक के मुखिया तोताराम आदिवासी कहते हैं कि जब खाने पीने की व्यवस्था ही नहीं हो पा रही है तो फिर बच्चों की शिक्षा के बारे में कैसे विचार करें?
साब, हमारी जमीन डूब गई, रोजगार छूट गया, घर छोडकर यहॉ जंगल में पडे हैं। ऐसे में शिक्षा की बात तो छोडिये हम हमारे बच्चों का जीवन बचा ले यही बहुत बडी बात है। डूब प्रभावित उवॉ गॉव के रामविलास राठौर का कहना है कि इस क्षैत्र के 200 से ज्यादा बच्चों की पढाई अब बन्द हो गई है। इस बारे में जामदा गॉव का उदाहरण देना उचित होगा। जामदा गांव में रहने वाले परिवारों के दो दर्जन से अधिक बच्चे बिछौला गॉव में पढने जाया करते थे। अब बॉध के बैक वाटर के कारण बच्चों का स्कूल आना जाना बन्द हो गया है। माता पिता भी अपने बच्चों को नाव से दूसरे गॉव के स्कूल में भेजना नहीं चाहते है। देवपुर गांव में बच्चों के माता पिता प्रतिदिन नाव से स्कूल आने जाने के लिए 30 रूपये नाव किराया देने की स्थिती में नहीं है। इस क्षेत्र के जनपद सदस्य महेश पटेल का कहना है कि पढने योग्य उम्र के अनेक बच्चे पढाई से वंचित हो गये है। डूब प्रभावित हर गॉव के परिवार में बच्चे स्कूल जाते थे लेकिन अब स्कूल छूट गया है। पुर्नवास स्थल पर बच्चों की शिक्षा के लिए इंतजाम नहीं हो पाये है।
इस बारे में हरदा जिला शिक्षा विभाग के जिला परियोजना समन्वयक सरदार सिंह पटेल का कहना है कि डूब प्रभावित किन किन गॉवों में कितने कितने बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं? इसका कोई आकंडा नहीं है। उन्होने कहा कि यदि सैकडों की संख्या में बच्चे पढाई से वंचित हैं तो पुर्नवास स्थल पर शिक्षा के इंतजाम किये जायेगें।
यहां यह कहना जरूरी होगा कि प्रशासन विस्थापित परिवारों के बेहतर पुर्नवास के प्रति गंभीर नहीं है। इसलिये बच्चों की शिक्षा के उचित इंतजाम भी नहीं हो पाये है। सरकार ने बच्चों को शिक्षा का जो अधिकार दिया है, वह अभी हरदा जिले के पुर्नवास स्थल गुआडी तक नहीं पहुँच है।
देश प्रदेश में ऐसे और भी कई पुर्नवास स्थल हैं जहॉ बच्चे शिक्षा के अधिकार का इंतजार कर रहे है।

courtesy-http://www.kharinews.com

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