यह जानना जरूरी है की यदि किसी ने बच्चों पर ज्यादती की है, उसका शोषण किया है तो
कानून में सजा दिलाने के क्या बंदोबस्त है? भारत में बच्चों के खिलाफ होने वाले
गंभीर अपराधों के आंकड़े चिंताजनक हैं। बीते साल कोई 5,484 बच्चों के साथ यौन
दुर्व्यवहार हुआ। देश भर में 1,408 बच्चों की हत्या हुई। बच्चों के साथ होने वाले
अमानवीय व्यवहार में मध्य प्रदेश पहले, राजधानी दिल्ली दूसरे और महाराष्ट्र तीसरे
स्थान पर है। इसी तरह अन्य अपराध के भी आंकड़े हैं। हालांकि इन अपराधों के अलावा
बच्चों के साथ कई तरह से बदसलूकी की बातें भी सामने आती रही हैं। ऐसे में यह जानना
जरूरी है कि बच्चों के प्रोटेक्शन के लिए कानून में क्या-क्या प्रावधान किए गए
हैं।
बच्चों के अपने अधिकार, यदि कोई शोषण करें, स्कूल में यातना दे तो उसमें सजा के कई प्रावधान।
बच्चों के अपने अधिकार, यदि कोई शोषण करें, स्कूल में यातना दे तो उसमें सजा के कई प्रावधान।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड की हालिया रिपोर्ट में देशभर के बच्चों के खिलाफ होने वाले गंभीर अपराधों के आंकड़े चिंताजनक हैं। भारत में बीते साल 5,484 बच्चों के साथ यौन दुर्व्यवहार हुआ। देश भर में 1,408 बच्चों की हत्या हुई। बच्चों के साथ होने वाले अमानवीय व्यवहार में मध्य प्रदेश पहले, राजधानी दिल्ली दूसरे और महाराष्ट्र तीसरे स्थान पर है। इसी तरह अन्य अपराध के भी आंकड़े हैं। हालांकि इन अपराधों के अलावा बच्चों के साथ कई तरह से बदसलूकी की बातें भी सामने आती रही हैं। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि बच्चों के प्रोटेक्शन के लिए कानून में क्या-क्या प्रावधान किए गए हैं।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े देश में बच्चों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार के चौंकाने वाले तथ्य पेश कर रहे हैं। 2010 में मध्यप्रदेश में बच्चों के खिलाफ हुए अपराध के 4,912 मामले दर्ज किए गए। दिल्ली में 3,640, महाराष्ट्र में 3,264 और उत्तर प्रदेश में 2332 मामले दर्ज किए गए। यूपी में 315 बच्चों को जान से मार दिया गया और 451 बच्चों से बलात्कार हुआ। महाराष्ट्र में 1,182 यौन दुर्व्यवहार के मामले सामने आए। देश की राजधानी दिल्ली में 304 बच्चों से बलात्कार हुआ और 29 हत्याएं हुईं। आंकड़ों के मुताबिक हत्या के मामलों में सिर्फ 2.3 फीसदी की कमी देखी गई।
सरकारी रिपोर्ट के कहती है कि बीते साल भारत भर में 10,670 बच्चों का अपहरण हुआ। यानी औसतन हर दिन 29 बच्चे अगवा किए गए। अपहरण के मामले में दिल्ली सबसे ऊपर है। दिल्ली से बीते साल 2,982 बच्चे अगवा किए गए। बिहार में बच्चों के अपहरण के 1,359, यूपी में 1,225, महाराष्ट्र में 749 और राजस्थान में 706 मामले दर्ज किए गए। आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़ और गुजरात की हालत भी संतोषजनक नहीं कही जा सकती। जम्मू कश्मीर, उत्तराखंड, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड और झारखंड में बच्चों के साथ अपराध के कम मामले सामने आए हैं। 2009 में बच्चों के खिलाफ अपराध के 24,201 मामले दर्ज हुए थे। 2010 में इनकी संख्या 10.3 फीसदी बढ़कर 26,694 हो गई। नाबालिग बच्चियों के साथ होने वाले अपराधों में 186.5 फीसदी वृद्धि हुई। वेश्यावृत्ति के लिए बच्चियों की खरीद फरोख्त और बलात्कार के मामले बढ़े।
