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अब दक्षिण राज्यों में भी बाल लिंग अनुपात में गिरावट आ रही है





टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार  केरल को छोड़ कर ज्यादातर दक्षिण राज्यों के बाल लिंग अनुपात में गिरावट आ रही  है




बाल लिंग अनुपात (एसआरबी) में अंतर की समस्या को आम तौर पर उत्तर भारत से जोड़ कर देखा जाता है. इस मुद्दे पर हरियाणा और पंजाब सबसे ज्यादा आलोचना का शिकार होते रहे हैं. लेकिन अब यह स्थिति दक्षिण भारत में बनती दिख सकती है. टाइम्स ऑफ इंडिया ने 2007 से 2016 के बीच के एसआरबी से जुड़े आंकड़ों के आधार पर एक रिपोर्ट दी है. इसमें कहा गया है कि बीते सालों में केरल को छोड़ कर दक्षिण भारत के अन्य राज्यों के बाल लिंग अनुपात में नाटकीय गिरावटदेखने को मिली है.
अखबार ने नागरिक पंजीकरण प्रणाली (सीआरएस) से इकट्ठा किए गए डेटा के आधार पर यह रिपोर्ट दी है. डेटा के मुताबिक 2016 में आंध्र प्रदेश और राजस्थान का लिंग अनुपात सबसे खराब रहा. उस साल इन दोनों राज्यों में लिंग अनुपात प्रति 1,000 बालकों की तुलना में 806 बच्चियों का रहा. तमिलनाडु की बात करें तो 2007 में वहां एसआरबी 935 था जो बाद में 840 हो गया, जबकि पूरे भारत का एसआरबी 877 रहा. इस मामले में कर्नाटक की स्थिति चिंताजनक नजर आती है. 2007 में यहां का लिंग अनुपात 1,004 था जो 2016 में 896 तक चला गया. वहीं, 2013 में अपने गठन के समय तेलंगाना का लिंग अनुपात 954 था. यह 2016 तक 881 हो गया.
आंकड़े बताते हैं कि 2006 से पहले दक्षिण राज्यों के यहां एसआरबी 900 से अधिक था. वहीं, 2016 आते-आते उनके यहां का लिंग अनुपात देश के औसत लिंग अनुपात से नीचे चला गया. किसी राज्य की स्थिति तो हरियाणा से भी खराब रही. मसलन, 2006 में तमिलनाडु में प्रति 1,000 बालकों पर 939 बच्चियां थीं. लेकिन 2015 आते-आते यह संख्या 818 हो गई. हालांकि, 2016 में उसका एसआरबी बढ़ कर 840 हो गया, लेकिन इस सुधार के बावजूद वह हरियाणा से पिछड़ गया. उस साल हरियाणा का एसआरबी सुधर कर 865 रहा था.
यह बात उल्लेखनीय है कि ज्यादातर दक्षिण राज्यों ने लगभग सौ प्रतिशत जन्म पंजीकरण करने का दावा किया है. ऐसे में कम होते एसआरबी का कारण बच्चियों के जन्म का पंजीकरण न होना नहीं हो सकता.
वहीं, भारत के दूसरे हिस्सों की बात करें तो पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र के अलावा दिल्ली और असम के एसआरबी में सुधार हुआ है. दिल्ली की बात करें तो 2007 में यहां एसआरबी 848 था, जो 2016 में 902 हो गया. वहीं, असम का एसआरबी 834 से 888 पहुंच गया. हालांकि पश्चिम बंगाल, ओडिशा, जम्मू-कश्मीर और गोवा में सुधार देखने को नहीं मिला है.
बिहार और उत्तर प्रदेश की स्थिति भी सही नहीं है. बिहार का एसआरबी 924 से गिर कर 837 हो गया. वहीं, उत्तर प्रदेश में प्रति 1,000 बालकों की तुलना में बच्चियों की संख्या 930 से 885 हो गई. इन दोनों राज्यों में जन्म पंजीकरण भी 60 प्रतिशत ही हुआ है. इसलिए इन आंकड़ों से एकदम सही स्थिति शायद न पता चले. मध्य प्रदेश के साथ भी यही समस्या है. वहां 75 प्रतिशत जन्म पंजीकरण हो पाए हैं.


satyagrah.scroll.in से साभार

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