यादवेंद्र
राज्य सभा ने शिक्षा के अधिकार कानून का संशोधित प्रारुप स्वीकार कर लिया है, जिसमें एकाधिक और गंभीर विकलांगता से ग्रस्त बच्चों को अनिवार्य तौर पर घर पर शिक्षा उपलब्ध कराये जाने का प्रावधान है। विकलांगता पर काम करने वाले अनेक संगठनों ने इसे गंभीर तौर पर विकलांग बच्चो को स्कूल से दूर रखने का षड़यंत्र बताया है। ऐसे अनेक लोगों ने घर पर पढ़ाने के प्रावधान से समाज में एक नये ढंग से विभाजन की आशंका व्यक्त की है। उनका कहना है कि यह अनिवार्य सार्वजनिक शिक्षा के अधिकार की भावना के विरुद् है।
अंग्रेजों के समय से चली आ रही शिक्षा प्रणाली में किसी भी ढंग की विकलांगता से ग्रस्त बच्चों को आम स्कूलों से दूर रख कर पढ़ने पर जोर था,जिसको एक हद तक कोठारी आयोग ने भी स्वीकार कर लिया था। उसके बाद की शिक्षा नीति में दुनिया के अन्य भागों में सफलता प्राप्त कर चुकी समेकित (इन्क्लूसिव) शिक्षा प्रणाली पर बल दिया गया है,जिसमें विकलांग बच्चों को भी स्कूल के माहौल में आम बच्चों के साथ साथ पढ़ने की नीति को लागू किया गया है।
हाल के दिनों में देश के समाचार माध्यमों में इस बात की खूब चर्चा रही कि कोलकता से गोवा जाने वाले सेरेब्रल पाल्सी ग्रसित जीजा घोष को स्पाइसजेट ने अपने विमान में यात्रा करने नही दी तो उन्होनें न्यायलय में इसे चुनौती दी। इसी प्रकार दिल्ली से रायपुर जाने के लिए हवाई अडडे पर पहुची अंजलि घोष को भी एयरलाइन ने यात्रा से वंचित रखा। रेल और बसों में ऐसे वारदातें हर शहर में रोज होती हैं और अक्सर विकलांगता का सरकारी प्रमाण पत्र रखने वालों को धोखेबाज कहते हुए टी टी या कंडक्टर को सुना जा सकता है।
कोलकता में विकलांगता दिवस पर प्रदेश स्तर के आयोजन में भाग लेने जाते हुए दस ऐसे युवाओं को बस कडंक्टर ने इसलिए जगह नही दी क्योकि बस में विकलागों के लिए सिर्फ एक सीट सुरक्षित होती है। सूचना के अधिकार से प्राप्त एक जानकार के अनुसार ब्यूरो आफ सिविल एविअशन सेक्योरिटी ने हवाई उडडों पर तैनात सुरक्षाकर्मीयों को स्पष्ट दिशा - निर्देश दिये है कि विकलांग यात्रियों द्वारा विस्फोटकों और हथियारों को ले जाने की आषंका ज्यादा होती है इसलिए उनके साथ सुरक्षा जांच में बिलकुल रियायत न बरती जाए,बल्कि उनकी और सख्त जांच की जाए। इसलिए कई बार व्हीलचेयर पर सवार यात्रियों को जबरन खड़ा होने के लिए कहा जाता है। इस बारे में अनेक विकसितदेशो में व्यवस्था है जिससे विकलांग यात्री को शारीरिक कष्ट पहुंचाए बगैर आधुनिक तरीकों से उनकी जांच की जाए। मगर भारत इन मामलों में अभी बहुत पीछे है। एक नये मामले में कोलकता के एक विकलांग व्यति ने टिकट न लेने पर बस से उतार दिऐ जाने की षिकायत कोर्ट में की तो यह तथ्य उजागर हुआ कि मजिस्ट्रेट को भी यह नही मालूम था कि देश का कानून गंभीर रुप से विकलांग व्यक्ति को टिकट लेने से छूट देता है।
