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मध्य प्रदेश में महिलाऐं पर बढ़ता अपराध




..होर्डिंग्स से अलग जमीनी हकीकत यह है कि सरकार के अपने आंकड़ों के अनुसार भाजपा के आठ वर्ष के कार्यकाल में 2004 से 2011 तक प्रदेश में 35 हजार 395 बच्चियां लापता हुई हैं.......पिछले दिनों में इंदौर और भोपाल में महिलाओं के साथ हुए गैंग रेप दिल दहला देने वाले हैं। भाजपा के सत्ता में आने के बाद के राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि गैगरेप यानिकि सामूहिक बलात्कार के मामले में प्रदेश दूसरे देश में सबसे उपर है। जब बिटिया बचाने और महिला सशक्तिकरण की बात हो रही है, तब महिलाओं पर घरेलु हिंसा के मामले में प्रदेश न केवल फिर सबसे आगे है, बल्कि इस शर्मसार कर देने वाले कृत्यों की यदि 2001 से बढ़ोतरी का ग्राफ देखा जाये तो 2009 तक आते आते ही इनमें 9 गुना वृद्वि हुई है...

मध्यप्रदेश इन खोखले नारों के उदघोषों का घोषणा केन्द्र बन गया है। बेटी बचाओं अभियान से लेकर जननी सुरक्षा योजना तक और महिला सशक्तिकरण से लेकर स्थानीय निकायों व पंचायतों में महिलाओं को मिलने वाले आरक्षण तक सारी घोषणायें हवा हवाई हो रही हैं। वही सरकार जो मनु महाराज की निर्देशों के अनुसार शासन चलाना चाहती हैं, जो मनुस्मृति को अपना आदर्श मानती हैं, वही जब महिला सशक्तिकरण की बात करती हैं, तो जाहिर है कि वे मन से मनु महाराज के साथ हैं, दिखाये को महिलाओं की मुक्ति के पक्षधर होने का ढोंग कर रही हैं।

अतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर भाजपा सरकार की नीतियों का आंकलन प्रदेश भर की सड़कों और चैराहों पर लगे होर्डिंग्स से नहीं किया जायेगा। यह हिटलर के प्रचार तंत्र का तरीका है। गोयबल्स के झूठ को सौ बार बोल कर सच्च करने के सिद्वांत का परिपालन है। बेटी बचाओ के होर्डिंग्स तो जनता को भरमाने, प्रचार पाने और करोड़ों रुपये विज्ञापनों व होर्डिंग्स पर खर्च कर अपनो को उपकृत करने का एक जरिया है। सरकार की नीतियों का आंकलन इस आधार पर होना चाहिये कि उस व्यवस्था और शासन में महिलायें कितनी विकसित हैं, उनकी सामजिक हैसियत क्या है, वे उस शासन व्यवस्था में कितनी सुरक्षित हैं।

होर्डिंग्स से अलग जमीनी हकीकत यह है कि सरकार के अपने आंकड़ों के अनुसार भाजपा के आठ वर्ष के कार्यकाल में 2004 से 2011 तक प्रदेश में 35 हजार 395 बच्चियां लापता हुई हैं। मध्यप्रदेश बच्चियों के निर्यात का केन्द्र बनता जा रहा है। हांलाकि वह तस्वीर भी अधूरी है, क्योंकि यह संख्या तो पुलिस रिकार्ड में दर्ज है। दूर दराज के आदिवासी क्षेत्रों में जहां से गायब होने वाली बच्चियों की शिकायतें पुलिस थाने तक पहुंची ही नहीं, उनकी संख्या तो शायद इससे भी ज्यादा हो। गायब होने वाली बच्चियों का एक पहलू यह भी है कि रोजगार के अभाव में जो परिवार पलायन कर राज्य के बाहर रोजगार की तलाश में जाते हैं, उन परिवारों की बच्चियों के गायब होने की कहानी तो और भी दर्दनाक होगी। इस लिए यदि बेटियां बचानी है, तो सबसे पहले रोजगार की व्यवस्था करनी होगी।

आज से पांच साल पहले एक निजी टीवी चैनल ने प्रदेश के उन नामी गिरामी नर्सिंग होम्स की घिनौनी हरकतों का पर्दाफाश किया था, जो कन्या भ्रूण हत्या के अड्डे बने हुए हैं। कुछ दिनों की खानापूरी के बाद उनमें किसी भी नर्सिंग होम के खिलाफ कोई भी दंडात्मक कार्यवाही नहीं हुई है। राज्य सरकार ने न तो उन नर्सिंग होम्स के मालिकों का खुलासा किया और न ही उनके राजनीतिक संरक्षकों को बेनकाब किया है। यह कन्याभ्रूण हत्या को अघोषित मान्यता देने की साजिश नहीं हैं तो फिर और क्या है? यह मघ्यप्रदेश की व्यवसायिक राजधानी इंदौर ही हैं, जहां जेनोटोपलास्टी के जरिये बच्चों के लिंग परिवर्तन किये गये हैं। अभी तक जितने भी मामले सामने आये हैं, उनमें से सिर्फ एक अपवाद को छोड़ कर हर मामले में लड़की को ही लड़का बनाया गया है। यह खबर राष्ट्रीय अखबारों में भी छपी है, किंतु इसके बाद भी इन चिकित्सकों के खिलाफ राज्य सरकार की ओर से कोई कार्यवाही नहीं की गई है।

