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आरटीईको लेकर राज्य गंभीर नहीं-: कपिल सिब्बल




अप्रैल 01, 2012,रविवार

नई दिल्ली/एसएनबी। मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा है कि अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (आरटीई) कानून के दो वर्ष पूरे होने के बावजूद प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार नहीं हो रहा है। उन्होंने कहा कि इस मद में केंद्र सरकार ने इस वर्ष 25 हजार करोड़ रुपए खर्च करने का प्रावधान किया है जबकि पहले यह राशि 13 हजार करोड़ रुपए ही थी।

 अपने कार्यालय में पत्रकारों से वार्ता करते हुए सिब्बल ने कहा कि 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार संबंधी कानून आने के दो वर्ष बाद देश के 32 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों ने इस कानून को अधिसूचित किया है, वहीं 21 राज्यों में राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोगों और 31 राज्यों में अकादमिक प्राधिकारों का गठन हुआ है। 

उन्होंने कहा कि अनिवार्य शिक्षा अधिकार के मामले में केंद्र सरकार ने अपनी तरफ से बहुत कुछ कर दिया है अब राज्यों की बारी है क्योंकि शिक्षा में गुणवत्ता सुधार तो स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षकों से ही संभव है और वे शिक्षक राज्य सरकारों के अधीन हैं।

 उन्होंने कहा कि दो वर्षो में इस दिश में प्रगति तो हुई है लेकिन गुणवत्ता सुधार को लेकर एक बड़ी चुनौती सामने आई है जिसे राज्य सरकारें ही दूृर कर सकती हैं। अनिवार्य शिक्षा अधिकार कानून के दो वर्ष पूरे होने के मौके पर केंद्र सरकार ने शनिवार को इस दिशा में ठोस कदम उठाने के लिए 10 सूत्री कार्यक्र म पेश किया। इसमें इस कानून के मापदंडों को लागू करना, अकादमिक सत्र से पहले बच्चों को पुस्तक एवं ड्रेस उपलब्ध कराना शामिल है।

 यह कार्यक्रम राज्य सरकारों को अमल में लाना होगा। सिब्बल ने कहा कि राज्यों के लिए 10 सूत्री कार्यक्र म में अशक्त बच्चों के लिए प्रावधान, शिक्षकों को गैर शिक्षण कार्य में नहीं लगाने, पाठ्यक्र म सुधार को आगे बढ़ाने, शिक्षक प्रशिक्षण कार्य को समयबद्ध ढंग से आगे बढ़ाने, आधारभूत संरचना का विकास, स्कूलों को सत्र से पूर्व अनुदान उपलब्ध करने, स्कूलों में शिकायत निपटारा तंत्र स्थापित करने, शिक्षकों के खाली पदों को जल्द भरने की बातें शामिल हैं। सिब्बल ने कहा कि सन 2009-10 में इस मद के लिए 13 हजार करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था जिसे 2012-13 में बढ़ाकर 25 हजार करोड़ रुपए कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार की बुनियाद रख दी गई है। केंद्र ने अपनी भूमिका निभा दी है, अब राज्यों को पहल करना है। 10 सूत्री एजेंडा सामने है, इन्हें पूरा करना है।

 उन्होंने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारें दोनों मिलकर शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर बनाने का प्रयास कर रही हैं। बिहार, उत्तरप्रदेश, झारखंड जैसे राज्यों में बच्चों के स्कूली पढ़ाई छोड़ने की दर घटी है, छात्रिशक्षक अनुपात में भी सुधार हुआ है। शिक्षकों की कमी के बारे में उन्होंने कहा कि छात्र और शिक्षक अनुपात 30-1 निर्धारित किया गया है लेकिन प्राथमिक स्तर पर 43 प्रतिशत स्कूल ऐसे हैं जहां यह अनुपात 30-1 से अधिक है। उच्च प्राथमिक स्तर पर 35 प्रतिशत ऐसे स्कूल हैं जहां छात्र और शिक्षक अनुपात 35-1 है। केंद्र ने दो वर्षो में छह लाख शिक्षकों के पद मंजूर किए हैं। अब समय आ गया है जब शिक्षकों की नियुक्ति और तैनाती के काम को तेजी से पूरा किया जाए। स्कूल भवनों व कक्षाओं के निर्माण के साथ-साथ लड़कियों के शौचालयों का अलग से निर्माण करने पर भी बल दिया गया है।

शिक्षा के अधिकार पर प्रभावी अमल व गुणवत्ता में सुधार के उद्देश्य से राज्यों के लिए 10 सूत्री कार्यक्र म पेश दो वर्ष में अहम प्रगति, गुणवत्ता सुधार की चुनौती बरकरार

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आरटीई में गुणवत्ता सुधार की चुनौती बरकरार



MP POST:-31-03-2012

नई दिल्ली। छह से 14 वर्ष तक के बच्चों को नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार [आरटीई] कानून लागू होने के दो वर्ष बाद देश के 32 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों ने इस कानून को अधिसूचित किया है, वहीं 21 प्रदेशों में राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोगों और 31 प्रदेशों में अकादमिक प्राधिकारों का गठन हुआ है, लेकिन अभी गुणवत्ता संबंधी चुनौतियां बनी हुई हैं। 


