मध्यप्रदेश लोक सहभागी साझा मंच

राज्य का कन्या ‘दान’


प्रशांत कुमार दुबे


मध्यप्रदेश जनसंपर्क विभाग द्वारा हाल मैं ही जारी विज्ञापन 

एक समय की बात है | एक प्रतापी राजा था | वह आत्मप्रशंसा कसे भी खुश रहता था | बड़ा उदार था और वह अपने राज्य के किसी भी गरीब की मदद को तत्पर रहता था | उसके राज्य में स्त्रियों के साथ बलात्कार, व्यभिचार बढ़ गया था | इससे राजा की बड़ी भद पिट रही थी | राजा इस समस्या से निपट नहीं पा रहा था | राजा ने आपात बैठक बुलाई और उसमें राजा के किसी दरबारी ने यह मशविरा दिया कि हुजूर–ए–आला, जिन महिलाओं पर जुल्म हो रहा है, आप उनका कन्यादान या उस परिवार की किसी महिला का कन्यादान राज्य के खर्चे पर करायें | उसने कहा, इससे तीन बातें होंगी एक तो आपकी यश कीर्ति बढ़ेगी और दूसरा पीड़ित महिलाएं और दबे कुचले परिवार आप ही चुप बैठेंगे और तीसरा इससे आपका वोट बैंक बढ़ेगा | राजा को यह आईडिया जम गया और शुरू हुआ गरीब कन्यायों का कन्यादान | इससे राजा की बड़ी अच्छी छवि हो चली, इतनी कि उसके धुर विरोधी भी उसका लोहा मानने लगे थे | यह तो राजतन्त्र की बात है| आज लोकतंत्र में भी एसा ही हो रहा है | मध्यप्रदेश में भी सरकार और उसके राजा शिवराज सिंह कुछ इसी तरह का जतन कर रहे हैं | माफ करिये यहाँ राजा शब्द का इस्तेमाल इसलिए किया जा रहा है क्योंकि कई बारगी यह राजतंत्र ही लगता है |
तो मध्यप्रदेश में इस समय सामूहिक विवाहों की धूम मची है | अखबारों में बड़े-बड़े विज्ञापनों से लेकर सड़कों पर लगने वाले होर्डिंग इन विवाहों के गुणगान से पटे पड़े हैं | 51 जोड़ों से लेकर 501 जोड़ों के विवाह किये जा रहे हैं | चारों और विवाह के नाम पर वाहवाही लूटने का जश्न मनाया जा रहा है | कहीं स्थानीय स्तर पर मंत्री जी, विधायक महोदय इन विवाहों को संपन्न करवा रहे हैं तो वहीं कुछ छुटभैये नेता भी इसमें अपने हिस्से का माखन मथने में लगे  हैं | सत्ता के लिए ये विवाह तारणहार की भूमिका निबाह रहे हैं| हो भी क्यूँ ना सरकार अब कन्यादान करा रही है और वह भी शासकीय खर्च पर |

कन्यादान योजना का हम विश्लेषण ना करें तो निश्चित ही यह योजना वर्तमान सरकार की अभूतपूर्व उपलब्धि ही कही जायेगी | एक राज्य का उदार मुख्यमंत्री अपने राज्य की किसी भी गरीब लड़की के हाथ पीले करने को चिंतित है और उसे शासकीय खजाने से पूरा करने के लिए कृतसंकल्पित भी है | केवल यही नहीं बल्कि उस लड़की के जीवन में काम आने वाली कुछ जरुरी चीजें भी इस शादी में उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी भी सरकार ले रही है | अब बताइए भला कि एक गरीब परिवार को और चाहिए क्या ? यह जतन निश्चित रूप से भाजपा की वैतरणी को पार करा दे फिर भी यह कुछ अनिवार्य सवाल जरुर छोड़ता है | एक आंकडो पर और गौर कर लें कि इस सरकारी जलसे से अभी तक डेढ़ लाख विवाह राज्य सरकार संपन्न करा चुकी है तथा  इस पर लगभग 15 करोड़ रूपये खर्च् किये जा चुके हैं |

इस योजना का विश्लेषण इसके नाम में निहित शब्दों के अर्थों से ही शुरू करते हैं | कन्यादान यानी कन्या का दान | कन्या यानी अविवाहित स्त्री और दान यानि दान | पौराणिक काल से ही दान हमेशा किसी वस्तु का ही किया जाता रहा है | यह एक समूह परंपरा रही है जो कि समाज के विभिन्न अंगों को एक दूसरे से जोड़ती है | दान देते हुए भी गुप्तदान को सर्वोपरि माना गया है | इसके पीछे एक कहावत भी प्रचलित है कि मांगो उसी से, जो दे दे खुशी से और कहे ना किसी से |

