बाबी रमाकांत
अधिकांश बच्चों में, विशेषकर छोटे बच्चों में, टीबी उनके निकटजनों से ही संक्रमित
होती है। अविश्वसनीय तो लगेगा ही कि सरकार ने अनेक साल तक बच्चों में टीबी के
आँकड़े ही एकाक्रित नहीं किए पर 2010 के
बाद के दशक में अब बच्चों में टीबी नियंत्रण पर सराहनीय काम हुआ है – देश में और विश्व में भी। पर यह
पर्याप्त नहीं है क्योंकि संक्रमण नियंत्रण कुशलतापूर्वक किए बैग़ैर हम टीबी
उन्मूलन का सपना पूरा नहीं कर सकते।
बाल टीबी रिपोर्ट 2012 की संपादिका और सीएनएस (सिटीजन न्यूज़
सर्विस) की निदेशिका शोभा शुक्ला का कहना है कि “जब-जब कोई बच्चा या व्यसक टीबी संक्रमित होता है तब-तब हमारी टीबी से
हार होती है। और जब-जब हम सफलतापूर्वक टीबी संक्रमित होने से रोकते हैं तब-तब हम
टीबी उन्मूलन की ओर प्रगति करते हैं. यह समझना जरुरी है कि टीबी संक्रमण को फैलने
से रोकना है – यह उतना ही जरुरी है जितना हर टीबी से
ग्रसित व्यक्ति को पक्की जांच और पक्का इलाज उपलब्ध करवाना.”
हर बच्चे या व्यसक जिसको टीबी है उसको बिना
विलम्ब पक्की जाँच मिलनी चाहिए और असरकारी दवाओं से उसका पक्का इलाज सुनिश्चित
करना चाहिए: यदि हम ऐसा नहीं करेंगे तो टीबी जीतेगा और हम हारेंगे।
बच्चों में टीबी पर नयी रिपोर्ट ने झकझोरा
भारत के अनेक शहरों में 76000 बच्चों की टीबी जाँच करने पर ज्ञात
हुआ कि 5500 बच्चों को टीबी रोग है और इनमें से 9% बच्चों को दवा-प्रतिरोधक टीबी है
(मल्टी-ड्रग रेज़िस्टंट टीबी या एमडीआर-टीबी/ MDR-TB)। एमडीआर-टीबी का इलाज 2
वर्ष से अधिक अवधि का है,
अत्याधिक जटिल उपचार है और इलाज का
सफलता-दर भी चिंताजनक रूप से कम है। इस रिपोर्ट को फ़ाउंडेशन फ़ॉर इनेवोटिव
दायिगनोस्टिक़्स (एफ़आईएनडी) और भारत सरकार के राष्ट्रीय टीबी कार्यक्रम (जिसका
औपचारिक नाम है राष्ट्रीय पुनरीक्षित टीबी नियंत्रण कार्यक्रम) ने जारी किया है.
स्वास्थ्य को वोट अभियान से जुड़े और बालावस्था
में स्वयं टीबी का इलाज सफलतापूर्वक पूरा किये हुए राहुल द्विवेदी ने बताया कि
सबसे झकझोरने वाली बात यह है कि बच्चों को टीबी बड़ों/ वयसकों से ही संक्रमित होती
है। बच्चों की देखरेख करने वालों या किसी निकटजन को टीबी रही होगी जो बच्चों को
संक्रमित हुई। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि एमडीआर-टीबी औसतन उस व्यक्ति को
होती है जो असरकारी टीबी दवाओं के प्रति प्रतिरोधकता उत्पन्न कर ले। दवा
प्रतिरोधकता के कारणवश इलाज जटिल हो जाता है और जिन दवाओं से टीबी का प्रभावकारी
इलाज हो सकता है वो विकल्प घटते जाते हैं। जैसे-जैसे दवा प्रतिरोधकता बढ़ती है
वैसे-वैसे इलाज के लिए जरुरी दवाओं के विकल्प भी घटते जाते हैं.
