इंडिया टुडे
उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर के बरगदवा ब्लॉक के छपरहा प्राइमरी विद्यालय में सहायक शिक्षक रहे 45 वर्षीय इंद्रजीत यादव को अब कुछ सूझ नहीं रहा है. दरअसल, इस साल जुलाई में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद वे फिर से शिक्षा मित्र के पद पर काम करने को मजबूर हैं. नाराजगी और हताशा उनके चेहरे पर साफ नजर आती है. इंद्रजीत बताते हैं, ''इस फैसले ने मेरे परिवार को भुखमरी के कगार पर पहुंचा दिया है."
![प्रारंभिक शिक्षा में शिक्षकों की कमी, शिक्षा मित्रों की हालत](https://smedia2.intoday.in/aajtak/images/Photo_gallery/%E0%A4%87%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%20%E0%A4%9F%E0%A5%81%E0%A4%A1%E0%A5%87/table_112017050346.png)
![शिक्षा मित्रों और शिक्षकों के संकट पर प्रकाश जावडेकर](https://smedia2.intoday.in/aajtak/images/Photo_gallery/%E0%A4%87%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%20%E0%A4%9F%E0%A5%81%E0%A4%A1%E0%A5%87/interview_112017050346.png)
इंद्रजीत की तरह ही परेशान गोरखपुर के बेलपार ब्लॉक में मौजूद प्राइमरी स्कूल भिनाखिनी में शिक्षा मित्र 41 वर्षीय बेचन सिंह बताते हैं, ''समायोजन रद्द होने का शिकार बने शिक्षा मित्रों पर चौतरफा मार पड़ी है. अब हमें अध्यापक पात्रता परीक्षा (टीईटी) के बाद अध्यापक चयन परीक्षा भी पास करनी होगी." दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि शिक्षा मित्र दो बार में पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद ही अध्यापक पद की नई भर्तियों के लिए आवेदन करके योग्यता के आधार पर चयनित हो सकते हैं.
इलाज ही बन गया मर्ज
उत्तर प्रदेश की प्रारंभिक शिक्षा राजनैतिक दांवपेच के भी गवाह रहे हैं. इसी की बानगी हैं शिक्षा मित्र. प्रदेश में बदहाल पड़ी प्रारंभिक शिक्षा की गाड़ी को पटरी पर लाने के लिए 1999 में ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा मित्र तैनात करने की योजना तैयार की गई थी. इन शिक्षा मित्रों का चयन ग्राम शिक्षा समितियों के जरिए किया गया जिसके अध्यक्ष ग्राम प्रधान थे. प्राइमरी स्कूलों में तैनात होने वाले इन शिक्षा मित्रों के संबंध में जारी शासनादेश में साफ लिखा गया कि इसे किसी तरह का सेवायोजन नहीं माना जाएगा. 2010 में शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू होने के बाद शिक्षकों की तैनाती का मानक तय करने का जिम्मा राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) के हाथ में आ गया.
एनसीटीई ने एक अधिसूचना जारी कर शिक्षकों की तैनाती के लिए टीईटी को पास करना अनिवार्य कर दिया. इससे पहले तक उनमें शिक्षकों की तैनाती का सामान्य मानक स्नातक के साथ बीटीसी प्रशिक्षण था. 2014 में राज्य सरकार ने कानून में संशोधन करके स्नातक की योग्यता रखने वाले शिक्षा मित्रों को प्राइमरी स्कूलों में सहायक शिक्षक के तौर पर नियुक्त करने का रास्ता साफ कर दिया.
![शिक्षा मित्रों की हालत यूपी की लालता देवी](https://smedia2.intoday.in/aajtak/images/Photo_gallery/%E0%A4%87%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%20%E0%A4%9F%E0%A5%81%E0%A4%A1%E0%A5%87/case_112017050346.png)
फिर इस साल सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षा मित्रों को दो बार में पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद ही अध्यापक पद नियुक्त करने की बात कही. शिक्षा मित्रों के भारी विरोध-प्रदर्शन के बाद डैमेज कंट्रोल के लिए सरकार ने 5 पांच सितंबर को कैबिनेट बैठक में शिक्षा मित्रों को पहली अगस्त से दस हजार रु. मानदेय देने का फैसला लिया.
उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षा मित्र संघ ने इस पूरे प्रकरण पर सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की है. संघ के अध्यक्ष गाजी इमाम आला का कहना है, ''कोर्ट ने अपने निर्णय में शिक्षा मित्रों को पात्रता परीक्षा में आयु में छूट देने, भारांक देने की बात कही थी लेकिन सरकार ने इस पर कोई फैसला नहीं लिया है. इसके अलावा राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद में भी शिक्षकों की पात्रता परीक्षा कराने का नियम तो है लेकिन शिक्षक चयन प्रक्रिया का कोई जिक्र नहीं है. ऐसे में अध्यापक चयन प्रक्रिया शुरू करना नियमों से परे है." हालांकि बेसिक शिक्षा राज्यमंत्री, स्वतंत्र प्रभारी अनुपमा जायसवाल कहती हैं, ''सरकार सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुपालन में शिक्षा मित्रों को हर संभव रियायत दी जा रही है."
यहां भी तकरार
शिक्षा मित्रों को लेकर जंग सिर्फ उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं है. 2003 में बिहार में भी शिक्षा मित्रों की बहाली के बाद से लगातार उनका विरोध-प्रदर्शन भी होता रहा है. अब एक बार फिर से यहां नियोजित शिक्षक और सरकार टकराव की राह पर हैं. उन्होंने आंदोलन की चेतावनी भी दी है. इन नियोजित शिक्षकों में शिक्षा मित्र भी शामिल हैं. 2005 में शिक्षा मित्रों को नियोजित शिक्षक बना दिया गया था. दरअसल, एक ओर जहां उत्तर प्रदेश में अदालती फैसला शिक्षा मित्रों पर गाज बनकर टूटा, तो बिहार में उम्मीद की किरण बनकर आया है.
![शिक्षा मित्रों की हालत, बिहार के शिक्षा मित्र](https://smedia2.intoday.in/aajtak/images/Photo_gallery/%E0%A4%87%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%20%E0%A4%9F%E0%A5%81%E0%A4%A1%E0%A5%87/case1_112017050346.png)
लेकिन हाइकोर्ट के फैसले के बाद इन शिक्षकों में जहां उम्मीद जगी है तो दूसरी ओर राज्य सरकार इसे टालने के मूड में है. राज्य के शिक्षा मंत्री कृष्णनंदन प्रसाद वर्मा कहते हैं, ''हम फैसले का गंभीरतापूर्वक अध्ययन करेंगे, फिर राज्य सरकार कदम उठाएगी. जरूरी हुआ तो इस फैसले के खिलाफ हम सुप्रीम कोर्ट में अपील करेंगे." सरकार की चिंता है कि फैसले को लागू करने से राज्य पर आर्थिक बोझ बढ़ जाएगा. पर पटना विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर नवल किशोर चौधरी इस दलील को खारिज करते हैं, ''शिक्षकों के वेतन के मसले पर बजट का बहाना नहीं बनाया जा सकता. जरूरत हो तो अन्य मदों में कटौती करके शिक्षा मद में खर्च किया जाना चाहिए."
![प्रारंभिक, प्राथमिक शिक्षा में अब गुणवत्ता पर हो जोर, प्रथम की सीईओ रुक्मिणी बनर्जी](https://smedia2.intoday.in/aajtak/images/Photo_gallery/%E0%A4%87%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%20%E0%A4%9F%E0%A5%81%E0%A4%A1%E0%A5%87/gc1_112017050346.png)
उधर, राजस्थान में 6 नवंबर को अजमेर में ''विद्यार्थी मित्र" सफेद टोपियों पर बेरोजगार लिखकर घर-घर घूमे. वे अजमेर उप-चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को वोट न देने की अपील करके अपना विरोध जता रहे थे. दरअसल शिक्षा मित्रों की तरह ही राजस्थान में विद्यार्थी मित्र हैं. पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में भी शिक्षा मित्र ऐसी परिस्थितियों से गुजरते रहे हैं. राज्य में अब टीईटी और सीटीईटी उत्तीर्ण शिक्षा मित्रों को स्थायी नियुक्ति मिलने की हरी झंडी मिलने के बाद बेसिक शिक्षा निदेशालय ने शिक्षा सचिव को प्रस्ताव भेज दिया है.