इस योजना के पीछे सरकारी तर्क यह कि हम तो वेद पुराणों की परम्परा निभा रहे हैं | आइये तो अब जरा कन्यादान के इतिहास पर गौर कर लें | कन्यादान शब्द का वेद पुराणों में कहीं कोई जिक्र नहीं मिलता है | वेदों में कन्या, पाणिग्रहण, प्रतिग्रहण और दान जैसे शब्दों का अलग अलग संदर्भों में और अलग-अलग जगह प्रयोग हुआ है | ऋग्वेद (5-42-8) में कहा गया है कि गऊ, वस्त्र तथा अश्व का दान करने वाले सौभाग्यशाली होते हैं | अथर्ववेद (9-5-29) में भी दान दी जाने वाली वस्तुओं के नाम गिनाये गए हैं जिनमें प्रमुख है गौ, बैल, वस्त्र, स्वर्ण | इसमें लिखा है कि इनका दान दिए जाने से उत्तम गति को प्राप्त होते हैं | अप्रत्याशित रूप से यहाँ के किसी भी उद्धरण में दान की जाने वाली वस्तुओं में कन्या के दान का कोई जिक्र भी नहीं मिलता है | दान का अर्थ है कि कि किसी वस्तु पर से अपना मोह त्यागना| कन्या ना ही वस्तु है और ना ही उसका दान किया जा सकता है | विवाह के बाद भी तो लड़की से उसके परिवार का सम्बन्ध बरकरार रहता है |

वेदों के बाद ब्राह्मण ग्रंथों की रचना हुई, जिनमें वेदों की व्याख्या की गई थी। वेद के बाद उपनिषद आये और तब तक कन्यादान शब्द का भी कोई जिक्र नहीं आया | लेकिन उपनिषदों के बाद पुराणों में कहीं-कहीं ऐसी चर्चा मिलती है। अग्निपुराण में कन्यादान को सबसे उत्तम दान माना गया है। बाद के काल में स्मृतियों में कन्यादान की व्यवस्था को सूत्रबद्ध करने की कोशिश दिखती है। इसे जरा ऐसे भी समझें कि मूल रूप से वैदिक अनुष्ठान में विवाह के कुल पांच चरण माने गए हैं |

वाग्दानञ्च वरणं पाणिपीडनम् । सप्तपदीति पंचांगो विवाह: प्रकीतिर्त:।।

वाग्दान से सगाई, प्रदान यानी कन्या को दिए जाने वाले उपहार, वरण-यानी वर द्वारा स्वीकृत करना, पाणिपीडन-पाणिग्रहण करना तथा सप्तपदी- से सात वचनों के पालन की प्रतिबद्धता का भाव लिया जाता है। इन पांच चरणों में भी कन्या के दान का संकेत स्पष्ट नहीं होता। केवल कन्या को दिए जाने वाले उपहार और उसके लिए उपयोगी वस्तुओं के दान का संकेत मिलता है। यह देखना दिलचस्प है कि फिर कन्यादान आया कहाँ से ? दरअसल यह पितृसत्तात्मक समाज की देन है | पुरुष प्रधान समाज ने स्त्री को दबाने का एक और नया शिगूफा खोजा और उसे नाम दिया कन्यादान | यानी घोषित रूप में कन्या को दान की वस्तु माना गया | कालांतर में इसका विकृत स्वरुप हमारे सामने आया है | पितृसत्तात्मक व्यवस्था में आज जो स्त्री का स्थान है उसके लिए बहुत हद तक कन्यादान ही जिम्मेदार है | बहरहाल यह एक स्वतंत्र शोध का विषय है लेकिन ऊपर की बात से एक चीज तो स्पष्ट हो गई कि कन्यादान का वेद पुराणों से कोई लेना देना नहीं है | `इससे यह सरकारी दलील तो खारिज होती है |

हमारा संविधान राज्य के लोक कल्याणकारी बाध्यताओं की ओर इशारा करता है |  जिसके मायने हैं कि राज्य अपने अधिकार क्षेत्र में निवास करने वाले प्रत्येक नागरिक के भरण पोषण, आजीविका और सुरक्षा की गारण्टी दे और इसे सम्मान के साथ पूरा करे | सरकार की यह भी जिम्मेदारी है कि उसके अधिकार क्षेत्र में रहने वाले लोग भय के साये में न जियें बल्कि सुरक्षा के साथ रहे | अब जरा इस दायित्व के प्रकाश में हम मुख्यमंत्री कन्यादान योजना को देखें तो हम पाते हैं कि राज्य अपने दायित्वों का निर्वहन तो नहीं ही कर रहा है बल्कि मूल सवालों को छोड़ता चला जा रहा है |