2010 में पुलिस ने बच्चों के साथ हुए अपराध के मुकदमों में 34,461 लोगों गिरफ्तार किया। लेकिन लचर जांच के चलते पुलिस सिर्फ 6,256 लोगों को ही दोषी साबित करा सकी। यानि बच्चों के साथ अपराध करने वाले 34.3 फीसदी मुजरिमों को सजा दिलाई जा सकी, बाकी 65.7 फीसदी कानून को ठेंगा दिखाकर बच निकले।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े देश में बच्चों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार के चौंकाने वाले तथ्य पेश कर रहे हैं। 2010 में मध्यप्रदेश में बच्चों के खिलाफ हुए अपराध के 4,912 मामले दर्ज किए गए। दिल्ली में 3,640, महाराष्ट्र में 3,264 और उत्तर प्रदेश में 2332 मामले दर्ज किए गए। यूपी में 315 बच्चों को जान से मार दिया गया और 451 बच्चों से बलात्कार हुआ। महाराष्ट्र में 1,182 यौन दुर्व्यवहार के मामले सामने आए। देश की राजधानी दिल्ली में 304 बच्चों से बलात्कार हुआ और 29 हत्याएं हुईं। आंकड़ों के मुताबिक हत्या के मामलों में सिर्फ 2.3 फीसदी की कमी देखी गई।
सरकारी रिपोर्ट के कहती है कि बीते साल भारत भर में 10,670 बच्चों का अपहरण हुआ। यानी औसतन हर दिन 29 बच्चे अगवा किए गए। अपहरण के मामले में दिल्ली सबसे ऊपर है। दिल्ली से बीते साल 2,982 बच्चे अगवा किए गए। बिहार में बच्चों के अपहरण के 1,359, यूपी में 1,225, महाराष्ट्र में 749 और राजस्थान में 706 मामले दर्ज किए गए। आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़ और गुजरात की हालत भी संतोषजनक नहीं कही जा सकती। जम्मू कश्मीर, उत्तराखंड, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड और झारखंड में बच्चों के साथ अपराध के कम मामले सामने आए हैं। 2009 में बच्चों के खिलाफ अपराध के 24,201 मामले दर्ज हुए थे। 2010 में इनकी संख्या 10.3 फीसदी बढ़कर 26,694 हो गई। नाबालिग बच्चियों के साथ होने वाले अपराधों में 186.5 फीसदी वृद्धि हुई। वेश्यावृत्ति के लिए बच्चियों की खरीद फरोख्त और बलात्कार के मामले बढ़े।
2010 में पुलिस ने बच्चों के साथ हुए अपराध के मुकदमों में 34,461 लोगों गिरफ्तार किया। लेकिन लचर जांच के चलते पुलिस सिर्फ 6,256 लोगों को ही दोषी साबित करा सकी। यानि बच्चों के साथ अपराध करने वाले 34.3 फीसदी मुजरिमों को सजा दिलाई जा सकी, बाकी 65.7 फीसदी कानून को ठेंगा दिखाकर बच निकले।
यौन शोषण
बच्चों व नाबालिगों के साथ होने वाले यौन शोषण या सेक्शुअल हरासमेंट और अन्य तरह की प्रताड़नाओं से जुड़ी खबरें आए दिन देखने को मिलती हैं। इनमें बलात्कार, अप्राकृतिक दुराचार, छेड़छाड़ व अन्य तरह की अश्लील हरकतें शामिल हैं। जानकार बताते हैं कि कई बार बच्चे संकोच के कारण अपने साथ होने वाले इस तरह की प्रताड़नाओं का जिक्र तक नहीं करते। कई मामले ऐसे भी देखने को मिलते हैं कि आरोपी सगा-संबंधी होता है।
कानूनी जानकारों के मुताबिक 18 साल से कम उम्र के बच्चों के साथ अगर उसकी सहमति से भी कोई संबंध बनाता है तो भी वह अपराध है क्योंकि नाबालिग की सहमति का कानूनी तौर पर कोई मतलब नहीं होता। अगर ऐसे बच्चों के माता-पिता को किसी भी समय पता चले कि उनके बच्चे के साथ गलत हुआ है तो उन्हें इस बारे में पुलिस को सूचना देनी चाहिए। ऐसे आरोपी के खिलाफ बच्चे का बयान अहम होता है। बच्चों के साथ इस तरह की प्रताड़ना को रोकने के लिए जागरूकता भी जरूरी है।
अध्यापक प्रताड़ित करें तो क्या करें?