आजकल बड़े पैमाने पर विकलांगता शब्द के इस्तेमाल को लेकर भी असहमति जताई जा रही है। सरकारी स्तर पर हरियाणा सरकार ने विकलांगता शब्द को गैरकानूनी घोषित करने का आदेश पारित किया। राज्यसभा में शिक्षा का अधिकार कानून पर संशोधन पर चर्चा के दौरान अनेक सदस्यों ने भी इस शब्द पर आपत्तिया उठाई। उनका कहना था कि भारत सरकार का सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्रालय आधिकारिक स्तर पर विकलांग शब्द को बदल कर शारीरिक स्तर पर कठिनाइया झेल रहे (फिजिकली चैलेज्ड़) या बेहतर हो कि अलग ढंग से सक्षम(डिफरेंटली एबल्ड) जैसे शब्द का प्रयोग शुरु कर दे हालाकि खुद दृष्टिहीनता से ग्रस्त देश के नवनियुक्त विकलांग व्यक्ति के मुख्य आयुक्त प्रसन्न कुमार पिंचा विकलांग या अलग ढंग से सक्षम कहलाने की बजाय ‘द ब्लांइड जेंटलमैन’(दृष्हिीन सज्जन) कहा जाना ज्यादा पसंद करते हैं। उनका कहना है कि हमें विकलांगता से जुड़े कृपा और एहसान भरे अपने नजरिये में बदलाव लाना चाहिए। विकलागों के अधिकारों को सुनिष्चत करने वाले वर्तमान कानू के संशोधित प्रारुप की आजकल चर्चा है। इसके साथ केंद्र सरकार की ओर से एक महत्वपूर्ण पहल यह हुई है कि सामाजिक न्याय और सषक्तीकरण मंत्रालय विकलांगता के मुददों पर गौर करने के लिए अलग से एक विकलांग मामलों का विभाग गठित करेगा।
भारत सरकारी तौर पर आज तक यह नही बता पाया है कि देश में विकलांग आबादी की हिस्सेदारी कितनी है। अलग आंकड़े उपलब्ध है। 2001 की जनगणना में इस आबादी को 2.13 फीसदी बताया गया था। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन के 2002 के आंकड़े तो ओर भी चैकाने वाले हैं। इसके अनुसार सिर्फ 1.8 फीसद विकलांग है। सयुक्त राष्ट्र संध का मानना है कि विकासशील देशो में विकलांगता का अनुपात दस फीसदी होता है। यानी देश में 10 करोड़ से ज्यादा आबादी किसी न किसी तरह की विकलांगता से ग्रस्त है। 2011 की जनगणना का अध्ययन हालांकि अभी संपूर्ण नही माना जा रहा है पर अनुमान है कि 7 करोड़ आबादी विकलांग हो सकती है। इस क्षेत्र में काम करने वाले सामाजिक संगठनों की व्यापक मांग पर हाल की जनगणना में विकलांगता संबंधी जानकारी भी जुटाई गई थी। भारत में देखने (48.५ प्रतिशत ),चलने-फिरने(27.9 प्रतिशत ),मस्तिष्क (10.3 प्रतिशत ), बोलने (7.5 प्रतिशत ),तथा सुनने (5.8 प्रतिशत ) संबंधी विकलांगता से इतर की अक्षमता को सरकारी स्तर पर विकलांगों की गिनती में शामिल नही किया जाता पर अब अनेक सामाजिक संगठन और कानूनविद् तो एच.आई.वी.,कुष्ठ और कैंसर जैसे असाध्य रोगों को भी विकलांगता की परिधि में लेने की वकालत कर रहे हैं।
हाल में मंबई उच्च न्यायलय में डा. अण्णा साहेब कदम का मामला साम ने आया है जिसमें मेडिकल की स्नातकोत्तर पढ़ाई के लिए एक ही विशेषज्ञ संस्थान आल इंडिया इंस्टीट्यूट आफ फिजिकल मेडिसिन एंड रिहेबिलिटेशन से हासिल की गई दो रिर्पोटों में विकलांगता की श्रेणी में आकाश -पाताल का अंतर पाया गया। एक में 25 फीसदी और दूसरे में 50 फीसदी इसे दर्शाया गया है। इस पर गंभीर आपत्ति दर्ज करते हुए न्यायालय ने मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया को निर्देश दिए कि विकलांगता के परिमापन के लिए वैज्ञानिक और न्यायोचित दिशा - निर्देश जारी किए जांए जिसमें भविष्य में ऐसी हास्यास्पद स्थितियां पैदा न हो।
साभार : शुक्रवार-(11 से 17 मई 2012)
1 Comments
आप सही कह रहे हैं मित्र। मैं भी विकलांग हूं। जब मैं बस से जाता हूं तो अक्सर कंडक्टर से कहा सुनी होती ही है।
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