दिनांक 28/03/2012
प्रेस विज्ञप्ति
आर.टी.ई. के दो वर्ष पूरे: कैसे सुनिष्चित होगा प्रदेश में बच्चों के शिक्षा का अधिकार?
मध्यप्रदेश लोक संघर्ष साझा मंच द्वारा मध्यप्रदेश में ‘‘निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009’’ के लागू होने के एक साल पूरे होने पर इसके क्रियान्वयन की वस्तुस्थिति जानने के लिए किया गया अध्ययन रिर्पोट रिलीज़ किया गया।
भोपाल -ः बाल अधिकारों कें सरंक्षण और उनकी सुनिचिष्तता के मामले में अब तक के कानूनों में ’’शिक्षा अधिकार कानून’’ को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जा सकता है। इसके जरिये देश के प्रत्येक बच्चे को शिक्षा उपलब्ध कराना राज्य की जिम्मेदारी मानी गई हैं। यानी राज्य का यह दायित्व है कि वह षिक्षा संबंधी वे सभी सुविधायें और अवसर उपलब्ध करवाये जिससे 6 से 14 वर्ष तक बच्चों को निःषुल्क और अनिवार्य रूप से शिक्षा हासिल हो सके।
देश में शिक्षा का अघिकार अधिनियम लागू हुए आगामी 1 अप्रैल 2012 को दो वर्ष पूरे हो जायेगें। मध्यप्रदेश में शिक्षा का अघिकार कानून के राज्य अधिनियम को लागू हुए 26 मार्च 2012 को एक वर्ष पूरे हो चुके हैं। इसके बाद भी प्रदेश में कानून के क्रियान्वयन में भारी अनियमितायें हैं। इसी सदर्भ में मध्यप्रदेश लोक संघर्ष साझा मंच द्वारा मध्यप्रदेश में ‘‘शिक्षा अधिकार कानून’’ के लागू होने के एक साल पूरे होने पर इसके क्रियान्वयन की वस्तुस्थिति जानने के लिए अध्ययन किया गया है। यह अध्ययन मध्यप्रदेश के 13 जिलों के 94 गांवों एवं 3 नगरीय क्षेत्रो की प्राथमिक एवं माध्यमिक शालाओ में किया गया है। जिसमें 126 प्राथमिक शाला और 44 माध्यमिक शाला शामिल है।
इस रिर्पोट को मंच द्वारा आज दिनांक 28 मार्च 2012 को भोपाल के अप्सरा रेस्टोरेन्ट में आयोजित प्रेस कान्फरेन्स में जारी किया गया। इस कान्फरेन्स को मंच की ओर से जावेद अनीस, रोली शिवेहरे उपासना बेहार,, राकेश चांदौरे, विनोद पटेरिया, राजेश भदौरिया ने संबोधित किया।
इस अध्ययन से उभरे प्रमुख निष्कर्ष इस प्रकार हैः-
प्रवेश प्रक्रिया में दस्तावेजों की बाधा
‘‘निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009’’ की धारा 5(3) के अनुसार 6 से 14 वर्ष की उम्र के प्रत्येक बच्चे को शाला में प्रवेश लेने का अधिकार है तथा उसे किसी भी कारण से प्रवेश देने से इंकार नहीं किया जाएगा।
सर्वेक्षण से यह तथ्य सामने आता है कि 48 प्रतिशत शालाओं में इस प्रावधान का पालन नहीं किया जा रहा है। इन शालाओं में पहली कक्षा में प्रवेश देते समय बच्चे का जन्म प्रमाण पत्र और निवासी प्रमाण पत्र अनिवार्य रूप से मांगा जाता है साथ ही आगे की कक्षाओं में प्रवेश लेने वाले बच्चों को स्थानातंरण प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने पर ही प्रवेश दिया जाता है।
डरावनी शालाएं
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग द्वारा पहले से ही शाला में बच्चों को दण्डित करने की प्रक्रिया पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है, वहीं शिक्षा अधिकार कानून की धारा 17(1) में कहा गया है कि ‘‘किसी बालक को न तो शारीरिक दण्ड दिया जाएगा और न ही मानसिक उत्पीड़न किया जाएगा।
सर्वेक्षित 126 प्राथमिक शालाओं के बच्चों से चर्चा के दौरान यह तथ्य सामने आता है कि कुल मिलाकर 21 प्राथमिक शालाओं में बच्चों को शारीरिक दण्ड दिया जाता है।
इन शालाओ मंें दण्ड के कई रूप प्रचलित है, जिनमें पिटाई आम बात है। इसके साथ ही बच्चो को बैंच पर खड़ा होने, कान पकड़कर खड़े होने, मुर्गा बनाने जैसे दण्ड भी बच्चों को दिए जाते हंै। इस प्रकार के दण्ड से बच्चों को शारीरिक तकलीफ होने के साथ ही उन्हें मानसिक रूप से भी परेशानी होती है तथा दण्ड पाने वाले बच्चों को अन्य बच्चों द्वारा चिढ़ाया भी जाता है।
