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बाल अपंगता के मिथक एवं सच्चाई




मिथकः विकलांगता एक शाप हैं । एक अपंग बच्चे की कोई कीमत नहीं है। ऐसे बच्चे परिवार के लिए भार हैं । वे लोग आर्थिक दृष्टि से अनुत्पादक होते तथा शिक्षा उनके लिए किसी काम की नहीं है। वास्तव में अधिकांश विकलांगता का कोई इलाज भी नहीं है।

सच्चाईः विकलांगता का पूर्वजन्म के क्रियाकलापों से कोई संबंध नहीं है। यह एक प्रकार का रोग है जो गर्भ के दौरान आवश्यक देखभाल की कमी के कारण या फिर वंशानुगत कारणों से वे इस बीमारी से पीड़ित हो जाते हैं। इसके अलावा, यह रोग निम्न कारणों से भी हो सकती हैः 

  •  आवश्यकता पड़ने पर उचित चिकित्सा के अभाव में, 
  •  उचित प्रतिरक्षण टीका नहीं लगाने के कारण, 
  •  दुर्घटना के कारण, 
  • घाव व अन्य कारणों से। 

साधारणतया मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्ति सहानुभूति का पात्र होता है। हम यह भूल जाते हैं कि विकलांग को व्यक्तिगत रूप से सहानुभूति के अतिरिक्त भी कुछ जरूरी हक प्राप्त हैं। 

अक्सर हम दुर्बलता को कलंक से जोडते हैं। मानसिक रूप से दुर्बल व्यक्ति के परिवार को बहिष्कृत किया जाता है तथा जनसमुदाय उसे तुच्छ दृष्टि से देखता है। शिक्षा प्रत्येक बालक व बालिका के लिए आवश्यक है, चाहे वह साधारण हो या शारीरिक या मानसिक रूप से दुर्बल। क्योंकि शिक्षा शिशु के समग्र विकास में सहायक होता है। 

विकलांग बच्चों की विशिष्ट आवश्यकताएँ होती हैं और हमारी जिम्मेदारी है कि हम उनकी आवश्यकताओं को पूरी करें। यदि उनको भी अवसर उपलब्ध कराई जाए तो वे भी जीविकोपार्जनजनित कुशलता प्राप्त कर सकते हैं। दुर्बलता दुखांत तभी बनती है जब कि हम उस व्यक्ति को अपने जीवन गुजारने के लिए मूलभूत साधन उपलब्ध कराने में असफल होते हैं। 



  • वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार 0-19 वर्ष की आयु की कुल जनसंख्या का 1.67 प्रतिशत बच्चे विकलांग थे 

  • योजना आयोग के 10 वीं पंचवर्षीय योजना रिपोर्ट में कहा गया है कि 0.5 से 1.0 प्रतिशत तक सभी बच्चों में मानसिक दुर्बलता पाई जाती है 

शिक्षा व्यवस्था में मंदबुद्धि बच्चे द्वारा सामना किये जा रहे बाधाः 

  •  शारीरिक तथा मानसिक रूप से विकलांग बच्चों के लिए विशेष विद्यालयों की कमी। 


  •  दुर्बल बच्चे साधारणतया मंदबुद्धि होते हैं। विद्यालयों में इस तरह के विशेष अध्यापक नहीं होते जो ऐसे विद्यार्थियों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाएँ। 


  •  सहपाठियों का असंवेदनशील व्यवहार। साधारणतया शारीरिक तथा मानसिक रूप से विकलांग बच्चे अपने सहपाठियों के उपहास के पात्र होते है क्योंकि वे या तो धीरे-धीरे सीखने वाले होते या फिर शारीरिक रूप से विकलांग होते हैं। 


  •  विद्यालयों में विकलांग बच्चों के लिए शौचालय एवं बैठने की कुर्सी सहित आधारभूत सुविधाओं की कमी।


समुचित प्रशिक्षण के द्वारा विकलाँग व असामान्य बच्चों में भी ऐसी कुशलता विकसित की जा सकती है जिसके सहारे वह सम्मानीय जिन्दगी जी सकता है। इतना हीं नहीं, यदि कम उम्र में ही बीमारी को पहचानकर इलाज कराया जाए तो अधिकांश दुर्बलताओं एवं अपंगता को ठीक या उससे बचाव किया जा सकता है। इसमें मानसिक रूप से विकलाँगता की स्थिति भी शामिल है जिसका सही समय पर इलाज कर बीमारी को ठीक किया जा सकता व उससे बचाव किया जा सकता है। 



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