हाल ही में आई संयुक्त राष्ट्र समर्थित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि
संवहनीयता सूचकांक (सस्टेनेबिलीटी इंडेक्स) के मामले में भारत 77वें स्थान पर है और
बच्चों की उत्तर जीविता (सर्वाइवल),
पालन-पोषण तथा खुशहाली से संबंधित सूचकांक (फ्लोरिशिंग इंडेक्स) में उसका
स्थान 131वां है। संवहनीयता
सूचकांक प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन से जुड़ा है जबकि हैपीनेस इंडेक्स में किसी भी राष्ट्र में माता एवं पांच साल से कम
आयु के बच्चों की उत्तर जीविता, आत्महत्या दर, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य सुविधा,
बुनियादी साफ-सफाई और भीषण गरीबी से मुक्ति तथा बच्चे का फलना-फूलना आदि को
शामिल किया गया है ।
यह अध्ययन विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ), संयुक्त राष्ट्र
बाल कोष (यूनिसेफ) तथा दी लैंसेंट मेडिकल जर्नल के संयुक्त तत्वावधान में हुआ जिसमें दुनियाभर के 40 से अधिक बाल एवं किशोर स्वास्थ्य विशेषज्ञ शामिल
रहे हैं । इस अध्ययन में में 180 देशों का आकलन किया गया है और इसमें देखा गया कि ये देश सुनिश्चित कर पाते हैं
या नहीं कि उनके यहां के बच्चे पलें-बढ़ें और खुशहाल रहें. इस रिपोर्ट में बच्चों
के उत्तर
जीविता, स्वास्थ्य, शिक्षा एवं पोषण के मामलों में नॉर्वे पहले स्थान पर रखा गया है इसके बाद दक्षिण कोरिया, नीदरलैंड, मध्य अफ्रीकी गणराज्य
और चाड हैं. हालांकि प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन के मामले में अल्बानिया, आर्मेनिया, ग्रेंडा, जॉर्डन, मोलदोवा, श्रीलंका, ट्यूनीशिया, उरुग्वे और वियतनामजैसे
देश बेहतर माने गये हैं . दुनिया के अधिकतर देश 2030
के प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य के मामले में बहुत पीछे चल रहे
हैं |
रिपोर्ट के अनुसार
विश्व की संवहनीयता बच्चों के फलने-फूलने की क्षमता पर निर्भर कराती है लेकिन कोई
भी देश अपने नौनिहालों को टिकाऊ भविष्य देने के पर्याप्त प्रयास नहीं कर रहा है| इस सम्बन्ध में शोधकर्ता प्रो. एंथनी कोटेलों का कहना है कि “दुनिया का कोई भी
देश ऐसी परिस्थितियाँ मुहैया नहीं करवा रहा है, जो हर बच्चे के विकसित होने और
स्वस्थ भविष्य के लिए आवश्यक है” |
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