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20 करोड़ बच्चों को शिक्षा की बुनियादी सुविधा नहीं


 केंद्रीय शिक्षा संस्था (प्रवेश में आरक्षण) संशोधन विधेयक 2012 लोकसभा में ध्वनिमत से पारित


नई दिल्ली (एसएनबी)। संसद ने केंद्रीय शिक्षण संस्थानों के दाखिले में आरक्षण को राज्यों की कोटा व्यवस्था के अनुरूप लागू करने और शिक्षण संस्थानों में बुनियादी ढांचा विकसित करने के लिए तीन साल की अवधि को बढ़ाकर छह साल करने वाले विधेयक को बुधवार को मंजूरी दे दी। इस अवसर पर सरकार ने कहा कि कालेज स्तर तक नहीं पहुंचने वाले 20 करोड़ बच्चों की शिक्षा के लिए देश में आवश्यक बुनियादी सुविधा नहीं है और धन की कमी है। इसके लिए सार्वजनिकनिजी भागीदारी (पीपीपी) ही एकमात्र रास्ता है।

 सरकार के मुताबिक देश में 22 करोड़ बच्चे स्कूल जाते हैं जिसमें से करीब दो करोड़ बच्चे ही कालेज स्तर तक पहुंच पाते हैं। केंद्रीय शिक्षा संस्था (प्रवेश में आरक्षण) संशोधन विधेयक 2012 बुधवार को लोकसभा में ध्वनिमत से पारित हो गया। यह संशोधन विधेयक राज्यसभा में पहले ही पारित हो चुका है। विधेयक पर हुई चर्चा के जवाब में मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा कि इस विधेयक के जरिए सामान्य श्रेणी की सीटें बरकरार रहेंगी, जबकि केंद्रीय शिक्षण संस्थाओं के दाखिले में आरक्षण संबंधित राज्यों की कोटा व्यवस्था के अनुरूप प्रदान किया जाएगा। मसलन कई प्रदेशों में अगर दाखिले में 50 फीसद से अधिक आरक्षण की व्यवस्था है, तो इसे बनाए रखा जाएगा।

 सिब्बल ने कहा कि हम शिक्षा में आमूल चूल सुधार से संबंधित विधेयक पारित कराना चाहते हैं, जिनमें राष्ट्रीय समबद्धता एवं मूल्यांकन प्राधिकार विधेयक, शैक्षणिक कदाचार विधेयक आदि शामिल हैं। उन्होंने इसके लिए सदस्यों से सहयोग की अपील की ताकि शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर बनाया जा सके। उन्होंने कहा कि कालेज स्तर तक नहीं पहुंचने वाले 20 करोड़ बच्चों के लिए देश में आवश्यक बुनियादी सुविधा नहीं है और धन की कमी है। इसके लिए सार्वजनिक भागीदारी (पीपीपी) ही एकमात्र रास्ता है। उन्होंने कहा कि हमने सकल नामांकन दर को वर्तमान 14 फीसद से बढ़ाकर 2020 तक 30 फीसद करने का लक्ष्य तय किया है। 30 फीसद सकल नामांकन दर का लक्ष्य हासिल होने पर देश में 800 से 900 विविद्यालयों और 45 हजार कालेजों की जरूरत होगी। इसके लिए बड़े पैमाने पर धन की जरूरत होगी। सिब्बल ने कहा कि सरकार के पास इतना पैसा नहीं है। इसके लिए निश्चित तौर पर निजी क्षेत्र से सहयोग की जरूरत होगी।

 हमें इस विषय पर विचार करना होगा। सिब्बल ने केंद्रीय शिक्षण संस्थाओं में आरक्षण व्यवस्था को ठीक ढंग से नहीं लागू किए जाने के सदस्यों के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि इलाहाबाद विविद्यालय में अनुसूचित जाति के 18.33 फीसद छात्र, अनुसूचित जनजाति के 0.6 फीसद छात्र और अन्य पिछड़ा वर्ग के 36.5 फीसद छात्रों को आरक्षण का लाभ दिया गया है। उन्होंने कहा कि हैदराबाद विविद्यालय में अनुसूचित जाति के 21.12 फीसद छात्रों, अनुसूचित जनजाति के 10.19 फीसद छात्रों और अन्य पिछड़ा वर्ग के 26.15 फीसद छात्रों को आरक्षण का लाभ दिया है। 

बनारस हिन्दू विविद्यालय में अनुसूचित जाति के 13.17 फीसद, अनुसूचित जनजाति के 4.51 फीसद छात्रों और अन्य पिछड़ा वर्ग के 22.14 फीसद छात्रों को आरक्षण का लाभ दिया गया है। सिब्बल ने कहा कि केंद्रीय शिक्षण संस्थानों के दाखिले में आरक्षण की व्यवस्था करने वाला कानून 2006 में बन गया था और इस पर तीन वर्षो में अमल किया जाना था। यह विषय बाद में अदालत के समक्ष गया जिसके कारण इस पर अमल में कुछ देरी आई। उन्होंने कहा कि कई प्रदेशों में आरक्षण की पूर्व की व्यवस्था के कारण भी समस्या सामने आई। केंद्रीय शिक्षा संस्था (प्रवेश में आरक्षण) संशोधन विधेयक 2012 पर चर्चा के दौरान कांग्रेस के प्रदीप टम्टा ने कहा कि गैर सहायता प्राप्त निजी शिक्षण संस्थानों में अनुसूचित जाति, जनजाति तथा अन्य पिछड़े वगरें के छात्रों के लिए सीटें आरक्षित की जानी चाहिए। समाजवादी पार्टी के शैलेन्द्र कुमार ने कहा कि आरक्षण के मामले में समय-समय पर न्यायालय हस्तक्षेप करते रहते हैं। उन्होंने इस स्थिति से बचने के लिए आरक्षण कानून बनाकर उसे संविधान संशोधन के माध्यम से नौवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की। बहुजन समाज पार्टी के बलि राम ने शिकायत की कि विविद्यालयों में आरक्षण मिल नहीं पा रहा है। उन्होंने कहा कि दिल्ली विविद्यालय में पिछले वर्ष कई कालेजों में काफी आरक्षित सीटें खाली थी। 

लोकसभा में ‘राष्ट्रीय सहारा’ की चर्चा केंद्रीय शिक्षा संस्था (प्रवेश में आरक्षण) संशोधन विधेयक 2012 पर चर्चा की शुरुआत करते हुए भारतीय जनता पार्टी के गणोश सिंह ने ‘राष्ट्रीय सहारा’ में प्रकाशित खबर, जिसमें इस बात का उल्लेख किया गया है कि निजी विविद्यालयों को सरकार द्वारा दिए जा रहे धन और अनुदान का वाजिब उपयोग नहीं किया जा रहा है, का जिक्र करते हुए कहा कि देश में इस समय 111 निजी विविद्यालय हैं जबकि सरकारी नियंतण्रवाले 40 ही विविद्यालय हैं। उन्होंने इस स्थिति को देखते हुए निजी विविद्यालयों में भी आरक्षण की व्यवस्था करने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु में शिक्षण संस्थानों में 69 फीसद आरक्षण है फिर अन्य राज्यों में भी इतना आरक्षण क्यों नहीं दिया जा सकता। 

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