सर्वेक्षित 44 माध्यमिक शालाओं में से 11 माध्यमिक शालाओं के बच्चों को दण्ड दिए जाने के तथ्य सामने आए। इन शालाओं के बच्चो के चर्चा करने पर यह बात सामने आती है कि यहां पिटाई करने और मुर्गा बनाने जैसे दंडों से विद्यार्थियों को दंडित किया जाता है।
बच्चों से काम करवाया जाना
सर्वेक्षण से उभरे तथ्यांें के अनुसार सर्वेक्षित 170 शालाओं में से 32 प्रतिशत शालाओं में बच्चों से काम कराया जाता है जैसे कक्षा की सफाई झाडू, लगाना, टेबल साफ करना आदि करवाए जाते हैं। एक शाला में बच्चों से पानी भरवाने की बात भी सामने आई है।
विकलांग बच्चों की शिक्षा
मध्यप्रदेश सहित अन्य प्रदेश सरकारों ने भी अपने यहां विकलांग बच्चों की शिक्षा के विशेष सुविधाएं मुहैया कराने घोषणा की थी। इस दिशा में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा विकलांग बच्चों को छात्रवृत्ति, शालाओं में विकलांग बच्चों को पहुंचने के लिए रैम्प निर्माण, नेत्र विकलांग बच्चों के लिए शालाओं में रेलिंग व संवदी सचेतक निर्माण, विकलांग बच्चों के शिक्षण के लिए विशेष शिक्षण सामग्री उपलब्ध करवाने तथा विशेष प्रशिक्षण प्राप्त शिक्षकों की नियुक्ति किए जाने जैसे कदम उठाए गए। ये कदम व्यावहारिक धरातल पर कितने साकार हो पाए हैं, इसका आकलन इस अध्ययन के अंतर्गत किया गया।
प्रस्तुत अध्ययन के अंतर्गत सर्वेक्षित 170 शालाओं में से 74 शालाएं ऐसी है जहां विकलांग बच्चे शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। इस प्रकार सर्वेक्षित 44 प्रतिशत शालाओं में विकलांग बच्चों का नाम दर्ज हैं। इन शालाओ में कुल मिलाकर 136 विकलांग बच्चे नामांकित है, जिनमें 66 बालिकाएं हैं।
विकलांग बच्चांे का शाला में प्रवेश को आसान बनाने के लिए रैम्प जैसी सामान्य सुविधा का आकलन करें तो 58 प्रतिशत शालाओं में यह नदारद हैं। ये 58 प्रतिशत वे ही शालाएं हैं जहां विकलांग बच्चे दर्ज है।
कई ऐसी शालाएं हैं जहां विकलांग बच्चों की संख्या तुलनात्मक रूप से ज्यादा होने पर भी वहां रैम्प नहीं बनाई गई।
अध्ययन के दौरान दमोह, डिंडौरी, ग्वालियर और इन्दौर जिले के कुल मिलाकर 4 विद्यालय तो ऐसे पाए गए, जिनमें बच्चों की संख्या के लिहाज से रैम्प बनना अत्यावश्यक है।
सर्वेक्षित 74 शालाओं में से कुल मिलाकर मात्र 3 शालाओं में ही विकलाग बच्चों के लिए प्रशिक्षत शिक्षक पदस्थ है इसमें से एक शिक्षक माध्यमिक शाला में और दो शिक्षक प्राथमिक शाला मंें पदस्थ हंै।
ढांचागत् सुविधाएं
- 16 प्रतिशत स्कूल ऐसे पाए गए, जिनके भवन अत्यन्त जर्जर अवस्था में हैं। इन शाला भवनों की छत से बरसात में पानी टपकता है, इनके खिड़की दरवाजे टूटे हुए हैं तथा दीवारों में दरारें पड़ी हुई हैं।
- 56 प्रतिशत शालाओं में खेल का मैदान नहीं है
- चाहरदीवारी या तारफेंसिग वाले स्कूलों की संख्या मांत्र 13 प्रतिशत पाई गई
- 47 प्रतिशत शालाओं में पीने के पानी का कोई स्रोत नहीं है। इन शालाओं के बच्चों केा पीने के पानी के लिए घर जाना पड़ता हैं। दोपहर भोजन के बाद इन बच्चों को पानी उपलब्ध नहीं हो पाता। इसलिए वे भोजन करने के तुरन्त बाद ही घरों में जाकर पानी पीते हैं।
विद्यार्थी शिक्षक अनुपात
अधिनियम की धारा 25 में विद्यार्थी-शिक्षक अनुपात के अनुसार शिक्षको की नियुक्ति किए जाने का प्रावधान है। इसके अनुसार कक्षा पहली से पांचवी तक 30 विद्यार्थियों पर एक शिक्षक (30ः1) तथा कक्षा छठी से आठवीं तक 35 विद्यार्थियों पर एक शिक्षक (35ः1) होना अनिवार्य है और इसके लिए सरकार को उत्तरदायी माना गया है।
- 51 प्रतिशत शालाओं में शिक्षकों की कमी है।
- इनमें सबसे गंभीर स्थिति 17 प्रतिशत प्राथमिक शालाओं की है, जहां सिर्फ एक शिक्षक ही पदस्थ, जबकि इन शालाओं में 50 से 100 विद्यार्थियों के बीच मौजूद है।
सर्वेक्षित माध्यमिक शालाओं में शिक्षको की स्थिति की पड़ताल करने पर हम पाते हैं कि यहां 68 प्रतिशत शालाओं में शिक्षा अधिकार कानून के मानक के अनुसार 35 बच्चों पर एक शिक्षक है, जबकि शेष 32 प्रतिशत शालाओं में शिक्षको की कमी हैं।