आइये जरा कुछ आंकड़ों पर भी नजर डालें | राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो के अनुसार मध्यप्रदेश महिलाओं के ऊपर होने वाले अपराधों में अव्वल है | प्रदेश में वर्ष 2009 में 3071, 2010 में 3220 तथा 2011 में 3381 बलात्कार के प्रकरण दर्ज हुए हैं | यानी 3 वर्षों में ही 9926 महिलाएं बलात्कार का शिकार हुई | केवल वर्ष 2012 को ही देखें तो अभी तक बलात्कार के 797 प्रकरण सामने आये और उनमें से भी 76 प्रकरणों में सामूहिक बलात्कार के मामले सामने आये | इन प्रकरणों में से भी 414 प्रकरणों में नाबालिग लड़कियों के साथ बलात्कार की घटनाएं हुई हैं | वर्ष 2010 में ही 3756 महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार हुई यानी प्रतिदिन लगभग 10 प्रकरण आये | इसके अलावा पिछले 8 वर्षों में 3500 से ज्यादा बालिकाएं मध्यप्रदेश से गायब हुई हैं | यानी राज्य अपने क्षेत्र की महिलाओं को एक सुरक्षित और सम्मान पूर्ण ढंग से रहने लायक स्थान देने में असफल रहा है | एसे में राज्य को चाहिए था कि वह इस तरह से गरीब परिवारों की लड़कियों के हाथ पीले करने का ठेका ना लेकर महिलाओं को सुरक्षित वातावरण देने में अपनी भूमिका निभाता ?  जो कि राज्य ने नहीं किया |

इसे ऐसे भी देखना चाहिए कि यह महिला सशक्तिकरण की दिशा में उठाया गया कदम नहीं है बल्कि यह तो महिला को आत्मनिर्भर बनाने की राह का रोड़ा है | यानी इससे एक चित्र तो उभरता ही है कि लड़कियां अभी भी बोझ हैं और उनके विवाह में अडचनें आती हैं | ऐसे में यदि वर्तमान सरकार जैसी सरकार या कोई प्रतापी राजा जनम न ले तो फिर उनका विवाह एक मुसीबत ही है | यदि कुरीतियों की ही बात करें तो यही राज्य एक ओर तो दहेज प्रथा का विरोध करता है वहीँ दूसरी और राज्य समर्थित कार्यक्रमों में (कन्यादान योजना) घरेलू उपयोग में आने वाले सामान के नाम पर दहेज देता है | भला सोचिये कि एक गरीब परिवार के लिए जो जरुरत की चीज है, उसके कई गुना ज्यादा एक अमीर परिवार के लिए भी जरुरत की चीजें हैं जो दरअसल में दहेज है तो फिर वह कैसे और क्यूँ चूकेगा, और यह प्रथा तो जारी ही रहेगी ? इसमें भी मजे की बात तो यह है कि जिस विभाग को इन कुरीतियों के लिए जागरूकता अभियान चलाना (सामाजिक न्याय विभाग) था वे ही इस सरकारी शादी के लिए दहेज का सामान एकत्र करते फिर रहे हैं ? और तो और सरकार ने बैतूल जिले में इस योजना के लिए पैसा ना पहुँच पाने की स्तिथि में पेंशन मद से पैसा दे दिया और पेंशन वाले अपनी पेंशन के लिए तरसते रहे |

इसी योजना के शुरूआती चरण में प्रदेश के ही शहडोल में आदिवासी युवतियों के कौमार्य परीक्षण (वर्जिनिटी टेस्ट) का मामला सामने आया था | यह भी एतिहासिक ही रहा कि 152 परीक्षणों में से 18 युवतियों के परीक्षण में या तो वे गर्भवती पाईं गईं या वे पहले से ही विवाहित थीं| अब इस घटना के बाद तमाम आयोग, मीडिया और राजनीतिक दल इस बात को लेकर पिल पड़े कि युवतियों का कौमार्य परीक्षण नहीं होना था, लेकिन सवाल यह खड़ा करने की जहमत किसी ने नहीं उठाई कि यह शादियाँ होनी चाहिए या नहीं !! और सरकारी खर्चे पर होनी चाहिए कि नहीं !! यह राज्य की ना तो भूमिका और ना ही जिम्मेदारी | संसद के दोनों सदनों और राज्य विधानसभा में भी इस मुद्दे पर हंगामा मचा, मगर अफ़सोस कि यह पूरी बहस कौमार्य परीक्षण पर टिकी रही, उसके आगे के मूल सवालों को किसी ने नहीं टटोला | यानी कौमार्य परीक्षण न करो, पर महिला को वस्तु की तरह दान करते रहो | यह तो प्रत्यक्ष प्रभाव हैं जो दिखते हैं, लेकिन जो अप्रत्यक्ष हैं उन्हें भी जरा देख लिया जाये जो कि ज्यादा घातक हैं |

