जाहिद खान
मशहूर अदाकार आमिर खान के सामाजिक सरोकारों से जुड़े टेलिविजन शो ‘सत्यमेव जयते’ ने एक बार फिर समाज की एक ज्वलंत समस्या की तरफ समाज और सरकार का ध्यान खींचा है। शो के दूसरे एपिसोड में उन्होंने बाल यौन शोषण जैसे नाजुक एवं संवेदनशील मुद्दे को बड़े ही मर्यादित और पूरी गंभीरता के साथ पेश किया। गोया कि ये शो ऐसे वक्त में आया है, जब हमारी सरकार बाल यौन शोषण से संबंधित एक महत्वपूर्ण विधेयक पर काम कर रही है। केन्द्रीय केबिनेट इसे पूर्व में ही मंजूरी दे चुकी है। सब कुछ ठीक-ठाक रहा, तो जल्द ही इस विधेयक पर संसद में मुहर लग जाएगी।
बीते दो दशक के दौरान मुल्क में बच्चों के यौन शोषण की घटनाओं में लगातार बढ़ोतरी हुई है। आए-दिन मासूम बच्चों के यौन शोषण की खबरें मीडिया में छाई रहती हैं। घर से लेकर स्कूल या फिर कार्यस्थल कहीं भी बच्चे महफूज नहीं हैं। यहां तक कि बाल सुधार गृहों में भी उनके यौन षोषण की खबरें आम हैं। भूमंडलीकरण, उदारीकरण के बाद हुए उपभोक्तावाद के हमले और सेटेलाईट टी.वी. चैनलों की बाढ़, मोबाईल, इंटरनेट क्रांति ने इन अपराधों को फैलाने में बड़ी भूमिका निभाई। हालांकि, बाल यौन शोषण को रोकने के लिए हमारे यहां पहले से कई कानून हैं, लेकिन फिर भी अपराध की गंभीरता को देखते हुए यह कानून नाकाफी ही साबित हुए हैं। कमजोर कानून और पुलिस की चिर परिचित उदासीनता से अपराधी अक्सर बच निकलते हैं। जाहिर है, बच्चों के प्रति होने वाले अपराधों और यौन शोषण पर अंकुश लगाने के लिए हमारे यहां एक सख्त कानून की जरूरत बरसों से महसूस की जा रही थी। बाल यौन शोषण निरोधक विधेयक की मंजूरी बच्चों की सुरक्षा के एतबार से एक अहम पहल है।
प्रस्तावित विधेयक में ऐसे अपराधों को अंजाम देने वालों के लिए सख्त सजा यहां तक कि उम्र कैद की सजा का प्रावधान है। विधेयक में बच्चों से दुष्कर्म के मामलों को 3 अलग-अलग वर्गों में बांटा गया है। जिसमें क्रमश: पांच, सात और दस साल की कैद का प्रावधान है। सबसे संगीन अपराधों में सजा को उम्र कैद तक बढ़ाया जा सकता है। प्रस्तावित कानून में कुल 9 अध्याय और 44 धाराएं हैं। यह कानून कुछ इस तरह से बनाया गया है कि इसमें सभी तरह के बाल यौन शोषण के अपराध आ जाएं। बच्चों के यौन शोषण की सबसे ज्यादा घटनाएं घर, स्कूल, अस्पताल, बाल सुधार गृह और पुलिस थानों में होती हैं। इसके अलावा घर के बाहर जो बच्चे काम करते हैं, वे अक्सर अपने नियोक्ताओं के यौन शोषण के शिकार होते हैं। अनेक अध्ययनों से जाहिर हो चुका है कि घरेलू नौकर के रूप में काम करने वाली ज्यादातर बच्चियां अपने मालिक की हवस का शिकार होती हैं। इसी तरह होटल, ढाबों, मोटर गैराज, चाय की दुकानों, कारखानों, ईट भट्टों आदि जगहों में काम करने वाले लड़कों के साथ भी अप्राकृतिक दुष्कृत्य आम हैं। आंकड़ों के मुताबिक यौन शोषण का शिकार होने वाले बच्चों में आष्चर्यजनक रूप से 53 फीसदी लड़के होते हैं। जाहिर है प्रस्तावित विधेयक में इन सभी तमाम पहलुओं पर न सिर्फ संजीदगी से विचार किया गया, बल्कि आरोपियों को सख्त सजा का भी प्रावधान किया गया। जिससे कि आईंदा कोई अपराध करने से पहले दस बार सोचे।
