देश में निर्मित तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बने जिन कानूनों को भारत में स्वीकार किया गया है, उसके अंतर्गत निर्धारित मानक और अधिकारों को पाने का अधिकार उन सभी व्यक्तियों को है जिनकी उम्र 18 वर्ष से कम है।
भारतीय संविधान
भारतीय संविधान ने सभी बच्चों के लिए कुछ अधिकार निश्चित किए हैं, जिसे विशेष रूप से उनके लिए संविधान में शामिल किया गया है। वे अधिकार इस प्रकार हैं -
- 6-14 वर्ष की आयु समूह वाले सभी बच्चों को अनिवार्य और ऩिःशुल्क प्रारंभिक शिक्षा का अधिकार (अनुच्छेद – 21 ए)
- 14 वर्ष की उम्र तक के बच्चे को किसी भी जोखिम वाले कार्य से सुरक्षा का अधिकार (अनुच्छेद – 24)
- आर्थिक जरूरतों के कारण जबरन ऐसे कामों में भेजना जो उनकी आयु या क्षमता के उपयुक्त नहीं है, उससे सुरक्षा का अधिकार (अनुच्छेद – 39 ई)
- समान अवसर व सुविधा का अधिकार जो उन्हें स्वतंत्रत एवं प्रतिष्ठापूर्ण माहौल प्रदान करे और उनका स्वस्थ रूप से विकास हो सके। साथ ही, नैतिक एवं भौतिक कारणों से होने वाले शोषण से सुरक्षा का अधिकार (अनुच्छेद 39 एफ)
साथ ही, उन्हें भारत के वयस्क पुरुष एवं महिला के बराबर समान नागरिक का भी अधिकार प्राप्त है जैसे -
- समानता का अधिकार ( अनुच्छेद 14)
- भेदभाव के विरुद्ध अधिकार ( अनुच्छेद 15)
- व्यक्तिगत स्वतंत्रता और कानून की सम्यक् प्रक्रिया का अधिकार ( अनुच्छेद 21)
- जबरन बँधुआ मजदूरी में रखने के विरुद्ध सुरक्षा का अधिकार ( अनुच्छेद 23)
- सामाजिक अन्याय और सभी प्रकार के शोषण से, समाज के कमजोर तबकों के सुरक्षा का अधिकार ( अनुच्छेद 46)
राज्य को चाहिए कि -
- वह महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान बनाएँ ( अनुच्छेद 15 (3))
- अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करे ( अनुच्छेद 29)
- समाज के कमजोर वर्गों के शैक्षणिक हितों को बढ़ावा दें (अनुच्छेद 46)
- आम लोगों के जीवन-स्तर और पोषाहार स्थिति में सुधार लाने तथा लोक स्वास्थ्य में सुधार हेतु व्यवस्था करे (अनुच्छेद 47)
संविधान के अलावे भारत में कई ऐसे कानून हैं जो विशेष रूप से बच्चों के लिए बने हैं। एक जिम्मेदार शिक्षक और नागरिक होने के नाते आप उन्हें और उसकी महत्ता को अवश्य जानते हैं।
बाल-अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन
बाल-अधिकारों पर बने अंतरराष्ट्रीय कानून की महत्वपूर्ण पहलू यह है कि वह बाल अधिकार पर हुए संयुक्त राष्ट्र संयोजन से सम्बद्ध है जिसे सीआरसी कहा जाता है। ये अंतरराष्ट्रीय कानून और भारतीय संविधान व विधि-विधान के साथ मिलकर तय करते हैं कि बच्चों को वास्तव में क्या अधिकार होने चाहिए।
मानव अधिकार सभी लोगों के लिए हैं जिसका उम्र से कोई लेना-देना नहीं है। यद्यपि विशेष दर्जे के कारण बच्चों को वयस्क से अधिक सुरक्षा और मार्गदर्शन की जरूरत है। साथ ही, बच्चों के लिए कुछ विशेष अधिकारों का भी प्रावधान किया गया है।
बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन की मुख्य विशेषताएँ -
