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केस-स्टडी ’’कुपोषित बच्चे की कहानी बैगा मां की जुबानी’’

आनंद टाडिया, मंडला

मण्डला जिले के मवई ब्लाक में स्थित ग्राम चंदगांवके  निवासी मतिया बैगा और पुरषोत्तम बैगा के पुत्र रितेश का जन्म 27 मार्च 2012 को हुआ था , जन्म के बाद से वो हमेशा बीमार रहता था , रितेश को कभी बुखार, कभी सर्दी जुकाम, कभी उल्टी-दस्त होते ही रहते थे , जब आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के साथ हमारे द्वारा अप्रैल 2013 में वजन लिया गया था तब उसका वजन मात्र 7.200 कि.ग्रा. था,

मतिया बैगा से बातचीत करने पर उन्होंने बताया कि यह उनका 5 वां बच्चा है, इसके पहले उनके 4 बच्चों की मृत्यु हो चुकी है इन 4 बच्चों में 1 पुत्री तथा 3 पुत्र थे । बच्चों की मृत्यु का कारण पूछने पर परिवार वालों द्वारा बताया कि 8 वर्ष पहले प्रथम बच्चा हुआ था, जो 5 माह जिंदा रहने के बाद मौत का शिकार हो गया।

प्रथम बच्चे के मृत्यु का कारण- बच्चे को कमजोरी थी, उसे कभी-कभी बुखार भी आता था और अचानक एक दिन उसकी मृत्यु हो गई। बच्चे का जन्म घर ही में हुआ था। मां को गर्भावस्था के समय और उसके बाद कोई टीका नहीं लगा था। बच्चे को सिर्फ एक टीका लगा था। बच्चे के जन्म के तुरंत बाद भोजन में चावल का पेज दिया गया क्योंकि बच्चे की माँ मतिया का स्वास्थ्य उसी समय खराब हो गया और उन्हें दूध ही नहीं आता था।

मतिया का इस स्थिति में कहीं कोई सरकारी इलाज नहीं कराया गया इलाज के नाम पर उसके पिता द्वारा  जंगली जड़ी बूटी दी गई और झाड़ फूंक कराया गया थ। गर्भावस्था के दौरान मां भोजन में मक्का का पेज, भात और भाजी खाया करती थी। उनके द्वारा आंगनबाड़ी से कोई भी भोज्य पदार्थ नहीं लिया गया था। मतिया बैगा की सास ने बताया कि जिस बच्चे की मृत्यु हुई उसे दो दिन, तीन दिन में एक बार मां का दूध मिलता था, बाकी बाहर का दूध,पेज,भात आदि खिलाते थे।

दूसरे बच्चे के मृत्यु का कारण- मतिया को दूसरी बार एक बच्ची हुई जिसकी मृत्यु 3 माह के बाद ही हो गई। परिवार ने बताया कि इस बच्ची की मृत्यु का कारण भी समझ में नहीं आया अचानक उल्टी हुई और बच्ची की मृत्यू हो गई। इस बच्ची के समय में भी मां एवं बच्चे को कोई टीका नहीं लगा था और मां का दूध भी पर्याप्त रूप से नहीं आता था, जिससे बच्ची को ऊपर से ही भोजन में पेज, दूध आदि पिलाया जाता था, इस बच्ची का जन्म भी घर में ही हुआ।

तीसरे बच्चे के मृत्यु का कारण -जब तीसरी बार मतिया गर्भ से हुई तो आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ने जबरदस्ती मां को टीके लगाये थे, दूसरे बच्चे के जन्म के 1 वर्ष के बाद तीसरा बच्चे का जन्म हुआ। इस बच्चे को भी टीका लगाया गया था फिर भी इस बच्चे की मृत्यु भी 5-6 माह के बीच हो गई। तीसरे बच्चे के समय भी मां एवं बच्चे की वही स्थिति थी जो पहले और दूसरे बच्चे के समय थी, जैसे मां का दूध न मिलना, बाहर से भोजन देना, आंगनबाड़ी से पोषण आहार भी नहीं मिलना आदि।

चैथे बच्चे के मृत्यु का कारण - चैथे बच्चे का 8 माह में ही गर्भपात हो गया।

फिर 3 वर्ष के बाद रितेश का जन्म हुआ जो कि आज कि स्थिति में जीवित है, पर उसे भी मां का पर्याप्त दूध नहीं मिल सक रहा है। लेकिन इस बार मतिया को गर्भावस्था के दौरान को पूरे टीके लगे थे और रितेश को भी अब तक के सभी टीके लग चुके है, फिर भी वह पहले की बच्चों के जैसे कमजोर और बीमार रहा है।

इन सब चर्चाओं के बाद जब मतिया के शादी के पहले की स्थिति, उसके मां-बाप की आजीविका की स्थिति आदि के बारे में जानने की कोशिश की गई तो मतिया द्वारा बताया गया कि उसके मायके में कुल 5 सदस्य थे जिनमें 3 पुरूष और 2 महिला थे। मतिया बैगा ने 4 वर्ष की उम्र से ही घर का कामकाज करना शुरू कर दिया था। 6-8 वर्ष की उम्र में से ही मतिया द्वारा जंगल से लकड़ी लाना़, खेती का कार्य, पशु  चराना आदि कार्य करना शुरु कर दिया गया था। मतिया एक भी कक्षा नहीं पढ़ी है। उसे आंगनबाड़ी में जो किशोरियों को लाभ दिया जाता है, उनसे भी कोसों दूर थी। लेकिन बचपन में जंगल से जो लघोवनोपज मिलते थे, मतिया के अनुसार उसे ही खाते थे और कोदो, कुटकी भी भोजन में पर्याप्त रूप में मिलता था।

उसकी शादी 16-17 वर्ष में पुरूषोत्तम बैगा से होती है, जो कि पहले से शादीशुदा था और उसके तीन बच्चे थे, लेकिन पुरूषोत्तम बैगा की पहली पत्नी जिसका नम जामवती था, डिलेवरी के उसका और बच्चे दोनों की मौत हो गई थी

मतिया बैगा के ससुराल की स्थिति-मतिया के ससुराल में 9 लोग थे और केवल 2 एकड़ जमीन थी जिसमें  धान और मक्का उगाया जाता था, मतिया के ऊपर ही घर का सारा काम आ पड़ा। यह बैगा परिवार कोदो, कुटकी पर नहीं बल्कि वनोपज, जैसे महुआ, तेंदु, चार आदि को भोजन के रुप में लेते थे। वन से ये उपज बहुत कम मात्रा में इक्टठा होने के कारण परिवार के अन्य सदस्य इसे खाते थे जबकि घर की बहू मतिया को भोजन में सुबह-शाम सिर्फ मक्का का पेज मात्र प्राप्त होता था। भरपेट आहार ना मिल पाने के कारण वह धीरे-धीरे कमजोर होती गई उसमें खून की कमी हुई ओैर वह बीमार रहने लगी। गर्भकाल के दौरान भी उसके भोजन में कुछ खास बदलाव नहीं हुआ। इस कारण उस दौरान भी वह कमजोर और एनिमिक बनी रही। इसी कारण उसके बच्चे भी जन्म से ही कमजोर पैदा हुए थे।  

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