श्रीहरि पलियथ, February 12, 2019
शिक्षा आवंटन में गिरावट, पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति में कमी
स्वास्थ्य बजट में गिरावट, आंगनवाड़ी सेवाओं को बढ़ावा
पलियथ विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं।
( यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 8 फरवरी, 2019 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है। )
केंद्र सरकार ने बजट 2019 में बच्चों के लिए 90,594 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं, जो कि पिछले वर्ष की तुलना में 0.01 प्रतिशत की मामूली वृद्धि से कुल बजट के 3.25 फीसदी पहुंची है। यह जानकारी एक गैर-सरकारी संगठन ‘चाइल्ड राइट्स एंड यू’ ( क्राई ) की एक रिपोर्ट में सामने आई है। भारत की करीब 40 फीसदी आबादी बच्चे हैं, फिर भी उनकी शिक्षा, विकास, स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए आवंटित धन लगभग स्थिर रहे हैं, जैसा कि विश्लेषण में बताया गया है।
सबसे बड़ा हिस्सा (68 फीसदी) शिक्षा की ओर गया, उसके बाद विकास (26 फीसदी), स्वास्थ्य (3 फीसदी) और सुरक्षा (2 फीसदी) के लिए दिया गया है। हालांकि, शिक्षा के लिए आवंटन में 1.1 प्रतिशत की गिरावट हुई है, पिछले वर्ष की तुलना में संरक्षण के लिए आवंटन में 0.6 प्रतिशत अंक की वृद्धि हुई है। क्राई की मुख्य कार्यकारी अधिकारी पूजा मारवाह ने कहा, “अंतरिम बजट 2019 ने किसानों, छोटे उद्यमियों और कर चुकाने वाले मध्यम वर्गों सहित हमारे समाज के कमजोर वर्गों के प्रति सकारात्मक रुझान दिखाया है। लेकिन फिर भी देश की 40 फीसदी की बच्चों की आबादी के लिए यह राष्ट्र की उम्मीदों को पूरा करने में विफल रहा है, जैसा कि बच्चे न तो बजट भाषण का हिस्सा थे और न ही वे 2030 के लिए 10-पॉइंट विज़न में कहीं दिखाई दे रहे थे। “
शिक्षा आवंटन में गिरावट, पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति में कमी
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2015-16 (बजट अनुमान या बीई) में लगभग 79 फीसदी से लेकर 2019-20 (बीई) में 68 फीसदी तक शिक्षा की हिस्सेदारी में ‘स्पष्ट लेकिन धीरे-धीरे गिरावट’ आई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि, समग्र शिक्षा अभियान या स्कूली शिक्षा के लिए एकीकृत योजना को अप्रैल 2018 और मार्च 2017 के बीच की अवधि के लिए 75,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।
जून 2018 में शुरू की गई इस योजना का उद्देश्य ( प्री-स्कूल से मैट्रिक तक की पढ़ाई ) सर्व शिक्षा अभियान, राष्ट्रीय मध्यमिक शिक्षा अभियान और शिक्षकों के प्रशिक्षण कार्यक्रम सहित सभी कार्यक्रमों को एख छतरी के नीचे लाना है। पांच साल की स्कूली शिक्षा के बाद, 10-11 साल की उम्र में, भारत में सिर्फ आधे से अधिक (51 फीसदी) छात्र एक ग्रेड II स्तर का पाठ (सात से आठ साल के बच्चों के लिए उपयुक्त) पढ़ सकते हैं, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 15 जनवरी 2019 की रिपोर्ट में बताया है। यह 2008 की तुलना में कम था जब ग्रड V के 56 फीसदी छात्र ग्रेड II-स्तरीय पाठ पढ़ सकते थे।
अनुसूचित जातियों (एससी) और अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) जैसे हाशिए के समूहों के लिए पोस्ट और प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति के लिए आवंटन “स्थिर या वास्तव में कम रह गया है”।
इन समूहों में मैट्रिक के बाद की छात्रवृत्ति के आवंटन में गिरावट आई है, जबकि प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति में वृद्धि हुई है। प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति में वृद्धि (प्रतिशत के संदर्भ में) अनुसूचित जाति (156 फीसदी) के लिए सबसे अधिक थी, इसके बाद अल्पसंख्यकों (122 फीसदी) और ओबीसी (53 फीसदी) का स्थान रहा है, जबकि पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति में गिरावट अनुसूचित जाति के लिए उच्चतम थी (-60 फीसदी) और ओबीसी (-17 फीसदी) के लिए सबसे कम है।
Allocation For Scholarship Schemes For Scheduled Castes, Other Backward Castes And Minorities, 2017-18 To 2019-20 | ||||
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Scholarship | 2017-18 | 2018-19 | 2019-20 | Change From Last Budget (in %) |
Pre-Matriculation for scheduled castes | 45 | 125 | 319.5 | 156% |
Post-Matriculation for scheduled castes | 334.8 | 300 | 120 | -60% |