आरटीई कानून के दो वर्ष पूरा होने पर शनिवार को केंद्र सरकार ने शिक्षा के अधिकार पर प्रभावी अमल और गुणवत्ता में सुधार के उद्देश्य से राज्यों के लिए 10 सूत्री कार्यक्रम पेश किया है जिसमें आरटीई के मापदंडों को लागू करने, अकादमिक सत्र से पहले बच्चों को पुस्तक एवं पोशाक उपलब्ध कराना शामिल है। 


मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने संवाददाताओं से कहा कि राज्यों के लिए 10 सूत्री कार्यक्रम में अशक्त बच्चों के लिए प्रावधान , शिक्षकों को गैर शिक्षण कार्य में नहीं लगाने, पाठ्यक्रम सुधार को आगे बढ़ाने, शिक्षक प्रशिक्षण कार्य को समयबद्ध ढंग से आगे बढ़ाने, आधारभूत संरचना का विकास, स्कूलों को सत्र से पूर्व अनुदान उपलब्ध करना, स्कूलों में शिकायत निपटारा तंत्र स्थापित करना, शिक्षकों की नियुक्ति को जल्द पूरा करना शामिल है। 


उन्होंने कहा कि 2009-10 में आरटीई के लिए 13 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था, जिसे 2012-13 में बढ़ाकर 25 हजार करोड़ रुपये कर दिया गया है। 
सिब्बल ने कहा कि शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार की बुनियाद रख दी गई है। केंद्र ने अपनी भूमिका निभा दी है, अब राज्यों को पहल करना है। 10 सूत्री एजेंडा सामने है, इन्हें पूरा करना है। उन्होंने कहा कि केंद्र और राज्य सरकार दोनों मिलकर शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर बनाने का प्रयास कर रहे हैं। बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड जैसे राज्यों में बच्चों के स्कूली पढ़ाई छोड़ने की दर घटी है, छात्र : शिक्षक अनुपात में भी सुधार हुआ है। 


मानव संसाधन विकास मंत्री ने कहा कि लेकिन अभी काफी कुछ किया जाना है। सिब्बल ने कहा कि आरटीई के तहत छात्र और शिक्षक अनुपात 30 :1 निर्धारित किया गया है। लेकिन प्राथमिक स्तर पर 43 प्रतिशत स्कूल ऐसे हैं जहां यह अनुपात 30:1 से अधिक है। उच्च प्राथमिक स्तर पर 35 प्रतिशत ऐसे स्कूल हैं, जहां छात्र और शिक्षक अनुपात 35:1 है। 


उन्होंने कहा कि केंद्र ने दो वर्षो में छह लाख शिक्षकों के पद मंजूर किए हैं, अब समय आ गया है जब शिक्षकों की नियुक्ति और तैनाती पर गंभीरतापूर्वक आगे बढ़ा जाए। 


मानव संसाधन विकास मंत्री ने कहा कि आरटीई लागू होने के दो वर्ष के दौरान सर्व शिक्षा अभियान के तहत 4,96,231 कक्षाओं के निर्माण को मंजूरी दी गई है। इसमें से अधिकतर कार्य एक वर्ष में पूरे हो जाएंगे। काफी स्कूलों में पेयजल और शौचालय की व्यवस्था की गई है, लेकिन लड़के और लड़कियों के लिए अलग अलग शौचालय के निर्माण का कार्य अभी पूरा नहीं हो पाया है। 


शिक्षा का अधिकार कानून के तहत सभी राज्यों में प्रभावी शिकायत सुनवाई तंत्र स्थापित करने को कहा गया, ताकि बच्चों की शिकायतों का समयबद्ध और प्रभावी तरीके से निपाटारा किया जा सके। 
सिब्बल ने कहा कि अभी तक देश के 32 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में कानून को अधिसूचित किया गया है। गोवा और कर्नाटक ने अभी कानून अधिूसचित नहीं किया है। 21 प्रदेशों में राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग और 31 में अकादमिक प्राधिकार का गठन हुआ है। 


उन्होंने कहा कि मंत्रालय ने राज्यों को एससीपीसीआर गठित करने के लिए परामर्श भी भेजा है। आरटीई कानून की धारा 32 के तहत नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा के अधिकार के तहत बच्चों के अधिकारों के संदर्भ में शिकायतों का निपटारा तीन महीने के भीतर स्थानीय प्राधिकार को करना है। स्थानीय प्राधिकार के निर्णय पर एससीपीसीआर के समक्ष शिकायत की जा सकती है। 


मंत्री ने कहा कि राज्यों ने स्कूलों में आरटीई के प्रावधान के तहत बच्चों को ध्यान में रखते हुए परिपत्र और अधिसूचना जारी की है, जिसमें शारीरिक दंड पर रोक, निष्कासन पर रोक और पांचवीं कक्षा तक परीक्षा नहीं लेना शामिल है।


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