एक ओर तो माननीय उच्चतम न्यायालय ने हमें पसंदी का अधिकार (हालाँकि इसके व्यापक मायने हैं) दिया है लेकिन इस तरह की शादियों में उनका कोई भी स्थान नहीं है | इस तरह के सरकारी जलसों में परिवार की मर्जी के खिलाफ यानी अपनी पसंद से की जाने वाली शादियों का कोई स्थान नहीं है | और तो और अलग-अलग जातियों के सामूहिक विवाह कराकर और सरकार के नुमाइंदों द्वारा उनमें शिरकत कर सरकार जाति जैसे मूल सवालों को और स्थापित सी करती जान पड़ती है | हद तो तब होती है जबकि सरकार मुस्लिम नवयुगल का विवाह भी हिंदू रीति रिवाज से करा देती है | विगत वर्ष बैतूल जिले के चिचौली विकासखंड के हरदु में आयोजित विवाह समारोह में एक मुस्लिम दंपत्ति का विवाह हिंदू रीति रिवाज से करा दिया गया | अव्वल यह कि अधिकरियों का कहना था कि मौलवी कि व्यवस्था नहीं हो पाई | गौर करने लायक बयान तो अजाक मंत्री कुंवर विजय शाह का आया, जबकि उन्होंने कहा कि यह हिंदू पध्दति नही है बल्कि जीवनशैली है | और हमने वैसा विवाह कराकर अपराध नहीं किया !!!! क्या इसे एसा ना माना जाए कि बीजेपी सरकार इस तरह की प्रक्रियाओं से अपने हिन्दुवाद को बढ़ावा देने का षड़यंत्र रच  रही है ? हम इसे भी देखते हैं कि सरकार धर्म की स्वतंत्रता पर बाधाएं खड़ी कर रही है | यहाँ यह भी देखना रोचक है कि अधिकांश बीजेपी शासित राज्यों जैसे मध्यप्रदेश, छतीसगढ़, उत्तराखंड (अब वहां कांग्रेस है) में सरकारों ने बड़े पैमाने पर यह योजना लागू कर दी है | प्रदेश में सरकार इन डेढ़ लाख परिवारों से लगभग 8 लाख मतदाताओं को लुभाने की तैयारी कर रही है | इससे वोट तो मिलेंगे ही और उदार मामा के रूप में भी शिवराज जी स्थापित हो जायेंगे |

सरकार के इस कृत्य पर मध्यप्रदेश महिला अधिकार मंच की रिनचिन कहती हैं कि दरअसल यह पितृसत्तात्मक व्यवस्था के चरित्र को पुनर्प्रतिपादित करने की कोशिश है | सरकार एक तरफ महिला सशक्तिकरण की बात कर रही है लेकिन इस तरह के प्रपंच महिला को बोझ बताते हैं | सरकार महिलाओं को लेकर इतनी ही चिंतित हैं तो फिर महिलाओं को सुरक्षा क्यूँ नहीं देती ? दरअसल में सरकार  समस्या को समूल नष्ट करने की बजाय थेगडे लगाने का और जनता का ध्यान हटाने की कोशिश कर रही है | दुर्भाग्य यह है कि सरकार अभी भी कन्या को दान की वस्तु ही मानती है| सरकार की अदूरदर्शिता और सरकार की बालिकाओं को लेकर सोच तो इसी से जाहिर होती है कि सरकार अपनी बेटी बचाओ अभियान की टेग लाइन लिखती है कि ‘बेटी है तो कल’ है | सवाल फिर वही कि बेटी को इसलिए मत बचाओ कि वो बच सके, अपनी जिंदगी जी सके  बल्कि इसलिए बचाओ कि वो कल के लिए संतानें पैदा कर सके और इस सब के बीच उस बेटी का आज तो गायब ही हो गया सा लगता है | सरकार का एक और नारा इस बात की मुखालफत करता दिखता है जिसमें कहा गया है कि बेटी को मार गिराओगे, तो बहू कहाँ से लाओगे ? यानी अभी भी बात बेटों की ही है जिन्हें बहुएं नहीं मिलेंगी, लेकिन बहू बनने की चाह में वह लड़की खतम हो जाये, उसकी परवाह किसी को नहीं | हाँ, ध्यान रहे कि राज्य में कन्यादान जारी है और अब सरकार ने कन्यादान योजना में प्रति विवाह राशि 10,000 से बढाकर 15,000 कर दी है | यही नहीं अब वह मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने के लिए निकाह भी कराने जा रही है | यानी आगे आगे देखिये होता है क्या ?

नोट  इस आलेख के लिए कमला भारद्वाज/ बाल मुकुंद के आलेख से साभार कुछ संदर्भ लिए गए हैं |     
       फोटो जनसंपर्क विभाग, मध्यप्रदेश से साभार लिए जा रहे हैं |

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