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लापता बच्चों पर सरकारें दें जवाब= सुप्रीम कोर्ट


सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने देश में लगभग 1.7 लाख से अधिक लापता बच्चों के मामले पर एक जनहित याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। ये बच्चे जनवरी 2008 से 2010 के बीच लापता हुए, जिसमें से ज्यादातर का अपहरण मानव तस्करी और बाल मजदूरी के लिए किया गया। शीर्ष कोर्ट ने इस संबंध में केंद्र, राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों और अटार्नी जनरल से जवाब मांगा है।
एनजीओ बचपन बचाओ आंदोलन की ओर से दाखिल जनहित याचिका पर जस्टिस अल्तमास कबीर और एसएस निज्जर ने संबंधित सरकारों से चार हफ्ते के अंदर जवाब दाखिल करने के लिए नोटिस जारी किया है। एनजीओ की ओर से पेश वरिष्ठ वकील एसएस फुल्का ने कोर्ट से केंद्र और राज्यों को इस बुराई से निपटने के लिए एक राष्ट्रीय योजना तैयार करने का निर्देश देने की अपील की। इसके साथ उन्होंने कोर्ट सेगायब बच्चोंकी परिभाषा को स्पष्ट करने का आग्रह किया।

उन्होंने राष्ट्रीय अपराध अनुसंधान ब्यूरो (एनसीआरबी) समेत अन्य आंकड़ों के हवाले से कहा कि जनवरी 2008 से जनवरी 2010 के बीच देश के 392 जिलों में 1.70 लाख बच्चे गायब हुए और इनमें से 41546 का अभी भी पता नहीं चल पाया है। एनजीओ ने दावा किया है कि भारत में हर वर्ष लगभग 90 हजार बच्चे गायब होते हैं और 30 हजार का पता नहीं लग पाता है। एनजीओ ने कहा कि ऐसे मामलों में पश्चिम बंगाल सबसे आगे है और महाराष्ट्र, कर्नाटक और मध्य प्रदेश उसी के नक्शेकदम पर हैं।

एनजीओ ने कहा कि देश में गायब बच्चों के मामले से निपटने के संबंध में सबसे बड़ा मसला यह है कि हमारे यहां अभी तकगायब बच्चोंकी व्याख्या को परिभाषित नहीं किया गया है। वकील जगजीत सिंह छाबड़ा के जरिए पेश याचिका में कहा गया है कि प्रशासन द्वारा गायब बच्चों के मामलों को सही तरीके से नहीं निपटा जाता है।


मध्य प्रदेश में लापता बच्चों की स्थिति- 
मप्र के नौ हजार से अधिक बच्चे लापता हैं। पुलिस महकमे द्वारा वर्ष 2006 से लेकर 2011 तक का तैयार रिकार्ड के तहत ४३ हजार ९२० बच्चे लापता हुए हैं,जिसमें २३ हजार ९६९ बालिकाएं और १९ हजार ९६९ बालक हैं। इनमें १६ हजार ७४७ बच्चों का पता चल गया है। करीब ३५०० बालकों का अब तक सुराग नहीं मिला है। इसी प्रकार १८ हजार १७१ बालिकाओं का पता चल गया है, लेकिन ५ हजार ८८० बालिकाएं अभी भी लापता हैं

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