जन-स्वास्थ्य के लिए चिंताजनक संकेत
पर जिन बच्चों को टीबी हुई उनमें से 9% को एमडीआर-टीबी (दवा प्रतिरोधक टीबी)
हुई। ज़ाहिर है कि बच्चों ने विशेषकर कि छोटे बच्चों ने दवा प्रतिरोधकता उत्पन्न
तो नहीं की होगी यानि कि उन्हें जिस निकट सम्बंधी से टीबी संक्रमित हुई वो साधारण
टीबी नहीं दवा प्रतिरोधक टीबी रही होगी. यह जन-स्वास्थ्य के लिए बहुत चिंताजनक
संकेत है।
इंटरनेशनल यूनियन अगेन्स्ट टीबी एंड लँग
डिज़ीज़ के विशेषज्ञ डॉ स्टीव ग्राहम ने कहा कि 4 साल से कम आयु के बच्चों को बड़ों से टीबी संक्रमित होने का ख़तरा
अधिक होता है। कुपोषण के कारण भी बच्चों में टीबी संक्रमित होने का ख़तरा अत्याधिक
बढ़ जाता है। बच्चों की संक्रमण से लड़ने की क्षमता यदि क्षीण हुई तो भी टीबी होने
का ख़तरा बढ़ जाता है। कुपोषण, एचआईवी
संक्रमण, डायबिटीज/ मधुमेह आदि से भी संक्रमण से
लड़ने की क्षमता क्षीण होती है.
लॉरेटो कॉन्वेंट कॉलेज की पूर्व वरिष्ठ
शिक्षिका और स्वास्थ्य को वोट अभियान की सलाहकार शोभा शुक्ला ने बताया कि बच्चों
में टीबी संक्रमण को रोका जा सकता है यदि संक्रमण नियंत्रण – घर, समुदाय, अस्पताल-क्लीनिक आदि में – दुरुस्त हो। घर में जो लोग तम्बाकू
धूम्रपान करते हों वो नशा उन्मूलन सेवा का लाभ उठाएँ और स्वयं भी स्वस्थ्य रहें और
घर के बच्चों को टीबी होने का ख़तरा कम करें। जब तक वो तम्बाकू धूम्रपान नहीं
त्याग पा रहे तब तक वे घर में कदापि तम्बाकू धूम्रपान ना करें क्योंकि परोक्ष
तम्बाकू धूम्रपान से टीबी होने का ख़तरा बढ़ता है।
बच्चों में टीबी होने का सबसे बड़ा कारण कुपोषण
न्यूज़ ब्लेज़ (अमरीका) से 2010 में सम्मानित शोभा शुक्ला ने कहा कि
बच्चों में टीबी होने का ख़तरा बढ़ाने का सबसे बड़ा कारण है: कुपोषण। सरकार ने
कुपोषण समाप्त करने का वादा किया है। सरकार ने 2025 तक टीबी समाप्त करने का भी वादा किया है। यह अत्यंत ज़रूरी है कि
खाद्य-सुरक्षा और टीबी कार्यक्रम में प्रभावकारी समन्वयन हो जिससे कि चाहे बच्चे
हों या वयस्क, उनका टीबी होने का ख़तरा न बढ़े।
मधुमेह/ डायबिटीज से भी टीबी होने का ख़तरा बढ़ता है इसीलिए ज़रूरी है कि टीबी और
मधुमेह कार्यक्रमों में आवश्यक समन्वयन हो।
बच्चों को बीसीजी वैक्सीन लगवानी चाहिए क्योंकि
यह वैक्सीन कुछ संगीन क़िस्म की टीबी से बचाती है हालाँकि टीबी से पूर्ण रूप से
नहीं बचाती। यदि टीबी उन्मूलन का सपना साकार करना है तो यह ज़रूरी है कि अधिक
प्रभावकारी टीबी वैक्सीन का शोध भी तेज़ हो।
सरकारें वादा निभाएं
190 से
अधिक देशों की सरकारों ने संयुक्त राष्ट्र में यह वादा किया है कि 2030 तक टीबी उन्मूलन का सपना साकार होगा.
भारत सरकार की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 के
लक्ष्य भी सतत विकास लक्ष्य के अनुकूल हैं. वर्त्तमान में जो टीबी दर में गिरावट
दर है वो अत्यंत कम है और इस गति से तो 2030 तक
टीबी उन्मूलन का सपना साकार नहीं होगा बल्कि 150 से
अधिक साल लगेंगे टीबी उन्मूलन के सपने को साकार करने के लिए. इसीलिए यह अत्यंत
महत्वपूर्ण है कि टीबी दर में गिरावट अधिक तेज़ी से आये जिससे कि सरकार द्वारा किये
हुए वादे पूरे हो सकें.
साभार -हम समवेत
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