शौचालय की स्थिति
प्रत्येक विद्यालय में शौचालय की सुविधा को अनिवार्य माना गया है। अध्ययन के दौरान सर्वेक्षित क्षेत्र की 170 शालाओ को अध्ययन करने पर हम पाते हैं कि 42 प्रतिशत शालाओ में शौचालय नहीं है । शौचालय की सुविधाओं वाली शालाओं की संख्या 58 प्रतिशत हैं। किन्तु इनमें भी 50 प्रतिशत शालाओं में लड़के और लड़कियों के लिए अलग से शौचालय नहीं है। जिन शालाओं में शौचालय मौजूद है, उनमे से 24 प्रतिशत शालाओं के शौचालय की स्थिति अत्यन्त जर्जर एवं उपयोगहीन है, यानी कुल उपलब्ध शौचालयों में सिर्फ 75 प्रतिशत शौचालय ही उपयोग किए जाने योग्य हैं। इन शौचालयों में भी 23 प्रतिशत शौचालयों की हालत खराब तो है, किन्तु वे उपयोग किए जाते हैं।
बच्चे करीब छह से आठ घंटे स्कूल में रहते हैं, जहां शौचालय की सुविधा होना अत्यंत आवष्यक है। शौचालय न होने तथा लड़कियों के लिये अलग से शौचालय नहीं होने से सबसे ज्यादा दिक्कत बालिकाओं को होती है। इसका सीधा असर उनकी शिक्षा तथा स्कूल में उपस्थिति पर पड़ता है। इन्दौर, भोपाल और ग्वालियर यहां भी करीब आधे विद्यालयों में शौचालय मौजूद नहीं है। ग्वालियर से 9 विद्यालयो में से 5 विद्यालयों में शौचालय उपलब्ध है, जिनमें 3 स्कूलों में लड़कियो के लिए अलग से शौचालय उपलब्ध है, वहीं इन्दौर शहर के 4 स्कूलों में से सिर्फ 1 स्कूल में ही शौचालय उपलब्ध है। यहां लड़कियों के लिए अलग से कोई शौचालय नहीं है।
निष्कर्ष
शिक्षा अधिकार कानून के प्रावधान और मौजूदा स्थिति: एक नजर में
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क्र.
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कानूनी प्रावधान
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वास्तविक स्थिति
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1
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किसी भी बच्चेे को शाला में प्रवेश से इंकार नहीं किया जाएगा। कोई दस्तावेज जैसे जन्म प्रमाण पत्र, टी.सी. निवासी प्रमाण पत्र आदि न होने की दशा में प्रवेश देने में न तो विलंब किया जाएगा और न ही इंकार किया जाएगा।
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सर्वेक्षित 48 प्रतिशत शालाओ में बच्चांे के प्रवेश के लिए जन्म प्रमाण पत्र, स्थानांतरण प्रमाण पत्र और निवासी प्रमाण पत्र की मांग की जाती है। इनके न होने पर प्रवेश नहीं दिया जाता है।
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2
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3
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अधिनियम की धारा 17 के अनुसार किसी भी बच्चे को शाला में शारीरिक दण्ड नहीं दिया जाएगा।
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सर्वेक्षित क्षेत्र की 17 प्रतिशत प्राथमिक शालाओं और 25 प्रतिशत माध्यमिक शालाओं में बच्चो को सजा दी जाती है। इन शालाओं में पिटाई करना, मुर्गा बनाना, बैंच पर खड़ा करना, कान पकड़कर खड़ा रखना, कंकड़ पर घुटने टिकाकर बैठाने जैसे तकलीफदेह सजा प्रचलित है।
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4
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प्राथमिक विद्यालय में विद्यार्थी शिक्षक अनुपात 30ः1 होगा।
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51 प्रतिशत प्राथमिक शालाओं में शिक्षकों की कमी है। इनमें सबसे गंभीर स्थिति 17 प्रतिशत प्राथमिक शालाओं की है, जहां सिर्फ एक शिक्षक ही पदस्थ हैं,
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5
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माध्यमिक विद्यालय में विद्यार्थी शिक्षक अनुपात 35ः1 होगा।
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39 प्रतिशत माध्यमिक शालाओं में प्रावधान के अनुरूप (35ः1) अनुपात में शिक्षक पदस्थ नहीं है। 7 प्रतिशत माध्यमिक विद्यालयों में तो सिर्फ एक ही शिक्षक पदस्थ है।