शिक्षा का अधिकार (राइट टू एजुकेशन एक्ट) में इसके बारे में जिक्र किया गया है। हालांकि इसके लिए किसी विशेष पैनल का प्रावधान नहीं है। आरटीईएक्ट की धारा 17 के तहत यह प्रावधान किया गया है कि अगर कोई भी शिक्षक किसी छात्र को मानसिक अथवा शारीरिक तौर पर प्रताड़ित करता है तो उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए। सविर्स रूल के हिसाब से ऐसे दोषी शिक्षक के खिलाफ दुर्व्यवहार के लिए कार्रवाई की जा सकती है।
चाइल्ड लेबर
बाल श्रम या चाइल्ड लेबर रोकने को लेकर अदालत कई बार निर्देश जारी कर चुकी है। चाइल्ड लेबर करवाने वालों को सख्त सजा दिए जाने का प्रावधान भी है। चाइल्ड लेबर इसके बावजूद थम नहीं रहा है। 18 साल से कम उम्र के बच्चों से खतरनाक उद्योगों में काम कराया जाना अपराध है। ऐसी स्थिति में 3 साल तक कैद की सजा का प्रावधान किया गया है। वहीं कानून में कई दूसरी तरह की बातों का जिक्र किया गया है। मसलन, अगर 14 साल से कम उम्र के बच्चों से ये काम लिए जाते हैं तो वह चाइल्ड लेबर एक्ट के तहत जुर्म है। 14 साल के कम उम्र के बच्चों से अन्य कामों के अलावा घरेलू काम करवाना भी कानूनी जुर्म है और इसके लिए दोषी पाए जाने पर 1 साल तक कैद और 10 हजार से 20 हजार रुपये तक जुर्माने का प्रावधान है।
जुवेनाइल जस्टिस एक्ट
कानूनी जानकार एम. एस. खान के मुताबिक आपराधिक मामला बनने पर अगर किसी की उम्र 18 साल से कम पाई जाती है तो उसे बच्चा ही माना जाएगा। आरोपी 18 साल से कम है तो उसकी पहचान गुप्त भी रखी जाती है। साथ ही उसका मामला जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड को भेज दिया जाता है। इसके पीछे मकसद यह है कि जुवेनाइल को सुधारा जाए। यही कारण है कि उसे सुधार गृह में भेजा जाता है, जहां सजा देने की बजाए जुवेनाइल को सुधारने पर जोर दिया जाता है। जुवेनाइल को आमतौर पर जमानत दिए जाने का प्रावधान है। जुवेनाइल के खिलाफ हत्या या ऐसे किसी भी संगीन आरोप ही क्यों न साबित हो जाएं, उसे 18 साल तक की उम्र तक ही सुधार गृह में रखा जाता है। सरकारी वकील नवीन शर्मा के मुताबिक जुवेनाइल जस्टिस एक्ट इसलिए बनाया गया है ताकि बच्चों को सही राह दिखाई जा सके। जूवेनाइल जस्टिस एक्ट की धारा 23 में यह प्रावधान किया गया है कि अगर बच्चा हिरासत में है और उस हिरासत में बच्चे को मानसिक अथवा शारीरिक तौर पर प्रताड़ित किया जाता है तो इसके लिए दोषी पाए जाने पर ऐसे लोगों के खिलाफ 6 महीने तक कैद अथवा जुर्माने की सजा दी जाएगी।
0 Comments