अक्सर देखने में आता है कि बच्चों का सबसे ज्यादा यौन शोषण उसके संरक्षण का दायित्व निभाने वाले अभिभावक, सुरक्षा बल के सदस्य, पुलिस अधिकारी, लोक सेवक, बाल सुधार गृह, अस्पताल या शैक्षणिक संस्थान के कर्मचारियों वगैरह ही करते हैं। प्रस्तावित कानून में इन लोगों द्वारा बच्चों पर किए गए अपराध को सबसे ज्यादा संगीन अपराध माना है। इस संगीन अपराध की सजा उम्र कैद तक हो सकती है। सरकार ने बच्चों के मुताल्लिक यौन शोषण से जुड़े अभी तक के तमाम अध्ययनों को मद्देनजर रखते हुए ऐसे सख्त कानून की पहल नए विधेयक के जरिए की है, जिसमें कोई भी अपराधी कानून से बच न पाए। प्रस्तावित विधेयक के मुताबिक बच्चों के यौन शोषण, उत्पीड़न, बच्चों की पोर्नोग्राफी और बच्चों से जुड़ी पोर्नोग्राफी सामग्री रखने जैसे मामलों के जल्द निपटारे के लिए विशेष अदालतें गठित की जाएंगी। बाल मजदूरी और सेक्स कारोबारियों से मुक्त बच्चों का उचित पुनर्स्थापन किया जाएगा।
विधेयक के मार्फत सरकार का इरादा दरअसल, उस पूरे परिवेश को बच्चों के जानिब संवेदनशील बनाने का है, जहां बच्चों को कायदे से सबसे ज्यादा सुरक्षित माहौल मिलना चाहिए। बहुत सारे मामलों में बच्चे डर के मारे इन दुष्कृत्यों को उजागर ही नहीं करते। वहीं जिन मामलों में उनके मां-बाप कानून की मदद लेना चाहते हैं, उनमें भी गुनहगार को कड़ी सजा नहीं मिल पाती। ऐसे में अपराधियों के हौसले और भी बुलंद होते हैं। ठीक तरह से सबूत पेश नहीं करने के चलते अक्सर अपराधी बच निकलते हैं। कई मामलों में मां-बाप ही अपने खानदान की इज्जत को ध्यान में रखते हुए बच्चों पर मुंह न खोलने का दबाव बनाते हैं। स्कूलों में बच्चियों के साथ शिक्षकों के यौन दुव्र्यवहार की शिकायतें मिलने पर स्कूल प्रशासन तो उस पर पर्दा डालता ही है, मां-बाप भी चुप्पी साध जाते हैं। इसी तरह घरेलू नौकर के रूप में काम करने वाली लड़कियां अपने मालिकों के यौन शोषण को इसलिए सहन कर जाती हैं कि उनके सामने अपना और अपने परिवार का पेट पालने की मजबूरी होती है। यह कुछ ऐसी वजह हैं, जिनके चलते बच्चों का यौन शोषण जारी रहता है।
यौन शोषण के शिकार बच्चों पर जो सामाजिक, शारीरिक और मनोवैज्ञानिक असर पड़ते हैं, वे कहीं ज्यादा गंभीर और जिंदगी भर साथ रहने वाले होते हैं। यौन शोषण शिकार बच्चों में से 60 से 80 फीसद अनेक बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं। यातना, शारीरिक चोट, शारीरिक विकलांगता, मानसिक यंत्रणा, अनचाहा गर्भ और यौनजनित बीमारियां आम बात हैं। यही नहीं समाज द्वारा लगातार उपेक्षा मिलने पर बच्चों के आपराधिक तत्वों के चंगुल में पड़ने का खतरा भी बना रहता है। बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिए हमेशा कड़े कानून की बात की जाती है, लेकिन जब अमलदारी की बात आती है, तो सतह पर कुछ नहीं हो पाता। महज कागजों पर खाका तैयार करके बाल यौन शोषण से छुटकारा नहीं पाया जा सकता। संबंधित कानून को सख्त बनाने और उसको असरदार तरीके से लागू करने के अलावा समाज व परिवार को भी अपनी जिम्मेदारी अच्छी तरह समझना होगी। बच्चों के प्रति संवेदनशील होना होगा। तभी जाकर हमारे नौनिहाल महफूज रहेगें।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार हैं)
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Source- http://www.kharinews.com
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