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6
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प्राथमिक विद्यालय पूरे सत्र में कम से कम 200 दिन तथा माध्यमिक विद्यालय पूरे सत्र में कम से कम 220 दिन खुलेगा। शिक्षक सप्ताह में कम से 45 घंटे शैक्षणिक कार्य करेंगे।
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सर्वेक्षित शालाओ में मात्र 13 प्रतिशत शालाएं ही ऐसी पाई गई, जहां सप्ताह में 45 घंटे शैक्षणिक कार्य होता है। जबकि 40 प्रतिशत शालाओं में को शैक्षणिक कार्य का समय 24 घंटे प्रति सप्ताह हैं। यानी कुल मिलाकर 87 प्रतिशत शालाएं ऐसी है, जहां अधिनियम के अनुरूप पर्याप्त समय शैक्षणिक कार्य नहीं होता।
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7
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शाला में हर शिक्षक के लिए कम से कम एक कक्ष होना जरूरी है एवं प्राधानाध्यापक के लिए एक कक्ष होना चाहिए, यही कक्षा कार्यालय होगा एवं स्टोर रूम के रूप में उपयोग किया जाएगा। सर्वेक्षित शालाओं में 44 प्रतिशत प्राथमिक शालाओ में पांच कक्षाओं के लिए दो कमरे उपलब्ध है, जबकि 8 प्रतिशत शालाओं में तो पांच कक्षाएं एक ही कमरे में लगती है।
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20 प्रतिशत माध्यमिक शालाएं एक कमरे में लगी है जबकि 24 प्रतिशत माध्यमिक शालाएं 2 कमरे में लगती है।
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8
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शाला में बच्चों के पीने का साफ पानी उपलब्ध हो।
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47 प्रतिशत शालाओं में पीने के पानी की कोई सुविधा नहीं है। इन शालाओं में बच्चों को पानी पीने के लिए अपने घर जाना पड़ता है या गांव से दूर किसी सार्वजनिक हैण्डपंप पर पानी पीने जाना पड़ता है।
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9
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शाला में खेल का मैदान हो
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जहां बच्चे खेल सकें। हर शाला में कक्षा के अनुसार खेल सामग्री उपलब्ध कराई जाए। 56 प्रतिशत शालाओं में खेल का मैदान नहीं है।
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शाला भवन की सुरक्षा के लिए चारदीवारी यो तारफेंसिंग हो।
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87 प्रतिशत शालाओ में चारदीवारी या तारफेंसिंग नहीं है।
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प्रत्येक विद्यालय के लिए एक शाला प्रबंधन समिति का गठन किया जाएगा तथा इस समिति की बैठक महीने में कम से कम एक बार जरूर होगी।
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24 प्रतिशत शालाओ मेें नियमित बैठके नहीं होने के तथ्य मिले हैं। यानी इन शालाओें में शाला प्रबंधन समिति सिर्फ कागजों पर ही काम कर रही है। बैठक न होने से उसके सदस्य और पदाधिकारी शाला के प्रबंधन में सहभागिता नहीं निभा पा रहे हैं।
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इस पड़ताल में भागीदार संस्थाएं
समाज चेतना अधिकार मंच, डभौरा, रीवा
भूमिहीन श्रमिक कृषक अधिकार मंच, जवा, रीवा
बिरसा मुंडा भू अधिकार मंच, त्योंथर, रीवा
आदिवासी अधिकार मंच, मझगंवा, सतना
सहयोग सपोर्ट इन डैवलपमेंट, श्योपुर
खेड़ूत मजदूर चेतना संगठ, अलीराजपुर
आदिवासी दलित मोर्चा, डिंडोरी
ग्रामीण विकास समिति, दमोह
परवरिश संस्था, ग्वालियर
ऊर्जा संस्था,भोपाल
जनसाहस संस्था, देवास
विकल्प समाजसेवी संस्था, भुआ बिछिया, मण्डला
दीनबंधु सामाजिक संस्था, इंदौर
टूवर्डस् एक्षन एंड लर्निंग (ताल) गंधवानी, धार
मध्यप्रदेष लोक संघर्ष साझा मंच
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