विज्ञापनों में शिवराज सरकार बेटी को स्कूल भेजो आज की बात करती है? मगर उसकी मनुवादी मानसिकता महिला को बराबरी का दर्जा देने के लिए तैयार कहां हैं। यही सरकार स्कूल में प्रवेश के समय जनेऊ संस्कार की बात करती है। यह केवल शिक्षा के साम्प्रदयिकरण की ही बात नहीं हैं। यह महिला विरोधी मानसिकता भी है। जनेऊ संस्कार में तो केवल लड़कों को ही जनेऊ पहनाया जायेगा, लड़कियों तो इसे नहीं पहनेगी। इस तरह इस आयोजन के जरिये सरकारी साधनों पर लड़कियों के सामने एक ऐसा आयोजन करना, जिसमें सिर्फ लड़के ही भाग ले सकते हों, संविधान की बराबरी की अवधारणा के विपरीत तो है ही, लड़कियों में यह हीन भावना पैदा करना भी है, कि लड़के उनसे श्रेष्ठ हैं।

लड़कियों को मिलने वाली साइकिल का विरोध नहीं है। मगर जब स्कूल में छात्रों को मिलने वाली ड्रेस का नाम बदल कर गणवेश कर दिया जाता है, तो फिर पुरूष मानसिकता काम कर रही होती है। जहां भी बात केवल हिन्दु प्रतीकों की नहीं है, गणवेश देवताओं की पोशाक का प्रतीक है, देवियों की पोशाक का नहीं। इस तरह यह सरकार कदम कदम पर पुरूष प्रधानता को स्थापित कर रही है। जब कालेजों में सिर्फ लड़कियों के लिए ड्रेस कोड की बात होती है, प्रदेश सरकार जब सिर्फ उनके ही जीन्स पहनने पर पाबंदी लगती है, जब छात्राओं को ही मोबाइल रखना प्रतिबंधित किया जाता है, तो आप बेटी बचा नहीं रहे होते हैं, बल्कि बेटियों में भी अगले जन्म मोहे बिटिया न कीजो की भावना भर रहे होते हैं। प्रदेश सरकार यही कर रही है।

पिछले दिनों में इंदौर और भोपाल में महिलाओं के साथ हुए गैंग रेप दिल दहला देने वाले हैं। भाजपा के सत्ता में आने के बाद के राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि गैगरेप यानिकि सामूहिक बलात्कार के मामले में प्रदेश दूसरे देश में सबसे उपर है। जब बिटिया बचाने और महिला सशक्तिकरण की बात हो रही है, तब महिलाओं पर घरेलु हिंसा के मामले में प्रदेश न केवल फिर सबसे आगे है, बल्कि इस शर्मसार कर देने वाले कृत्यों की यदि 2001 से बढ़ोतरी का ग्राफ देखा जाये तो 2009 तक आते आते ही इनमें 9 गुना वृद्वि हुई है। ग्राफ का बढऩा अभी थमा नहीं है। दलित और आदिवासी महिला उत्पीडऩ की घटनाओं में भी हमारे प्रदेश दूसरे राज्यों से आगे हैं। हम आगे हैं, मगर शर्मसार कर देने वाले कृत्यों और अपराघों के मामले में।

अभी हाल के हुए सामूहिक बलात्कारों में भाजपा नेताओं के रिश्तेदार भी पाये गये हैं। महिलाओं को सुरक्षा देने की बजाय प्रदेश के गृह मंत्री ने इन अपराघों पर यह कह कर पर्दा डालने की कोशिश की है कि इप अपराधों का पूर्वाभास नहीं होता है। इसका अर्थ तो यही निकलता है कि इन्हें रोका नही जा सकता है। वैसे इस सरकार से महिलायें सुरक्षा और न्याय की बात कैसे कर सकती हैं। भाजपा के जिलाध्यक्ष आपत्तिजनत स्थिति में सीडी में पकड़े गये हैं। टीकमगढ़ में महिलामोर्चा की अध्यक्ष ने युवा मोर्चा के अध्यक्ष पर छेड़छाड़ का आरोप लगाया है। दो युवतियां तो स्वंयसेवकों द्वारा उनके देहक शोषण की शिकायत मोहन भागवत तक को कर चुकी है। किंतु उन्हें ही न्याय नहीं मिला हैं, तो आम महिलाओं की स्थिति क्या होगी।

नगर निकाय और पंचायतों में महिलाओं के लिए आरक्षण की स्थिति भी वही बनी हुई है। अपवाद स्वरूप ही कोई महिला प्रतिनिधि होगी, जिसके चुनाव में उसके साथ उसके पति की तस्वीर न लगी हो। ग्रामीण क्षेत्रों में तो महिला प्रतिनिधि नाम मात्र की हैं। सारी जिम्मेदारी उनके पति निबाहते हैं। हां उनके पतियों द्वारा गलत काम किये जाने की सजा महिलाओं को ही भुगतनी पड़ती हैं।

सही मायनों में घोषणाओं का हकीकत से कोई रिश्ता नहीं है। यह रिश्ता हो भी नहीं सकता है,क्योंकि पूंजीवादी सामंती समाज में महिलाओं से दोयम दर्जे का व्यवहार होता रहेगा। भाजपा और संघ परिवार जब हिन्दु राष्ट्र की कल्पना करते हैं, तो वे सामंती मूल्यों को फिर से स्थापित करते हैं। मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार यही कर रही है।

 इस सामंती व्यवस्था और इसके द्वारा प्रतिपादित महिला विरोधी मूल्यों के खिलाफ अभियान चलाना होगा। इस अभियान को इन मूल्यों और इस व्यवस्था को ध्वस्त करने की परिणति तक लेजाना होगा। इस लिए आठ मार्च महिला दिवस पर केवल महिलाओं की ही नहीं, महिलाओं के साथ साथ उन सबकी मुठ्ठियां भी महिलाओं के समर्थन में तनी होनी चाहिये जो शोषण को खतम करना चाहते हैं। जो बराबरी व शोषणविहीन समाज का सपना देखते हैं।


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