कन्या भ्रूण हत्या के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ पुलिस द्वारा उचित कार्रवाई न करने पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है. शीर्ष अदालत ने कहा वह इस मामले की निगरानी खुद करेगा. कोर्ट ने कहा कि 2011 की जनगणना में लिंग अनुपात बहुत कम हुआ है. इस कारण हर तीन माह के अंतराल में पीएनडीटी एक्ट के तहत की गई कार्रवाई की समीक्षा की जाएगी. कार्रवाई पर निगाह रखने के लिए जल्द ही आदेश होगा जारी
जस्टिस केएस राधाकृष्णन और दीपक मिश्र की बेंच ने कहा कि इस समस्या पर अंकुश पाने के इरादे से पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र और दिल्ली में हो रही कार्रवाई पर निगाह रखने के लिए जल्द ही आदेश जारी किया जाएगा.
देश में लड़की और लड़कों के अनुपात में हो रही रही गिरावट के मद्देनजर इस मामले में अदालत के हस्तक्षेप के लिए गैर सरकारी संगठन वालंटियर्स हेल्थ एसोसिएशन ऑफ पंजाब की जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर इन सात राज्यों के स्वास्थ्य सचिव मंगलवार को अदालत में हाजिर हुए. स्वास्थ्य सचिवों ने प्रसव पूर्व लिंग निर्धारण तकनीक कानून के तहत अब तक उठाए गए कदमों की जानकारी अदालत को दी. इस कानून के तहत गर्भस्थ भ्रूण के लिंग निर्धारण पर पाबंदी है.
बेंच स्वास्थ्य सचिवों की दलीलों से संतुष्ट नहीं थी. अदालत ने कहा कि इस कानून के उल्लंघन के आरोप में बहुत ही कम व्यक्तियों को सजा हुई है. बेंच ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट हर तीन महीने बाद ऐसे मामलों की निगरानी करेगा ताकि ऐसे प्रकरणों की तेजी से सुनवाई सुनिश्चित की जा सके और आरोपियों को सजा दिलाई जा सके.
इन सात राज्यों में बालक-कन्या के अनुपात में तेजी से हुई गिरावट पर चिंता व्यक्त करते हुए अदालत ने कहा कि समाज के लिए बालिका के समान महत्व के प्रति जनता में जागरूकता पैदा करने की जरूरत है. 2011 की जनगणना के अनुसार देश में एक हजार लड़कों पर छह साल तक की बालिकाओं का औसत अनुपात 914 है, जबकि 2001 की जनगणना के तहत इनकी संख्या 927 थी.
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