Pre-Matriculation for minorities | 950.00 | 980 | 1100 | 122% |
Post-Matriculation for minorities | 550.00 | 692 | 530 | -23% |
Pre-Matriculation for other backward castes | 127.8 | 232 | 108 | 53% |
Post-Matriculation for other backward castes | 88.5 | 110 | 90.9 | -17% |
Source: Child Rights and You, 2019
Note: All figures in Rs crore are budget estimates
Note: All figures in Rs crore are budget estimates
स्वास्थ्य बजट में गिरावट, आंगनवाड़ी सेवाओं को बढ़ावा
बच्चों के लिए समग्र आवंटन में,स्वास्थ्य में 3.4 फीसदी तक 0.5 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है।
बाल मृत्यु दर को कम करने के लिए दुनिया का सबसे बड़ा एकीकृत प्रारंभिक बचपन कार्यक्रम, एकीकृत बाल विकास सेवा ( आईसीडीएस ) में 19 फीसदी बढ़कर 19,428 करोड़ रुपये हुआ है।
विश्लेषण में कहा गया है कि “पर्याप्त वृद्धि” आंगनवाड़ियों ( बाल देखभाल केंद्रों) में मांगों को पूरा करने के लिए “पर्याप्त नहीं” हो सकती है।
आंगनवाड़ियां पूरक पोषण, प्री-स्कूल गैर-औपचारिक शिक्षा, पोषण, स्वास्थ्य शिक्षा और टीकाकरण जैसी सेवाएं प्रदान करती हैं। रिपोर्ट के अनुसार यह पिछले तीन वर्षों में सबसे अधिक आवंटन है।
आंगनवाड़ी सेवाओं के लिए आवंटन, 2017-18 से 2019-20 तक
अंतरिम वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने 1 फरवरी, 2019 को अपने भाषण में कहा, “आंगनवाड़ी और आशा योजना के तहत, सभी श्रेणियों के श्रमिकों के लिए मानदेय में लगभग 50 फीसदी की वृद्धि की गई है।”
आईसीडीएस के तहत, भारत 11.8 लाख आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं (एडब्लूडब्लू) और 11.6 लाख आंगनवाड़ी सहायकों (एडब्लूएच) की सेवाओं का उपयोग करता है। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने इंडियास्पेंड ने 23 फरवरी, 2018 की रिपोर्ट में बताया है।
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि 2015 से 11 राज्यों और चार केंद्र शासित प्रदेशों ने एडब्लूडब्लू और एडब्लूएच को दिए जाने वाले अतिरिक्त वेतन में किसी भी बदलाव की घोषणा नहीं की है।
क्राई की रिपोर्ट के अनुसार, मानदेय में वृद्धि “अति-आवश्यक सकारात्मकता और बेहतर जवाबदेही के लिए प्रेरित करना चाहिए।”
बाल संरक्षण के लिए आवंटन दोगुना जबकि बेटी बचाओ, बेटी पढाओ में स्थिरता
एकीकृत बाल संरक्षण योजना का आवंटन पिछले साल के मुकाबले दोगुना होकर 1,500 करोड़ रुपये हो गया है। केंद्र प्रायोजित योजना का उद्देश्य सरकार-नागरिक समाज भागीदारी के माध्यम से बच्चों के लिए एक सुरक्षात्मक वातावरण का निर्माण करना है।
बाल संरक्षण योजनाओं के लिए आवंटन, 2017-18 से 2019-20 तक
बेटी बचाओ बेटी पढाओ कार्यक्रम के लिए आवंटन, जिसका उद्देश्य लिंग-पक्षपातपूर्ण सेक्स चयनात्मक उन्मूलन को रोकना और बालिकाओं के जीवन की रक्षा, सुरक्षा और शिक्षा सुनिश्चित करना है, पिछले बजट से 280 करोड़ रुपये पर स्थिर बना हुआ है।
2014-15 से 2018-19 तक बेटी बचाओ बेटी पढाओ के लिए आवंटित 56 फीसदी से अधिक धन “मीडिया-संबंधित गतिविधियों” पर खर्च किया गया और 25 फीसदी से कम जिलों और राज्यों में वितरित किया गया, जैसा कि द क्विंट ने 21 जनवरी, 2019 की रिपोर्ट में बताया है।
“मैं गर्व के साथ कह सकता हूं कि बेटी बचाओ बेटी पढाओ अभियान के साथ हरियाणा, राजस्थान और कई अन्य राज्यों में लड़कियों (महिला अनुपात) की संख्या में वृद्धि हुई है,” जैसा कि 13 अक्टूबर, 2018 को इस रिपोर्ट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एनडीटीवी द्वारा उद्धृत किया गया था।
“कई मासूमों को अधिकार मिले हैं। जीवन का अर्थ केवल जीना नहीं है, बल्कि गरिमा के साथ जीना है। ”
बजट ने राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना के लिए आवंटन को कम कर दिया है। काम करने वाले बच्चों के पुनर्वास के लिए इस योजना के किए आवंटन पिछले बजट से 17 फीसदी कम होते हुए 100 करोड़ रुपये हुआ है।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के आंकड़ों के अनुसार, करीब 1.01 करोड़ बच्चे ( उत्तराखंड की जनसंख्या के बराबर ) या तो ‘मुख्य श्रमिक’ या ’सीमांत श्रमिक’ के रूप में काम कर रहे हैं
पलियथ विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं।
( यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 8 फरवरी, 2019 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है। )
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