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36 प्रमुख अर्थशास्त्रियों ने खाद्य सुरक्षा बिल में कमियों को लेकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लिखा पत्र



मौजूदा प्रारूप में देश की जनसंख्या को तीन जटिल और अवास्तविक श्रेणियों में बांट दिया गया है, लेकिन ये स्पष्ट नहीं किया गया है कि इन श्रेणियों की पहचान कैसी की जाएगी."
अर्थशास्त्रियों के पत्र का अंश
भारत और दुनिया के 36 प्रमुख अर्थशास्त्रियों ने लोकसभा में प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा विधेयक में गंभीर कमियों का हवाला देते हुए उसमें संशोधन का प्रस्ताव रखते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को एक पत्र लिखा है.
इस पत्र में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के नए प्रारूप का प्रस्ताव रखा गया है जिससे जनता को ज्य़ादा प्रभावी तरीके से अनाज उपलब्ध कराया जा सकेगा और देश में भूखमरी और अपर्याप्त पोषण की समस्याओं से ज्य़ादा कारगर तरीके से निपटा जा सकेगा.
इन अर्थशास्त्रियों के अनुसार मौजूदा बिल में मामूली संशोधन करके इस लक्ष्य को पाया जा सकता है.
पत्र में लिखा गया है कि बिल के मौजूदा प्रारूप में देश की जनसंख्या को तीन जटिल और अवास्तविक श्रेणियों में बांट दिया गया है, लेकिन ये स्पष्ट नहीं किया गया है कि इन श्रेणियों की पहचान कैसी की जाएगी.
पत्र के अनुसार सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सफल बनाने की पहली शर्त है कि इसमें पारदर्शिता हो और ये सहज तरीके से सबकी समझ में आए लेकिन अभी ये काफी जटिल है.
इस चिट्ठी में इन अर्थशास्त्रियों ने मांग की है कि धनी वर्ग को अलग हटाकर, सार्वजनिक वितरण प्रणाली के दायरे में समाज के हर वर्ग को शामिल किया जाना चाहिए.
इसमें गरीबी रेखा से उपर और नीचे रहने वाले का विभेद अगर हटा दिया जाए तो इस बात की संभावना काफी कम हो जाएगी कि जरूरतमंद परिवार इस योजना से वंचित रह गए. इसके साथ-साथ सबसे गरीब वर्ग को अंत्योदय योजना का फायदा भी मिलते रहना चाहिए.

खाद्द सुरक्षा विधेयक का सरलीकरण

अर्थशास्त्रियों के इस समूह के अनुसार अभी ताजा विधेयक की सबसे बड़ी समस्या ये है कि इसमें जनसंख्या का एक कत्रिम वर्गीकरण किया गया है.
उनके अनुसार, ''इस बिल में ये भी साफ नहीं है कि ये किस आधार पर किया गया है. देश में गरीबों की संख्या का सही अनुमान लगाना अभी तक टेढ़ी खीर रहा है. इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि किसी और गणना के तरीके से सौ प्रतिशत सही परिणाम निकलेंगे.''
इसके कारण इस बात की आशंका ज्यादा बनी रहती है कि कई जरूरतमंद शायद इस गणना में छूट जाएं.
इस चुनौती से निपटने के लिए अर्थशास्त्रियो के इस समूह ने कुछ उपाय सुझाए है. मौजूदा मसौदे में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए तीन श्रेणियां बनाई गई हैं.

  • प्राथमिक परिवार—जिन्हें हर महीने 35 किलो सस्ता अनाज दिया जाएगा.
  • आम परिवार—जिन्हें हर महीने 15 किलो सस्ता अनाज दिया जाएगा.
  • एक्सक्लूडेड या धनी परिवार—जिन्हें कुछ नहीं दिया जाएगा.

इन तीन समूहों के विपरीत अर्थशास्त्रियो का सुझाव है कि गरीबी रेखा से उपर और नीचे के वर्ग को एक बना दिया जाए और उसे ‘आमलोग’ के नाम से जाना जाए.
इस ‘आमलोग’ के वर्ग को कम से कम 25 किलो अनाज सस्ते दरों पर उपलब्ध कराया जाए. साथ ही साथ अंत्योदय कार्यक्रम को भी जारी रखा जाए.

फायदे



प्रस्तावित बिल में अगर इन सुझावों को मानकर बदलाव किए जातें है तो अर्थशास्त्रियों के अनुसार उसके कई फायदे होंगे.

  •  इन सुझावों से ये बिल ना सिर्फ काफी सरल हो जाएगा बल्कि इसे आसानी से लागू भी किया जा सकेगा.
  • . इससे इस बिल का ढांचा काफी मज़बूत और लंबे समय तक चलने वाला होगा. इतना ही नहीं इससे गरीब परिवारों के छूट जाने का डर भी खत्म हो जाएगा.
  •   साधारण और पारदर्शी होने के कारण ये लोगों को आसानी से समझ में आएगा.
  • 4. इससे किसी एक खास वर्ग को 'लक्ष्य' बनाए जाने से होने वाले नुकसान को रोका जा सकेगा और गरीबी रेखा के विवाद से भी हम बच जाएंगे.
  • 5. अंत में जिन परिवारों को अंत्योदय योजना का फायदा मिल रहा है उनको कोई नुकसान नहीं उठाना होगा.

  • इस समूह का दावा है कि प्रस्तावित संशोधन की मदद से इस योजना का लाभ ज्यादा लोगों तक पंहुचाया जा सकेगा.
इन अर्थशास्त्रियों में जाने माने अर्थशास्त्री और खाद्य सुरक्षा पर लगातार काम कर रहे ज्यँ द्रेस, योजना आयोग 

सदस्य अभिजीत सेन, मैसाचूसेट्स यूनिवर्सिटी के अभिजीत बनर्जी, न्यूयार्क विश्वविद्यालय के देबराज रे,

 दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के अश्विनी देशपांडे, आईआईटी दिल्ली की रितिका खेरा, बॉस्टन यूनिवर्सिटी 

के दिलीप मुखर्जी, यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया से अशोक कोतवाल और प्रधानमंत्री के आर्थिक 

सलाहकार समिति के सदस्य विजय व्यास शामिल हैं.

सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सफल बनाने की पहली शर्त है कि इसमें पारदर्शिता हो और ये सहज तरीके से सबकी समझ में आए लेकिन अभी ये काफी जटिल है."

अर्थशास्त्रियों के पत्र का अंश
http://www.bbc.co.uk से साभार 


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