फिर भी नहीं गई बदहाली
इन शिक्षकों के संकट ने प्रारंभिक शिक्षा की बदहाली को भी बेपर्दा कर दिया है. दरअसल बीते वर्षों में शिक्षकों की भारी कमी को पाटने के लिए ही इनकी भर्ती की गई थी मगर एक तो ये खुद सियासी दांवपेच और अदालती हथौड़े के शिकार हो गए, तिस पर शिक्षकों की कमी अब भी बड़ी संख्या में है. देशभर में जहां प्रारंभिक शिक्षा में करीब नौ लाख शिक्षकों के पद रिक्त पड़े हैं. वहीं सबसे ज्यादा बिहार और उत्तर प्रदेश में कमी है (देखें ग्राफिक).
पिछले साल नवंबर में संसद में एक सवाल के जवाब में मानव संसाधन विकास मंत्रालय में केंद्रीय राज्यमंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने बताया कि मध्य प्रदेश के 4,837 प्राथमिक स्कूल ऐसे हैं जहां कोई भी शिक्षक नहीं है. और ऐसे स्कूलों की संख्या पिछले चार साल में लगातार बढ़ती जा रही है. इसी तरह कुछ राज्यों में प्रशिक्षित शिक्षकों की भी भारी कमी है. यहां तक कि देशभर में डिस्ट्रिक्ट इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन और ट्रेनिंग (डीआईइटी) जैसे शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों में भी करीब 45 प्रतिशत पद रिक्त हैं. इसी तरह बीते वर्षों में स्कूलों की बुनियादी सुविधाओं में सुधार तो हुआ है लेकिन कुछ राज्यों में स्थिति अब भी अच्छी नहीं है (देखें ग्राफिक).
![शिक्षकों के संकट का मुफ्त शिक्षा है समाधान, अनिल सदगोपाल](https://smedia2.intoday.in/aajtak/images/Photo_gallery/%E0%A4%87%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%20%E0%A4%9F%E0%A5%81%E0%A4%A1%E0%A5%87/gc2_112017050346.png)
आगे की राह क्या
शिक्षक और प्राथमिक शिक्षा के संकट के समाधान पर अलग-अलग राय है. अखिल भारत शिक्षा अधिकार मंच के अध्यक्ष मंडल के सदस्य और प्रख्यात शिक्षाविद् डॉ. अनिल सदगोपाल कहते हैं, ''शिक्षा का संकट तब तक रहेगा जब तक गैर-बराबरी की सेवा शर्तों पर नियुक्त करने वाली नीतियां खत्म नहीं की जाएंगी." केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावडेकर भी मानते हैं कि डिप्लॉयमेंट की दिक्कतें रही हैं और सरकार ने इसको लेकर राज्यों को निर्देश भी दिए हैं ताकि ऐसी स्थितियां खत्म हो. जाहिर है, ठेके और गैर-बराबरी पर आधारित नियुक्तियों को बंद करते हुए सही नीतियां नहीं बनाई गई और उन्हें सही तरीके से लागू नहीं किया गया, तो यह संकट भी खत्म नहीं होगा. और यह महज शिक्षा मित्रों या नियोजित शिक्षकों का मामला भर नहीं है बल्कि प्रारंभिक शिक्षा ऐसी नींव है, जहां बच्चों को गढ़कर देश के भविष्य तैयार किए जाते हैं.
—साथ में आशीष मिश्र, अशोक कुमार प्रियदर्शी, अखिलेश पांडे और विजय महर्षि
इंडिया टुडे से साभार
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