- 18 वर्ष की उम्र तक के लड़के और लड़कियों दोनों पर समान रूप से लागू होता है। भले ही वे विवाहित हों और उनके अपने बच्चे भी हों
- बच्चों के बेहतर हित, भेदभावरहित जीवन और बच्चों के विचारों का सम्मान के सिद्धान्त पर सम्मेलन निर्देशित हों
- यह परिवार के महत्व तथा ऐसे वातावरण के निर्माण पर जोर देता है जो बच्चों के स्वस्थ विकास और उन्नति में सहायक हो
इसमें सरकार पर यह जिम्मेदारी भी सौंपी गई है कि वे बच्चों के प्रति समाज में स्वच्छ और समान व्यवहार को सुनिश्चित करे।
यह नागरिक, राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों के चार सेटों की ओर ध्यान आकर्षित करती है।
वे अधिकार हैं -
- जीने का अधिकार
- सुरक्षा का अधिकार
- विकास का अधिकार
- सहभागिता का अधिकार
जीने के अधिकार में सम्मिलित हैं -
- जीवन का अधिकार
- स्वास्थ्य का उच्चतम जरूरी मानक प्राप्त करने का अधिकार
- पोषण का अधिकार
- समुचित जीवन स्तर प्राप्त करने का अधिकार
- नाम एवं राष्ट्रीयता पाने का अधिकार
विकास के अधिकार में शामिल हैं -
- शिक्षा का अधिकार
- प्रारंभिक बाल्यावस्था में देखभाल एवं विकास हेतु सहायता का अधिकार
- सामाजिक सुरक्षा का अधिकार
- अवकाश, मनोरंजन एवं सांस्कृतिक क्रियाकलापों का अधिकार
सुरक्षा के अधिकार में सभी प्रकार की स्वतंत्रता सम्मिलित है -
- शोषण से सुरक्षा का अधिकार
- अपमान व दुर्व्यवहार से सुरक्षा का अधिकार
- अमानवीय या निम्न कोटि के व्यवहार से सुरक्षा का अधिकार
- उपेक्षा से मुक्ति का अधिकार
- आपातकाल एवं सशस्त्र संघर्ष जैसी विशेष परिस्थितियों में विकलांग आदि को विशेष सुरक्षा व्यवस्था प्राप्त करनेका अधिकार।
सहभागिता के अधिकार में सम्मिलित हैं -
- बच्चों को अपने विचार के लिए सम्मान पाने का अधिकार
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार
- उपयुक्त सूचना प्राप्त करने का अधिकार
- विचार, चेतना एवं धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
सभी अधिकार एक-दूसरे पर निर्भर और अविभाजित हैं। फिर भी, उनकी प्रकृति के कारण दो भागों में विभाजित किया गया है -
त्वरित अधिकार (नागरिक व राजनैतिक अधिकार)- इसमें भेदभाव, दंड, आपराधिक मामलों में पारदर्शी एवं सत्यतापूर्ण सुनवाई का अधिकार, बच्चों के लिए अलग न्यायिक व्यवस्था, जीवन का अधिकार, राष्ट्रीयता का अधिकार, परिवार के साथ पुनर्मिलन का अधिकार आदि। इस श्रेणी के अंतर्गत अधिकाँश सुरक्षा अधिकार आते हैं। इस वजह से इन अधिकारों के लिए तत्काल ध्यान दिए जाने एवं हस्तक्षेप की माँग की जाती है।
प्रगतिशील अधिकार (आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकार) – इसमें स्वास्थ्य, शिक्षा और वे अधिकार हैं जिन्हें प्रथम वर्ग में शामिल नहीं किया गया है। इन्हें सीआरसी के अंतर्गत अनुच्छेद 4 में मान्यता दी गई है, जो कहता है – आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों के संदर्भ में जहाँ जरूरी हो, सरकार के विभिन्न अँग अंतरराष्ट्रीय सहकारिता के ढाँचे के दायरे में उपलब्ध संसाधनों को लोगों तक पहुँचाने के लिए उचित कदम उठाएँगे।
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